कुदरत के रौद्र की चोट से उपजा टोंगा विस्फोट : The Dainik Tribune

कवर स्टोरी

कुदरत के रौद्र की चोट से उपजा टोंगा विस्फोट

कुदरत के रौद्र की चोट से उपजा टोंगा विस्फोट

मुकुल व्यास

प्रशांत महासागर में टोंगा के पास पानी के भीतर ज्वालामुखी फटने की घटना के करीब डेढ़ साल बाद भी वैज्ञानिक इस प्रचंड विस्फोट के प्रभावों का विश्लेषण कर रहे हैं। विस्तृत जांच के बाद उन्होंने इस बात की पुष्टि की है कि यह विस्फोट रूस और अमेरिका में अब तक हुए सबसे बड़े परमाणु विस्फोटों से भी अधिक शक्तिशाली था। दक्षिण प्रशांत में टोंगा के जलगत हंगा टोंगा-हंगा हापाई ज्वालामुखी ने 20,000 ओलिंपिक स्विमिंग पूलों जितना पानी पृथ्वी के समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) में फेंका था। इसने 7.4 तीव्रता का भूकंप भी उत्पन्न किया। इससे निकली सुनामी लहरें रूस, अमेरिका और चिली तक महसूस की गई थीं।

सदीभर में नहीं ऐसी मिसाल

मियामी विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों ने टोंगा द्वीप समूह से टकराने वाली विशाल सुनामी का अनुकरण करने के लिए उपग्रह और समुद्र के नीचे के डेटा का उपयोग किया। इस अध्ययन से पता चला कि यह विस्फोट एक सदी से भी अधिक समय में सबसे बड़ा प्राकृतिक विस्फोट था। इसकी टक्कर का विस्फोट 1883 में इंडोनेशिया के क्राकाटाऊ ज्वालामुखी में हुआ था जिसमें 36,000 से ज्यादा लोग मारे गए थे। ध्यान रहे कि टोंगा के मुख्य द्वीप से लगभग 65 किमी दूर दक्षिणी प्रशांत महासागर में 15 जनवरी 2022 को हंगा टोंगा-हंगा हापाई ज्वालामुखी में भयानक विस्फोट हुआ था। इसने राख का बड़ा बादल छोड़ा जो 57 किलो मीटर ऊंचा था। कहा जाता है कि इस विस्फोट से रूस के जार बॉम्बा से अधिक ऊर्जा निकली थी जो अब तक का सबसे शक्तिशाली परमाणु बम विस्फोट माना जाता है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है कि विस्फोट की ताकत और भयंकर सुनामी के बावजूद टोंगा द्वीप समूह में केवल चार और पेरू में दो मौतें दर्ज की गईं।

प्रभाव को मापने के प्रयास!

शोधकर्ताओं ने इन विस्फोटों के समुद्र पर पड़ने वाले प्रभाव का अनुकरण करने के लिए पहले और बाद में लिए गए उपग्रह चित्रों, ड्रोन चित्रों, क्षेत्र अवलोकनों और समुद्र तल के डेटा का उपयोग किया। इस अनुकरण से पता चला कि कि टोफुआ द्वीप ने 30 मीटर से अधिक ऊंची लहरों का सामना किया होगा। चूंकि यह निर्जन टापू है, इसलिए वहां जानमाल की हानि नहीं हुई। दूसरी तरफ, टोंगा की राजधानी और सबसे बड़े शहर नुकुआलोफा ने केवल 17 मीटर तक की लहरों का अनुभव किया, जबकि यह विस्फोट स्थल के दक्षिण में सिर्फ 64 किमी दूर है। शोधकर्ताओं का मानना है कि टोफुआ और टोंगाटापू द्वीपों द्वारा महसूस की गई लहरों के आकार में अंतर आंशिक रूप से उनके भूगोल के कारण है। टोफुआ गहरे पानी में स्थित है जबकि टोंगाटापू उथले पानी से घिरा हुआ है। यह उथला समुद्र एक तरह से लहर जाल के रूप में काम करता है, क्योंकि यह विस्थापित करने के लिए कम पानी प्रदान करता है। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि कोविड महामारी के कारण पर्यटकों की संख्या में कमी से भी हताहतों की संख्या कम रही। साइंस एडवांसेज में प्रकाशित इस अध्ययन के प्रथम लेखक डॉ.सेम पुरकिस ने कहा कि भले ही 2022 में टोंगा एक बड़ी तबाही से बच गया हो लेकिन दूसरे जलगत ज्वालामुखियों में भविष्य में सुनामी पैदा करने की क्षमता है। टोंगा विस्फोट भविष्य की सुनामी के लिए महत्वपूर्ण सबक रखता है। यह विस्फोट उन मॉडलों का परीक्षण करने के लिए एक उत्कृष्ट प्राकृतिक प्रयोगशाला थी जिन्हें भविष्य में आपदा की तैयारी में सुधार के लिए कहीं और तैनात किया जा सकता है।

