आध्यात्मिक ऊर्जा से सेवांजलि : The Dainik Tribune

आध्यात्मिक ऊर्जा से सेवांजलि

आध्यात्मिक ऊर्जा से सेवांजलि

अरुण नैथानी

देश में सदियों से अध्यात्म का प्रकाश पुंज मानव कल्याण का मार्ग प्रशस्त करता रहा है। सही मायनों में अध्यात्म के मायने ही हैं मानव कल्याण की संवेदनशील दृष्टि। मनुष्य में वह सात्विकता जगाना जो मनुष्य को आत्मकेंद्रित के बजाय समाज कल्याण केंद्रित बनाये। व्यक्ति में सतोगुण का जागरण करना। बीती सदी में महिलाओं को विश्व को शांति व शक्ति प्रदान करने के लिये जो ज्ञान कलश संस्थापक ब्रह्मा बाबा ने सौंपा उसकी ऊर्जा से आज मानवता समृद्ध हो रही है। जिसके चलते आज माउंट आबू में अध्यात्म व शांति की राजधानी विकसित हुई है। निस्संदेह, जब व्यक्ति के संकल्प के साथ साधना जुड़ जाती है तो नई ऊर्जा व शक्ति का सृजन होता है। अध्यात्म के साथ मानव कल्याण के लिये शिक्षा, स्वास्थ्य, जनजागरण और पर्यावरण संरक्षण के लिये देशव्यापी मुहिम अब सकारात्मक प्रतिसाद देने लगी है। खान-पान की शुद्धता के अभियान के साथ प्राकृतिक खेती की मुहिम स्वस्थ जीवन की राह प्रशस्त कर रही है। जाग्रत होकर सेवा संकल्पों को लेकर प्रतिबद्ध ब्रह्माकुमारीज़ संस्थान दशकों से जल संरक्षण और सौर ऊर्जा के व्यावहारिक उपायों को मूर्त रूप देता रहा है।

मन को मधुबन बनाने के लिये राजयोग मेडिटेशन को संजीवनी बूटी मानने वाले संस्थान ने इसे आत्मसात करके आत्मसंयम की राह दिखायी है। निस्संदेह, राजयोग की प्राचीन संस्कृति के जरिये साधारण व्यक्ति भी अपने कर्म की गुणवत्ता को बढ़ा सकता है। वर्ष 2022 में संस्था के मुख्यालय शांतिवन पहुंचे 140 देशों के चार लाख से अधिक लोगों की भागीदारी इस अभियान की व्यापकता को ही उजागर करती है। बीते साल चले अभियानों के अंतर्गत भारत सरकार द्वारा चलाये जा रहे अमृत महोत्सव से स्वर्णिम भारत की ओर अभियान, शिव जयंती महोत्सव, राष्ट्रीय संत समागम, पृथ्वी दिवस सम्मेलन, मूल्यनिष्ठ पत्रकारिता, पद्मश्री विभूतियों का सम्मेलन, आध्यात्मिक शिविर, वैश्विक शिखर सम्मेलन, प्राकृतिक व यौगिक खेती के लिये किसान सम्मेलन,सुरक्षा सेवा पर राष्ट्रीय सम्मेलन, गीता जयंती महोत्सव, आध्यात्मिक सशक्तीकरण सम्मेलन तथा जल जन अभियान के आयोजन में लाखों लोगों ने भागीदारी की।

दरअसल, तीव्र गति से भौतिकवादी सोच में रंगते समाज में जीवन मूल्यों का संकट गहराता जा रहा है। निश्चित तौर पर सिर्फ भौतिक विकास को संपूर्णता का विकास नहीं कहा जा सकता। हमारे विकास की परिभाषा तब तक अधूरी है जब तक हम व्यक्ति का मानसिक, सामाजिक, बौद्धिक व आध्यात्मिक विकास नहीं करते। सही मायनों में आध्यात्मिक विकास ही मनुष्य में मानवता का विकास कर सकता है। हमें मानवता के प्रति संवेदनशील बना सकता है। भौतिक विकास से मिलने वाला सुख तब तक अधूरा है जब तक हमारा आध्यात्मिक विकास नहीं हो जाता। निस्संदेह, संस्कारों के निर्माण से ही व्यक्ति व समाज का आध्यात्मिक स्तर ऊपर उठाया जा सकता है। आज हमारे समाज में हिंसा, अपराध,तनाव व नशाखोरी जैसी व्याधियों का खात्मा आध्यात्मिक ऊर्जा के उन्नयन से ही संभव है।

