पर्यटकों की भीड़ में बाघ भी बेहाल : The Dainik Tribune

पर्यटकों की भीड़ में बाघ भी बेहाल

पर्यटकों की भीड़ में बाघ भी बेहाल

प्राकृतिक वातावरण में स्वच्छंद विचरण करते बाघ को देखना हो तो उत्तराखंड का जिम कार्बेट उम्दा अभयारण्य है। लेकिन पर्यटकों की बढ़ी भीड़ यहां की जैव विविधता पर खतरा बनती जा रही है। ऐसे में बेहतर है नगरों से जो लोग यहां सुकून लेने आयें वे वन्य जीवों की सुविधा का पूरा ख्याल रखें।

शंभूनाथ शुक्ल

जिम कॉर्बेट में नवम्बर से मार्च के बीच में इतनी भीड़ आती है, कि यह बाघ अभयारण्य अब बाघों से दूर होता जा रहा है। यहां की जैव विविधता नष्ट हो रही है और इसकी वज़ह है, लोगों में टूरिज़्म की ललक। ये टूरिस्ट वन्य जीवों को देखने नहीं आते बल्कि दिल्ली-लखनऊ, चंडीगढ़ की भीड़ और प्रदूषण से बचने के लिए यहां का रुख़ करते हैं। नतीजा महानगरों का प्रदूषण यहां भी पहुंच रहा है। रामनगर में तो इतनी भीड़ है कि सड़क पर वाहनों का निकलना दूभर है। हालांकि इधर सरकार ने काफ़ी सख़्ती कर दी है, फिर भी लोग यहां शहरी प्रदूषण फैलाने में क़तई नहीं हिचकते।

बाघ देखने हों तो...

लेकिन कुछ भी हो, बाघ अगर देखने हों तो उत्तराखंड का जिम कार्बेट और यूपी का अमानगढ़ सबसे उम्दा अभयारण्य हैं। दिल्ली से जिम कार्बेट जाने का सबसे सुगम रास्ता है वाया गजरौला, मुरादाबाद, ठाकुरद्वारा, काशीपुर और राम नगर होकर। लेकिन मुरादाबाद से ठाकुरद्वारा के बीच सड़क बहुत ख़राब है। इसलिए लौटने में हमने रूट रामनगर से कालाढूंगी, बाजपुर, रुद्रपर से रामपुर का बनाया। वहां से दिल्ली के लिए एनएच-24 (इसे अब एनएच-9 कहते हैं) पर चढ़े। रामनगर में रात बिताकर सुबह आप जिम कार्बेट में प्रवेश ले सकते हैं। जिम कार्बेट के अंदर वन विभाग के रेस्ट हाउसेज हैं पर उनमें बुकिंग पहले से करानी पड़ती है। इनमें से कुछ ऑन लाइन बुक होते हैं, लेकिन कोर एरिया वाले ऑफ़ लाइन।

