मदन गुप्ता सपाटू
21 जून का दिन इस बार कई कारणों से विशेष रहेगा। सूर्य जल्दी उदय होगा, देर से ढलेगा। सबसे लंबा दिन और सबसे छोटी रात होगी। आम दिनों की तुलना में सूर्य की किरणें अधिकतम समय पृथ्वी पर रहेंगी। इसके बाद सूर्य दक्षिणायन हो जाएगा। इस दिन अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस भी है और निर्जला एकादशी भी।
प्रत्येक वर्ष 24 एकादशियां पड़ती हैं। अधिक मास अर्थात मलमास की अवधि में इनकी संख्या 26 हो जाती हैं। ज्येष्ठ मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी कहा जाता हैै। इस साल यह एकादशी 21 जून, सोमवार को पड़ रही है। इस दिन दो शुभ योग- शिव तथा सिद्धि योग, इस एकादशी को और महत्वपूर्ण एवं सार्थक बना रहे हैं। शिव योग 21 जून की सायं 05ः34 बजे तक रहेगा। इसके पश्चात सिद्धि योग आरंभ हो जाएगा। ज्योतिषीय दृष्टि से सूर्य मिथुन, चंद्र तुला व स्वाति नक्षत्र, मंगल नीच राशि कर्क, वक्री शनि मकर तथा वक्री गुरु कुंभ राशि में रहेंगे।
सिद्धि योग सभी इच्छाओं को पूरा करने वाला माना जाता है और इस अवधि में किया गया प्रत्येक कार्य सफल होता है। शिव योग बहुत शुभ कहा जाता है और मान्यतानुसार इस दौरान किए गये धार्मिक अनुष्ठान, पूजा-पाठ या दान आदि का भी शुभ परिणाम मिलता है।
24 एकादशियों का फल देने वाला व्रत
निर्जला एकादशी का व्रत सूर्योदय से लेकर अगले दिन के सूर्योदय तक 24 घ्ांटे की अवधि का माना जाता है। इस बार यह एकादशी 20 जून, रविवार को शाम 4 बजकर 21 मिनट से शुरू होगी और 21 जून, सोमवार को दोपहर 1 बजकर 31 मिनट तक रहेगी। व्रत 21 को रखा जाएगा। व्रत का पारण 22 जून को सुबह 5 बजकर 13 मिनट से 8 बजकर 1 मिनट तक किया जा सकता है। इस व्रत में पानी नहीं पीया जाता, इसलिए इसे निर्जला कहा गया है। इस एकादशी का प्रारंभ महाभारत काल के एक संदर्भ से माना गया है, जब सर्वज्ञ वेदव्यास ने पांडवों को धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष देने वाले व्रत का संकल्प कराया तो भीम ने कहा कि आप तो 24 एकादशियों का व्रत रखने का संकल्प करवा रहे हैं, मैं तो एक दिन भी भूखा नहीं रह सकता। पितामह ने समस्या का निदान करते हुए कहा कि आप निर्जला नामक एकादशी का व्रत रखो। इससे समस्त एकादशियों के व्रत का फल प्राप्त होगा। तभी से हिंदू धर्म में यह व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। इस एकादशी को भीमसेनी एकादशी भी तभी से कहा जाने लगा। मान्यता है कि इस दिन जो व्यक्ति स्वयं प्यासा रहकर दूसरों को जल पिलाएगा, वह धन्य कहलाएगा। यह व्रत कोई भी रख सकता है। इस दिन भगवान विष्णु की आराधना का विशेष महत्व है।
ऐसे रखें व्रत