पर्यावरणीय बदलावों संबंधी आकलन

कुछ समय पहले वैज्ञानिकों के अन्य दल ने पता लगाया था कि टोंगा विस्फोट के प्रभावों से हमारा ग्रह गर्म हो सकता है। उन्होंने हिसाब लगाया कि ‘हंगा टोंगा-हंगा हापाइ’ ज्वालामुखी के विस्फोट से भारी मात्रा में राख और ज्वालामुखीय गैसों के बाहर आने के अलावा वायुमंडल में 4.5 करोड़ मीट्रिक टन जल वाष्प भी फैली। वाष्प की इस विशाल मात्रा ने वायुमंडल की दूसरी परत, स्ट्रेटोस्फियर में नमी की मात्रा में लगभग 5 प्रतिशत की वृद्धि कर दी। पृथ्वी से 10 से 50 किलोमीटर ऊपर वायुमंडल की परत स्ट्रेटोस्फियर कहलाती है जिसे समताप मंडल भी कहा जाता है। जल वाष्प फैलने से स्ट्रेटोस्फियर के ठंडा होने और सतह के गर्म होने के चक्र की शुरुआत हो सकती है और ये प्रभाव आने वाले महीनों तक बने रह सकते हैं।

सैकड़ों किलोमीटर तक फैलाव

अमेरिका के नेशनल ओशनिक एंड एटमॉस्फेरिक एडमिनिस्ट्रेशन के अनुसार विस्फोट 260 किलोमीटर तक फैला और इसने राख, भाप और गैस के ‘स्तंभों’ को हवा में 20 किलोमीटर ऊपर भेज दिया। बड़े ज्वालामुखी विस्फोट आमतौर पर हमारे ग्रह को ठंडा करते हैं। इन विस्फोटों से निकलने वाली सल्फर डाइऑक्साइड पृथ्वी के वायुमंडल की ऊपरी परतों में पहुंच कर सौर विकिरण को अवरुद्ध करती है जिससे ग्रह का तापमान कम होने लगता है। अमेरिका के नेशनल साइंस फाउंडेशन के अनुसार विस्फोट से निकले चट्टान और राख के कण भी सूर्य के प्रकाश को रोककर ग्रह को अस्थायी रूप से ठंडा कर सकते हैं। इस तरह पृथ्वी के अतीत में भी व्यापक और उग्र ज्वालामुखीय गतिविधि ने दुनिया में जलवायु परिवर्तन में योगदान दिया होगा। लाखों साल पहले बड़े पैमाने पर जीव-जंतुओं के विलुप्त होने की शुरुआत इन्हीं जलवायु परिवर्तनों के चलते हुई होगी।

ताप कम करने की ताकत

हाल के विस्फोटों ने ग्रह को ठंडा करने की ज्वालामुखियों की ताकत का भी प्रदर्शन किया है। साल 1991 में फिलीपींस में माउंट पिनाटुबो ने अपना शीर्ष उड़ा दिया था। इस शक्तिशाली ज्वालामुखी विस्फोट से निकले एरोसोल कणों ने कम से कम एक वर्ष के लिए विश्व के तापमान को लगभग 0.5 डिग्री सेल्सियस कम कर दिया था। टोंगा विस्फोट ने लगभग 400,000 मीट्रिक टन सल्फर डाइऑक्साइड छोड़ी जो 1991 के विस्फोट के दौरान माउंट पिनाटुबो द्वारा छोड़ी गई गैस की मात्रा का लगभग 2 प्रतिशत थी। लेकिन पिनाटुबो और जमीन पर होने वाले बड़े ज्वालामुखी विस्फोटों के विपरीत टोंगा के समुद्र के भीतर हुए ज्वालामुखी विस्फोट ने स्ट्रेटोस्फियर में भारी मात्रा में पानी भेजा। पानी के भीतर ज्वालामुखियों के विस्फोट पानी और गर्म मैग्मा की अंतर्-क्रिया से अपनी विस्फोटक ऊर्जा प्राप्त करते हैं। इससे भारी मात्रा में जल वाष्प स्तंभों के रूप में बाहर निकलती है।

असर की व्याख्या

साइंस पत्रिका में प्रकाशित नए अध्ययन के अनुसार टोंगा विस्फोट के 24 घंटों के भीतर भाप के खंबे वायुमंडल में 28 किलोमीटर ऊपर तक फैल गए। रिसर्चरों ने रेडियोसोंड नामक उपकरणों द्वारा एकत्रित आंकड़ों का मूल्यांकन करके इन खंबों में पानी की मात्रा का विश्लेषण किया। ये उपकरण मौसम के गुब्बारों से जुड़े थे और इन्हें ज्वालामुखीय धुएं में भेजा गया था। जैसे ही ये उपकरण वायुमंडल से गुजरते हैं, उनके सेंसर तापमान, वायु दाब और सापेक्ष आर्द्रता को मापते हैं। इस डेटा को जमीन पर एक रिसीवर तक पहुंचाया जाता है। वायुमंडलीय जल वाष्प सौर विकिरण को अवशोषित करता है और इसे गर्मी के रूप में पुन: उत्सर्जित करता है। टोंगा की लाखों टन नमी अब स्ट्रेटोस्फियर में बह रही है। इससे अवश्य ही पृथ्वी की सतह गर्म हो रही होगी। हालांकि यह स्पष्ट नहीं है कि सतह कितनी गर्म होगी। चूंकि वाष्प अन्य ज्वालामुखीय एरोसोल कणों की तुलना में हल्की होती है और गुरुत्वाकर्षण के खिंचाव से कम प्रभावित होती है,इसलिए इस वार्मिंग प्रभाव के घटने में अधिक समय लगेगा और आने वाले महीनों में सतह का गर्म होना जारी रह सकता है।

लेखक विज्ञान संबंधी विषयों के जानकार है।

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