सफ़ारी की जिप्सी, परमिट भी

जितने भी प्राइवेट होटल या रिजॉर्ट हैं, वे इन रेंज के बाहर हैं। ये होटल महंगे भी हैं। पांच से दस हज़ार के बीच में सामान्य दर्जे के होटल। और वहां से जंगल सफ़ारी का आनंद लेने के लिए आपको रेंज के अंदर जाना पड़ेगा। इसलिए रेंज के भीतर रुकना बेहतर रहता है। जिम कॉर्बेट के किसी भी रेंज में जाने के लिए आपको अपनी गाड़ी राम नगर में छोड़नी पड़ेगी और सफ़ारी वालों की जिप्सी ले कर ही आप फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस तक जा सकते हैं। रेंज के अंदर निजी गाड़ी ले जाने की अनुमति नहीं है। यह जिप्सी आपको 3500 रुपए प्रतिदिन की दर से मिलती है। अंदर जाने का परमिट आपको राम नगर के परमिट ऑफ़िस से मिलेगा। इसके तहत प्रति व्यक्ति फ़ीस 250 रुपए देनी होगी। जिप्सी की एंट्री का 1000 रुपए अलग से देना होगा। अंदर के रेस्ट हाउस 1250 से 2500 रुपए प्रति कमरे की दर से मिलेंगे। मैंने झिरना रेंज के ओल्ड फ़ॉरेस्ट रेस्ट हाउस में सुइट तीन दिन दो रातों के लिए बुक क़राया था। चूंकि यह 1908 का बना हुआ है और आज भी उसकी वैसी ही शक्ल है। इसलिए यह रेस्ट हाउस 5000 रुपए प्रति दिन की दर से था। इस सुइट में दो बेड रूम और एक ड्रॉइंग रूम था। अंदर खाने का प्रति मील प्रति व्यक्ति 300 रुपए था और रूम सर्विस अलग। मेरे साथ मेरे परिजन थे। इस रेंज के लिए ढेला गेट से प्रवेश करते हैं, जो राम नगर से 20 किमी है। उधर धनगढ़ी गेट से प्रवेश लेकर आप ढिकाला पहुंच सकते हैं वहां पर फारेस्ट के रेस्ट हाउसेज के अलावा एक गेस्ट हाउस भी है। उसमें कई रूम मिल जाते हैं। इसके अलावा रामनगर-धनगढ़ी रूट में रामगंगा किनारे बहुत सारे प्राइवेट होटल भी हैं।

टूरिज्म और घुमक्कड़ी

घुमक्कड़ी और टूरिज्म में फर्क है। घुमक्कड़ी एक लगन है, एक जुनून और इसके लिए पैसों की जरूरत नहीं होती। लेकिन टूरिज्म एक व्यवसाय है। एक घुमक्कड़ दुनिया घूमता है कुछ नया जानने के लिए और कुछ नया समझने के लिए। वह शांति पूर्वक, धैर्य के साथ कहीं भी किसी भी जगह रह लेगा और बसर कर लेगा। लेकिन एक पर्यटक बिना शोर-शराबे के नहीं रह सकता। दरअसल पर्यटन ने सारे संसार का नक्शा बिगाड़ दिया है। उसे चाहिये अय्याशियां और हर तरह के व्यंजन। बैंकाक हो, मकाऊ हो, मनीला हो या दुबई आज इसीलिए बदनाम हैं। लेकिन वहां की सरकारें इसे अच्छा समझती हैं। यही हाल अपने देश में होता जा रहा है। पर राज्य सरकारें पैसों के लालच में पर्यटकों को लुभाने के लिए वह सब करती हैं जिनसे वहां की जलवायु प्रभावित होती है और संस्कृति का ढांचा बिगड़ता है।

अभयारण्य को खतरा

हमारे देश में बाघों को बचाने के लिए टाइगर प्रोजेक्ट की स्थापना उस समय की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने 1971 में कपूरथला के महाराजा ब्रजेंद्र सिंह की अगुआई में की थी। उसे राज्य सरकारों ने पैसों के लालच में चौपट कर डाला है। जिम कार्बेट जैसा अभयारण्य इन्हीं पर्यटकों की बेशुमार आवाजाही से खत्म होता जा रहा है। यदि जिम कार्बेट को बचाना है तो केंद्र सरकार इसे अपने हाथों में ले ले और इसे अफसरों और धनाढ्य पर्यटकों के लिए सैरगाह न बनाए। यहां वही आ सकें जिनकी वाइल्ड लाइफ में दिलचस्पी हो वर्ना उन्हें गेट से ही बाहर कर दिया जाए। इसके लिए जिम कार्बेट के हर प्रवेश द्वार पर सुशिक्षित और प्रशिक्षित लोग रहें जो पर्यटकों को अंदर प्रवेश की अनुमति तभी दें जब वे खुद उनके संयम से संतुष्ट हो जाएं। विडंबना है कि उत्तराखंड की सरकारें जिम कार्बेट का व्यवसायीकरण करे डाल रही है। इस पर अंकुश बहुत जरूरी है।