सुबह सूर्याेदय से पहले उठें और भगवान विष्णु की मूर्ति या शालिग्राम को दूध, दही, घी, शहद व शक्कर से स्नान कराएं या चित्र के आगे ज्योति प्रज्वलित करके तुलसी एवं फल अर्पित करते हुए आराधना करें। मूर्ति को नये वस्त्र अर्पित करें। या किसी मंदिर में भगवान विष्णु के दर्शन करें। निर्जल व्रत रखें। ॐ नमो भगवते वासुदेवाय मंत्र का जाप करें। इस दिन जल, वस्त्र, छतरी, घड़ा, खरबूजा, फल, शरबत आदि का दान करना लाभकारी रहता है। या गर्मी से बचने की सामग्री दान करें। अगले दिन जल ग्रहण करके व्रत का समापन करें। धार्मिक महत्व की दृष्टि से इस व्रत का फल लंबी उम्र, स्वास्थ्य के साथ-साथ सभी पापों का नाश करने वाला माना गया है।
तुलसी पूजन का महत्व
हर एकादशी के दिन तुलसी की खास पूजा की जाती है। निर्जला एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना की जाती है और भगवान विष्णु को तुलसी अति प्रिय है। इसलिए इस दिन तुलसी पूजन का काफी महत्व होता है। माना जाता है कि जिस घर में तुलसी का पौधा होता है, वहां देवी-देवताओं का वास होता है। निर्जला एकादशी के दिन तुलसी की पूजा करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान के बाद तुलसी के पौधे में साफ पानी या गंगाजल चढ़ाएं। दीपक जलाएं और तुलसी पर हल्दी व सिंदूर चढ़ाएं। महाप्रसाद जननी सर्व सौभाग्यवर्धिनी, आधि व्याधि हरा नित्यं तुलसी त्वं नमोस्तुते… इस मंत्र का जाप करें।
कोरोना काल में क्या दान करें : आज के कोरोना काल में यदि परंपरानुसार छबील लगाते हैं, तो मीठे शर्बत के बजाय, अच्छे फलों के ताजा या पैक्ड जूस वितरित करें। आज के समय में आप जनहित में आंवला, लौकी, गिलोय, एलोवेरा, गन्ने, व्हीटग्रास का जूस बांट सकते हैं। इससे भी अधिक सार्थक होगा कोविड के दौरान प्रयोग आने वाले चिकित्सकीय उपकरण बांटना। लोगों को रोक-रोक कर मीठा दूध या पानी पिलाने के बजाय बेहतर होगा कि सामाजिक दूरी और स्वच्छता का ख्याल रखते हुए बैनर लगाएं, जिसकी इच्छा हो वह पीये या घर ले जाये। पीने और पिलाने वाले, दोनों कोरोना संकट से बचे रहें, इसके लिए विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। आप निर्जला एकादशी पर सार्वजनिक स्थानों पर प्याऊ लगवा सकते हैं। वाटर कूलर की व्यवस्था कर सकते हैं, निर्धनों को खरबूजे, तरबूज जैसे अधिक जल वाले फल दे सकते हैं। इसके अलावा फलदार व छायादार वृक्षों के पौधे लगाएं। जहां जनसाधारण को आवश्यकता हो, अपनी क्षमतानुसार या चंदा एकत्रित करके एयर कंडीशनर, पंखे, कूलर आदि का दान कर सकते हैं।
सर्वे भवन्तु सुखिनः
यह व्रत हमारे देश की संस्कृति का प्रतिनिधित्व करता है जहां कहा गया है- सर्वे भवन्तु सुखिनः… तथा सरबत दा भला। विश्व का कल्याण हो, प्राणियों में सद्भावना हो। समाज का कमजोर वर्ग असहाय न रह जाए, सभी सुखी रहें, निरोगी रहें। एक-दूसरे के प्रति समाज में समर्पण की भावना रहे, एक-दूसरे की सहायता को तत्पर रहें। सिख समुदाय कई अवसरों पर छबील लगाकर भारतीय दर्शन को आगे बढ़ाता है और भारत में ही नहीं अपितु विश्व में सरबत दा भला की फिलाॅसफी का प्रतिनिधित्व करता है। ऐसे पर्वों को सामूहिक रूप से मनाना आज के संदर्भ में और भी महत्वपूर्ण एवं समय की मांग हो गया है।