हरीश चंद्र पांडे
यूं तो परिवार ही बच्चे की पहली पाठशाला है और बच्चा हर पल कुछ न कुछ सीखता ही रहता है। छोटा बच्चा हौले-हौले बहुत सारी मजेदार बातें सीखता है। जैसे ये मक्खी है और वो मधुमक्खी, यह तितली है, वो भंवरा है। वैसे ,यह इतने कठिन सवाल तो नहीं हैं कि बच्चा माता-पिता या बड़ों से न सीख सके। परंतु एक पाठशाला में वह बच्चा अपने जैसे अपनी उम्र के बच्चों संग यह सब हंसते-खेलते ही सीख जाता है। उस पर दबाव नहीं पड़ता बल्कि उसे बहुत ही आनंद आता है। इसीलिए प्ले स्कूल शहर ही नहीं, कस्बे, गांव, देहात में भी बहुत महत्वपूर्ण होते जा रहे हैं।
दो-ढाई साल से ही शुरुआत
दो साल का बच्चा प्ले स्कूल जाने के लिए एकदम सुयोग्य होता है। आज से दो ढाई दशक पहले यह प्ले स्कूल का विचार इतना विस्तृत नहीं था। तब बच्चे को चार या पांच साल की उम्र में दाखिला मिलता था। आजकल बाल मनोवैज्ञानिक यह कहते हैं कि पांच साल की उम्र में पहली बार स्कूल जाता हुआ बच्चा परिवार का आदी हो जाता है और घर को, मां को अपने बिस्तर को बहुत मिस करता,है जबकि दो-ढाई साल का बच्चा प्ले स्कूल में एकदम से घुल-मिल जाता है। वह अपेक्षाकृत जल्दी से सब कुछ सीखता है। इसीलिए आजकल हर जगह प्ले स्कूल का चलन हो गया है।
घर के नजदीक हो तो बेहतर
कई घर केवल एक या दो कमरों के ही होते हैं। ऐसे में बच्चा प्ले स्कूल के खुले और हरे भरे वातावरण में बहुत खिल और निखर जाता है। पर माता-पिता को बच्चे की कच्ची उम्र का ख्याल रखते हुए प्ले स्कूल में भेजते हुए यह ख्याल रखना चाहिए कि बहुत दूर न भेजें। कोशिश करें कि ज्यादा से ज्यादा दो किलोमीटर के भीतर प्ले स्कूल होना अति उत्तम है।
स्टाफ, माहौल पहले ही जान लें
प्ले स्कूल को कितना अनुभव है। उनका स्टाफ कैसा है। वे पर्यावरण, रचनात्मक काम और बाल मनोविज्ञान के मानक पर कितने खरे हैं यह जरूर पता करना चाहिए। यह आसान है, आसपास के लोगों से जानकारी ली जा सकती है या जो बच्चे प्ले स्कूल से पढ़ चुके हैं उनके परिवार से बात की जा सकती है।
सुरक्षा के पहलू न करें नजरअंदाज
बच्चे की सुरक्षा को लेकर सचेत रहें। सबसे पहली बात कि फर्श फिसलन भरा तो नहीं, बाथरूम साफ है ,बच्चों को छत पर तो नहीं ले जाते। वहां कोई डिटर्जेंट वगैरह ऐसे ही फैलाकर नहीं रख दिया जाता। हाल ही में एक खबर पढ़ी थी कि छोटे-छोटे बच्चों ने स्कूल के बाथरूम में रखी एक बोतल खोली उसमे एसिड था जो सफाई करने को रखा था। जरूरी है सारी चीजों का अवलोकन करें। बच्चों को पीने का पानी कैसा मिल रहा है यह भी जरूर देखना-जांचना चाहिए। उन्हें जो खिलौने वगैरह दिये जाते हैं वे लोहे, एल्यूमिनियम,कठोर प्लास्टिक से निर्मित या नुकीले तो नहीं, इसकी जानकारी जरूर लीजिए।
बच्चा उदास लगे तो…
बच्चा प्ले स्कूल से आकर खुश नहीं होता, बार-बार रोता है या मन मारकर जाता है तो इसे गंभीरता से लेना चाहिए। कारण का पता लगाना चाहिए। यह महत्वपूर्ण ही नहीं, अनिवार्य है। इसके बारे में स्कूल प्रबंधन या टीचर से बात की जा सकती है।
एक्टीविटीज का स्पेस
एक जरूरी बात यह भी कि वहां पर बच्चों के लिए गीत-संगीत, नाचना, खेलना, झूला और बाकी चीजें सीखने का जो स्थान है वह कैसा है- वह कोई बड़ा हॉल है या खुला-खुला मैदान। वहां कैसे उपकरण हैं, इसका पता जरूर लगायें।
बात खानपान की
अगर प्ले स्कूल में नाश्ता दिया जाता है तो एक बार आप भी चख कर उसकी शुद्धता और ताजा या बासी है यह परख लें। यदि बच्चे को टिफिन घर से देते हैं तो हर रोज चेक करें कि उसने खाया है या नहीं।