लंबी-लंबी घास का जंगल

हिमालय की तराई में शिवालिक पहाडि़यों के आसपास का सारा जंगल रामगंगा के दोनों तरफ लंबी-लंबी घास के जंगलों से घिरा है। इन्हीं घास के जंगलों में बाघ रहता है। सूर्य की रोशनी उसके शरीर में लंबी घास के बीच में से आती है। इसीलिए बाघ के शरीर में चारों तरफ लाइनें होती हैं। असल में जंगल के कुछ कायदे-कानून होते हैं उन्हें हमें फॉलो करना चाहिए। किसी भी अभयारण्य में हथियार लेकर अथवा कोई मादक पदार्थ लेकर नहीं जा सकते। अभयारण्य का मतलब ही है कि हम वाइल्ड लाइफ के बीच जा रहे हैं। यह उनका घर है इसलिए हमें उनकी सुविधा-असुविधा का ख्याल रखना चाहिए। हम वहां जंगल में गेस्ट हाउस के बाहर कुछ खाएं-पिएंगे नहीं। कोई पॉलीथीन नहीं इस्तेमाल करेंगे और कोई चीज़ फेकेंगे नहीं। न ही हम वहां शोर शराबा अथवा मोबाइल इस्तेमाल करेंगे।

वन्य जीवन से जुड़ाव

हर रिजर्व फारेस्ट या अभयारण्य का हाल यह है, कि उन्हें शहर का कूड़ादान बना दिया गया है, वे बस धनी-मानी लोगों के उपभोग की जगह बन गए हैं। यहां तक कि शिवपुरी के माधव राष्ट्रीय उद्यान में तो अब एक भी जंगली जानवर नहीं बचा। वहां की झील के मगरों का शिकार होता है। राजाजी नेशनल पार्क को हाथी तस्करों और सागौन माफिया ने खत्म कर दिया है। प्रकृति के अंधाधुंध दोहन का ही नतीजा है कि जिम कार्बेट के अंदर अब वैसा सन्नाटा नहीं रहता जैसा कि आज से बीस साल पहले था। इसकी वजह है हम प्रकृति के साथ अपना आध्यात्मिक जुड़ाव नहीं कायम कर पाते और उससे हमारा तादात्म्य महज रस्मी होकर रह गया है। आज कौन जाता है जिम कार्बेट? वह नहीं जिसकी वाइल्ड लाइफ में दिलचस्पी है बल्कि वह जाता है जो सक्षम है और जो मेट्रो की आपाधापी से दूर कुछ दिन जाकर अलग किस्म की मस्ती करना चाहता है। नतीजा, हम प्रकृति के साथ रहकर अपना आराम तो कर लेते हैं लेकिन प्रकृति और उसके जीव-जंतुओं का विनाश कर आते हैं। प्रकृति के साथ रहना है तो उसकी संस्कृति का और उसकी विविधता का आनंद लेते हुए उसके साथ समरसता का व्यवहार करें। यही अंतर है एक घुमक्कड़ और एक पर्यटक में।

(लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं)

सब से अधिक पढ़ी गई खबरें

ज़रूर पढ़ें

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

तोड़ना हर चक्रव्यूह...

सचेत रहकर टालें घर के प्रदूषण का खतरा

सचेत रहकर टालें घर के प्रदूषण का खतरा

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

बेहतर जॉब के लिए अवसरों की दस्तक

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

सबक ले रचें स्नेहिल रिश्तों का संसार

मुख्य समाचार

100 से ज्यादा शवों की पहचान का इंतजार, ओडिशा ने डीएनए सैंपलिंग शुरू की

100 से ज्यादा शवों की पहचान का इंतजार, ओडिशा ने डीएनए सैंपलिंग शुरू की

278 मृतकों में से 177 शवों की पहचान कर ली गई है

1984 के हमले के जख्मों ने सिखों को 'मजबूत' बनाया, न कि 'मजबूर' : जत्थेदार

1984 के हमले के जख्मों ने सिखों को 'मजबूत' बनाया, न कि 'मजबूर' : जत्थेदार

खालिस्तान समर्थकों ने नारेबाजी के बीच स्वर्ण मंदिर में ऑपरेश...