निस्संदेह, सामाजिक बदलाव की इस मुहिम को अब सामाजिक व राजनीतिक स्वीकार्यता मिल रही है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी व राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की संस्था के कार्यक्रमों में लगातार सक्रियता इस मुहिम की सार्थकता को उजागर करती है। यही वजह है कि पिछली दस मई को शांति वन पहुंचकर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कहा कि मैं जब भी ब्रह्माकुमारीज़ में आता हूं तो एक नई आध्यात्मिक अनुभूति होती है। जन आंदोलन बन गये अभियान ने राष्ट्र निर्माण में योगदान के मेरे विश्वास को कई गुना कर दिया है। पूर्व मुख्य प्रशासिका दादी गुलजार के स्मृति स्तंभ में पुष्पांजलि अर्पित करने के बाद पीएम मोदी ने ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ साइंस हॉस्पिटल का भी शिलान्यास किया। दरअसल, आबू रोड पर पचास एकड़ में बनने वाला ग्लोबल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ साइंस हॉस्पिटल ढाई सौ बेड की सुविधा के साथ दो साल में काम करना शुरू कर देगा। आधुनिक सुविधाओं से संपन्न मल्टीस्पेशलिटी हॉस्पिटल में जरूरतमंदों का इलाज कराया जा सकेगा। हॉस्पिटल में मुख्य रूप से न्यूरोलॉजी, न्यूरोसर्जरी,नेफ्रोलॉजी और यूरोलॉजी की विशेष यूनिटें लगायी जाएंगी। खास बात यह है कि इसमें मनोकायिक रोगों का उपचार किया जा सकेगा। इसमें विशेष रूप से मेडिटेशन रूम भी बनाये जाएंगे। मुख्य प्रशासिका राजयोगिनी दादी रतनमोहिनी का दृढ़ विश्वास रहा है कि दवा और दुआ के समन्वय से मरीज जल्दी ठीक हो सकेंगे। प्रधानमंत्री ने इस दौरान ओल्ड एज होम के सेकेंड फेज और नर्सिंग कालेज के एक्सटेंशन का भी शिलान्यास किया। उन्होंने नैतिक मूल्यों को समृद्ध करने के संस्था के प्रयासों को भी सराहा।

इससे पहले राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू कई बार संस्थान के कार्यक्रमों में भागीदारी कर चुकी हैं। उनका मानना रहा है कि दुनिया के कलहपूर्ण व अशांत वातावरण में विश्व का जनमानस आध्यात्मिक शक्ति के पुंज भारत की ओर देख रहा है। उनका कहना था कि आध्यात्मिक सशक्तीकरण से स्वर्णिम भारत की आधारशिला रखी जा सकती है। प्रेम, शांति और आत्मीयता से हम मनुष्य के विकारों को दूर कर सकते हैं। इससे हमारे सत्वगुण का विकास होता है। आज दुनिया का कल्याण विज्ञान के साथ आध्यात्मिक शक्ति से हो सकता है। जीवन की हर कठिनाई में अध्यात्म हमें जूझने की शक्ति देता है।

नशा मुक्त भारत की पहल

संस्था द्वारा मेरा स्वस्थ भारत व नशा मुक्त भारत अभियान को सार्थक प्रतिसाद मिला है। इसके अंतर्गत जागरूकता अभियान, कार्यशाला, प्रदर्शनी व रैलियों का आयोजन किया जा रहा है। देशभर में 2602 नशामुक्ति अभियान के अंतर्गत कार्यक्रम आयोजित किये गये। इसके अंतर्गत स्कूल, कालेज, सामाजिक संस्थाओं में जागरूकता कार्यक्रम, रैलियां, काउंसलिंग व वर्कशॉप आयोजित की गईं। नशे के घातक परिणामों पर प्रकाश डालते हुए युवाओं से इससे दूर रहने का आह्वान किया गया। इसके अलावा आध्यत्मिक ऊर्जा से इस पर काबू करने के उपायों की जानकारी भी दी गई। युवाओं में नशामुक्ति की अलख जगाने के क्रम में ब्रह्माकुमारीज़ ने केंद्रीय सामाजिक न्याय और आधिकारिता विभाग के साथ एमओयू साइन किया। जिसके अंतर्गत संस्था के सदस्य स्कूल व कालेजों में सेमिनार व मोटिवेशनल वर्कशॉप के जरिये युवाओं को जागरूक करेंगे। सरकार का भी मानना है कि युवा-धन नशे से मुक्त रहकर ही राष्ट्र के उत्थान में योगदान कर सकता है जिसमें आध्यात्मिक मार्गदर्शन सहायक हो सकता है।

