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सम्मान-समानता के प्रति सजग रहें महिलाएं

मानवाधिकार दिवस

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डॉ. मोनिका शर्मा

दुनिया के हर हिस्से में बसे लोगों को अपने इंसानी अधिकारों को पाने के लिए संघर्ष करना पड़ता है। अपने-अपने मानवीय हक के अनुसार सहजता से जीने के लिए भी लड़ाई लड़नी पड़ती है। यह जद्दोजहद उम्र और जेंडर से परे कमोबेश हर इंसान के हिस्से आती है पर महिलाओं को इस मोर्चे पर ज्यादा जूझना पड़ता है। तकलीफदेह सच है कि स्त्रियों के ह्यूमन राइट्स में पराये ही नहीं अपने भी बाधा बनते हैं। यहां तक कि महिलाएं भी अपने हक भूलकर एक अलग ही सांचे में ढल जाती हैं। कई बार तो खुद की पहचान खो देने की सीमा तक बदल जाती हैं। घर-परिवार के दायित्वों की धुरी पर स्त्रियों का यूं सब कुछ भुलाना सही नहीं कहा जा सकता है। हर स्त्री को याद रखना चाहिए कि देश की नागरिक होने के नाते ही नहीं, इंसान के नाते भी उसे कुछ अधिकार मिले हैं।

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मानवीय अधिकारों के मायने

ह्यूमन राइट्स हमें मनुष्य होने के नाते मिले हैं। ये सार्वभौमिक अधिकार किसी राज्य द्वारा प्रदान नहीं किए जाते हैं। ऐसे अधिकार राष्ट्रीयता, लिंग, राष्ट्रीय-जातीय मूल, रंग, धर्म, भाषा या किसी भी अन्य स्थिति से परे हर इंसान के अधिकार होते हैं। इसीलिए महिलाओं को यह समझना चाहिए कि सहजता और सम्मान से जीने का उनका हक उन्हें किसी विशेष खांचे में डालकर नहीं छीना जा सकता। देखने में आता कि घर के बाहर ही नहीं भीतर भी महिलाओं पर कई तरह की टीका-टिप्पणी की जाती है-कभी उपहास तो कभी उलाहने। यह सब इतनी सहजता से किया जाता है कि महिलाएं कभी ज़िम्मेदारी तो कभी भावनात्मक बहाव के चलते कुछ समझ ही नहीं पातीं। कभी-कभी तो अपनों द्वारा ही अपने सार्वभौमिक अधिकारों से बेदखल कर दी जाती हैं। ऐसे में अपने मानवीय अधिकारों की समझ रखना भी आवश्यक है। इस फेहरिस्त में महिलाओं के लिए शिक्षा, हिंसा से मुक्त जीवन, उचित वेतन, स्वास्थ्य देखभाल, संपत्ति के स्वामित्व और स्वतंत्र अभिव्यक्ति जैसे कई मौलिक अधिकार शामिल हैं। इसीलिए स्त्री होने के नाते खुद को पीछे ना समझें क्योंकि 1948 के मानवाधिकारों की सार्वभौमिक घोषणा में स्पष्ट कहा गया है कि सभी मनुष्य ‘स्वतंत्र पैदा होते हैं और सम्मान और अधिकारों में समान होते हैं।’ ह्यूमन राइट्स समानता और मान-सम्मान की सोच के इस धरातल पर ही पोषण पाते हैं।

वर्तमान से जुड़ा भविष्य

अंतरराष्ट्रीय मानवाधिकार दिवस-2024 की थीम ‘हमारे अधिकार, हमारा भविष्य, अभी’ है। यह विषय बेहतर भविष्य और सुखद वर्तमान के लिए बिना देरी अपनी भागीदारी निभाने का संदेश देता है। यह थीम हर व्यक्ति के ह्यूमन राइट्स की वकालत करते हुए समझाती है कि आज अपने हक के लिए सचेत होना भविष्य की बेहतरी से भी जुड़ा है। स्त्रियों के लिए यह बात और विचारणीय हो जाती है। आने वाले समय में समाज या परिवार में अपनी बहू-बेटियों के प्रति समान सोच की बुनियाद बनाने के लिए आधी आबादी को आज ही सजग होना होगा। सेहत की देखभाल से लेकर किसी मामले में अपने विचार रखने की आज़ादी तक, हर मोर्चे पर जागरूक बनना होगा। जैसे घरेलू हिंसा मानवाधिकारों के उल्लंघन का ही पीड़ादायी उदाहरण है। चिंतनीय है कि दुनिया के किसी हिस्से का युद्धग्रस्त क्षेत्र हो या घरों में पलती नकारात्मक और भेदभावपूर्ण मानसिकता। महिलाएं सबसे ज्यादा शिकार बनती हैं। संयुक्त राष्ट्र द्वारा भी महिलाओं के खिलाफ सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन के लिए हर वर्ष होने वाले सम्मेलन में बात की जाती है। सम्मेलन में संस्कृति, समाज, शिक्षा, राजनीति और कानून के क्षेत्रों में महिलाओं के खिलाफ भेदभाव को खत्म करने के लिए सक्रिय कदम उठाने का परिवेश बनाने को लेकर सोचा जाता है।’ कन्वेन्शन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिक्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमन’ यानी ‘महिलाओं के विरुद्ध सभी प्रकार के भेदभाव के उन्मूलन’ के विषय पर होने वाले इस आयोजन मानवाधिकारों को लेकर सजगता लाने की कोशिशों को भी बल दिया जाता है। समझना जरूरी है कि लैंगिक समानता से जुड़े विचारों को घर-परिवार में बढ़ावा दिये बिना बाहर बदलाव नहीं आ सकता। मार्टिन लूथर किंग के मुताबिक ‘किसी भी जगह का अन्याय हर जगह के न्याय के लिए खतरा है।’ ऐसे में हर तरह के दुर्भाव से बचने के लिए महिलाओं का खुलकर अपने अधिकारों के लिए बोलना बेहद जरूरी है।

अपने अस्तित्व का मान

अपने मानवीय अधिकारों के प्रति सजग रहना अपने अस्तित्व का मान करने से जुड़ा है। इतना ही नहीं अपने अधिकारों की समझ रखने वाला इंसान ही दूसरों को भी सचेत कर सकता है। स्पष्ट है कि अपने अधिकारों को लेकर जागरूक रहने वालई स्त्रियां दूसरी महिलाओं की भी मददगार बन पाती हैं। परिवार से लेकर परिवेश तक, हर तरह के भेदभाव को मिटाने की हिम्मत रखती हैं। यूं भी महिलाओं को मानवाधिकार दिलाने के संघर्ष में लैंगिक समानता ही सबसे अहम उद्देश्य है। इस बराबरी का अर्थ ही महिलाओं और पुरुषों तथा लड़कियों और लड़कों के लिए समान अधिकार, समान ज़िम्मेदारियां और समानता के अवसर उपलब्ध करवाना है। इसीलिए हर स्त्री यह समझे कि इंसानी मोर्चे पर समानता का हक उसके भी हिस्से है। नेल्सन मंडेला के अनुसार ‘लोगों को उनके मानवाधिकारों से वंचित करना उनकी मानवता को चुनौती देना है।’ चिंतनीय है कि महिलाओं और लड़कियों को आज भी उनके मानवाधिकारों से वंचित किया जाता है। कहीं ना कहीं, किसी न किसी रूप में लैंगिक भेदभाव देखने को मिल जाता है। ‘जबकि कन्वेन्शन ऑन द एलिमिनेशन ऑफ ऑल फॉर्म्स ऑफ डिक्रिमिनेशन अगेन्स्ट वुमन’ द्वारा महिलाओं के मानवाधिकारों को ठेस पहुंचाने वाले भेदभाव को ‘लिंग के आधार पर किये गए भेद, बहिष्कार या प्रतिबंध जिसका असर या उद्देश्य महिलाओं द्वारा उनकी वैवाहिक स्थिति पर ध्यान दिए बिना, राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, नागरिक या किसी अन्य क्षेत्र में पुरुषों और महिलाओं की समानता, मानव अधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता के आधार पर मान्यता, खुशी या व्यवहार को कमजोर या निरस्त करना हो’ के तौर पर परिभाषित किया गया है। ये सभी पहलू स्त्रियों के अस्तित्व की सहज स्वीकार्यता से जुड़े हैं। समानता की सोच का परिवेश बनाने वाले हैं। आवश्यक है तो यह कि महिलाएं भी अस्मिता के इस मोर्चे पर अपने हर अधिकार को पाने के लिए डटी रहें।

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