जल संरक्षण की अनूठी मुहिम

यह विडंबना ही है कि प्रकृति द्वारा प्रदत अमूल्य जीवनदायी जल की सीमित मात्रा के बावजूद हम इस दिशा में गंभीर नहीं हैं। इसे बचाने के लिये हमें एक सैनिक की भांति कार्य करने की जरूरत है। इस संकट को ब्रह्माकुमारीज़ ने पहले ही भांप लिया था। संस्था ने जल जन अभियान में भागीदारी से इस अभियान को गति दी। यह अभियान भारत सरकार के जल शक्ति मंत्रालय के साथ-सहयोग से चलाया जा रहा है। इस कार्यक्रम में दस हजार से अधिक लोगों ने जल संरक्षण की शपथ ली। दरअसल, संस्था का मानना रहा है कि जल व प्रकृति के संरक्षण के प्रति सामूहिक चेतना का निर्माण करके ही जल संरक्षण के लक्ष्य हासिल किये जा सकते हैं। उल्लेखनीय है कि ब्रह्माकुमारीज़ का जल संरक्षण में विशिष्ट योगदान रहा है। इसके मुख्य केंद्र शांतिवन व ज्ञान सरोवर आदि स्थानों पर जल संरक्षण के लिये इको फ्रेंडली सिस्टम का निर्माण किया गया है। शांतिवन में भूमिगत जलस्तर को संरक्षित करने के लिये 32 लाख लीटर जल भंडारण की व्यवस्था की गई है।

यौगिक व जैविक खेती की जागृति

दरअसल, किसानों के कल्याण, उत्थान और आर्थिक सशक्तीकरण के मकसद से बनाये गये संस्था के कृषि व ग्राम विकास प्रभाग ने अमृत महोत्सव के दौरान 9481 कार्यक्रम कर 21 लाख ग्रामीणों व किसानों को यौगिक व जैविक खेती की बारीकियों की जानकारी देने का दावा किया है। वहीं तमाम सामाजिक समस्याओं व कुरीतियों के विरुद्ध जनजागरण अभियान चलाकर आध्यात्मिक जागृति में समाधान तलाशने का प्रयास किया है। दरअसल, संस्था ने वर्ष 1996 में यौगिक खेती से जुड़े प्रभाग की स्थापना की थी। वैज्ञानिकों की मदद से राजयोगियों ने शाश्वत यौगिक-जैविक खेती की शुरुआत की। आज हजारों किसान इस पद्धति का उपयोग करके आर्थिक स्वावलंबन हासिल कर रहे हैं। निस्संदेह, रासायनिक खेती के जहर से मानवता को मुक्त करने के लिये प्राकृतिक खेती की आवश्यकता महसूस की जा रही है। तभी हम स्वस्थ समाज की कल्पना को साकार कर सकते हैं। विभिन्न सम्मेलनों में आये कृषि विशेषज्ञों, मेडिटेशन एक्सपर्ट और प्रगतिशील किसानों ने चिंतन-मनन से यह निष्कर्ष निकाला है कि प्राकृतिक-यौगिक खेती किसानों की तकदीर बदल सकती है। इसके जरिये कम लागत में अधिक लाभ कमाया जा सकता है।

कल्पतरूह महाभियान

निस्संदेह, स्वस्थ प्रकृति के बिना स्वस्थ जीवन की कल्पना नहीं की जा सकती। जन्म से लेकर मृत्यु तक प्रकृति हमें लगातार जीवनदायिनी सांसें देती है, लेकिन हम अपने दायित्वों का निर्वहन नहीं करते। ऐसे में हम कम से कम एक पौधा लगाकर प्रकृति संरक्षण में योगदान दे सकते हैं। संस्था का मानना रहा है कि यदि हम प्रकृति की चेतना का संरक्षण करते हैं तो प्रकृति भी हमारी रक्षा करती है। मानव की आपराधिक लापरवाही के चलते ही आज दुनिया में ग्लोबल वार्मिंग का भयावह संकट पैदा हुआ है। जिसे हम पौधरोपण से कम कर सकते हैं। ब्रह्माकुमारीज़ ने बीते वर्ष पूरे देश में एक अभिनव अभियान कल्पतरूह पौधरोपण अभियान चलाकर सोलह लाख पौधे लगाये। इस अभियान की शुरूआत पर्यावरण दिवस की पचासवीं वर्षगांठ पर पांच जून 2022 को की गई और यह अभियान 75 दिन तक चला। इतना ही नहीं, पौधों का जीवन बरकरार रहे, इसकी मॉनिटरिंग एप के जरिये की गई। दुनिया के तीस देशों में इस अभियान के तहत पौधे लगाये गये। साथ ही पर्यावरण अनुकूल जीवन शैली जीने पर बल दिया गया। एक विशिष्ट अभियान के तहत पैंफलेट्स और ब्रोशर पर भी बीज लगाये गये। ताकि कभी हम इन पैंफलेट्स को फाड़कर कहीं डालें तो उसमें से बीज अंकुरित होकर पौधे का रूप ले लें।

सड़क सुरक्षा से जीवन रक्षा

जिस देश में हर साल साढ़े चार लाख दुर्घटनाओं में डेढ़ लाख लोग जान गवां देते हों, वह सड़क सुरक्षा हमारी प्राथमिकताओं में शामिल होनी चाहिए। इस संकट को महसूस करते हुए संस्था के यातायात एवं परिवहन विभाग ने देशव्यापी सड़क सुरक्षा अभियान चलाया और 1677 कार्यक्रम आयोजित किये। सड़क सुरक्षा का संदेश लेकर हजारों राजयोगी बाइकर्स देश के विभिन्न भागों में जनजागरण के लिये निकले। इसके अंतर्गत एक हजार सम्मेलन स्कूल-कालेज, हॉस्पिटल, ऑटो एवं टैक्सी यूनियन, आरटीओ और पुलिस स्टेशनों में आयोजित किये गये। देश भर में पांच सौ मेगा इवेंट आयोजित हुए। इस देशव्यापी अभियान के तहत नौ लाख लोगों को सड़क सुरक्षा की शपथ दिलाई गई ताकि सावधानी से सड़क दुर्घटनाओं को टाला जा सके।

दिव्यांगों में आत्मविश्वास

समाज में दिव्यांगों का हौसला बढ़ाने,जीने की नई राह दिखाने के लिये संस्था का दिव्यांग सेवा प्रभाग आध्यात्मिकता से उनका आत्मबल बढ़ाने के लिये निरंतर कार्य करता रहता है। बीते वर्ष पूरे देश में 216 कार्यक्रम आयोजित किये गये जिसके अंतर्गत 55225 दिव्यांगों को जीने की राह दिखाई गई। उनके लिये दो राष्ट्रीय स्तर के सम्मेलन भी आयोजित किये गये। इसी अभियान के तहत दिव्यांगों की सुविधा के लिये ब्रेल लिपि में मूल्यनिष्ठ और आध्यात्मिक पुस्तकें तैयार की गई। संस्था का मानना है कि दिव्यांगों को दया-करुणा दर्शाने के बजाय आत्मविश्वास जगाने की जरूरत है।

मीडिया में नैतिक मूल्यों पर बल

संस्था ने 38 मीडिया सम्मेलनों के आयोजन से पत्रकारिता को मानवीय मूल्यों के साथ समाज उन्मुखी बनाने पर बल दिया। बीते वर्ष हुए 26वें मीडिया महासम्मेलन में पंद्रह सौ मीडियाकर्मियों ने भाग लिया। कार्यक्रम में आध्यात्मिक मूल्यों के समन्वय से पत्रकारिता के मानवीय पक्षों को सशक्त करने पर बल दिया गया। आह्वान किया गया कि सामाजिक न्याय के लिये मीडिया की भूमिका निर्णायक हो सकती है। साथ ही हालिया ‘राष्ट्रीय विकास में मीडिया के दायित्व ’ विषयक मीडिया कान्फ्रेंस व मेडिटेशन रिट्रीट में मीडिया के नैतिक मुद्दों, सोशल मीडिया के मौजूदा परिदृश्य में सकारात्मकता व नकारात्मकता, मीडिया की विश्वसनीयता के प्रश्न, मीडियाकर्मियों के सशक्तीकरण, मूल्य आधारित राष्ट्र निर्माण में मीडिया की भूमिका आदि विषयों पर विभिन्न मीडिया धाराओं के विशेषज्ञों ने गहन मंथन किया। साथ ही मीडिया के सामने उत्पन्न चुनौतियों पर भी गंभीर विमर्श हुआ।

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