पतंगबाजी में खेल, मनोरंजन और परंपरा का सुमेल है। मकर संक्रांति व होली जैसे उत्सवों के दौरान तो पतंगें उड़ाने, काटने और बचाने का आलम आम है। वहीं स्थानीय से लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर तक खास पतंगबाजी मुकाबले भी होते हैं। एक टीम ऐसी भी है जो स्पर्द्धाओं में शिरकत कर खास तौर से बनाई पतंगों के जरिये समाज हितकारी संदेश भी देती है।
नरेंद्र कुमार
कर्फ्यू। दीया जलाओ। ज्वाइन आर्मी। अवर हीरोज पुलिस। वेस्ट मैनेजर्स। इन नामों से आपको क्या लगता है। हम बताते हैं आपको कि ये क्या हैं। जनाब ये हैं पतंगों के नाम। मौका, आयोजन के हिसाब से हर थीम पर होता है इनका निर्माण और नील गगन में दूर-दूर तक एक संदेश के साथ इनके पेच लड़ाए जाते हैं। कोरोना काल में लगाए जनता कर्फ्यू, पीएम नरेंद्र मोदी के आह्वान पर जलाए गए दीये का संदेश देने के लिए ये पतंगें बनाकर उड़ाई गईं। यही नहीं, सेना के स्लोगन पर, नौसेना के नाम पर, पुलिसकर्मियों और सफाई कर्मियों के योगदान पर पतंग बना दी गयीं। ये पतंगें बनाई हैं यूथ क्लब इंडियन काइट की टीम ने। मकर संक्रांति आने वाली है और सब जानते हैं कि इस दिन पतंग उड़ाने की खास परंपरा है। इससे पहले गुजरात के अहमदाबाद में 14 जनवरी तक चलने वाले अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव में यह क्लब भाग लेने जा रहा है। वहां जाने से पहले क्लब के सदस्यों ने ‘दैनिक ट्रिब्यून’ से विस्तृत बातचीत की। अंतर्राष्ट्रीय स्तर की पतंगबाजी स्पर्धा में भागीदारी कर चुके इस क्लब के सदस्यों की खूबी है कि ये हर त्योहार और मौके के अनुसार पतंग बना देते हैं। वहीं इनके पास पतंग उड़ाने का हुनर भी गजब का है। उसी गीत के अनुसार जिसके बोल हैं, ‘चली चली रे पतंग मेरी चली रे, चली बादलों के पार होके डोर पे सवार चली-चली रे…।’
टीम लीडर वरुण चड्ढा के मुताबिक, उन्हें बचपन से ही पतंगों का शौक रहा है। उन्होंने बताया, ‘मेरी मां सुनील चड्ढा पतंगें बनाती थीं। उन्हीं से मैंने भी पतंगें बनानी सीखी।’ वरुण ने बताया कि पतंगें मूलत: दो प्रकार की होती हैं। एक कागज की और दूसरी कपड़े की। कागज की पतंगों को मांझे से उड़ाया जाता है। इसे तैयार करने की खातिर शीशे, गोंद और चावल के पानी का इस्तेमाल किया जाता है। पतंग उड़ाने के दौरान शीशे से तैयार मांझे से हाथों को कोई नुकसान न हो इसके लिए उंगलियों पर टेप लगाई जाती है। आमतौर पर कागज की पतंग उड़ाने के लिए 6 तार और 9 तार के मांझे का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन पंजाब, दिल्ली में 12 तार और 16 तार के मांझे का इस्तेमाल होने लगा है, जो पक्षियों के लिए घातक साबित होता है। राजस्थान और यूपी में आमतौर पर 6 तार और 9 तार के मांझे का ही इस्तेमाल होता है।
क्लब के सदस्यों ने बताया कि कपड़े की पतंग अक्सर बड़े स्तर के महोत्सवों में उड़ाई जाती हैं। इसके लिए खुले स्थान की जरूरत होती है, जिससे हवा का फ्लो अच्छा हो। कपड़े की पतंग काफी बड़ी और भारी होती है। ऐसे में इसे उड़ाने के लिए रस्से का इस्तेमाल किया जाता है। इन्हें बनाने के लिए छतरी में इस्तेमाल किए जाने वाले अम्बरेला क्लॉथ या काइट क्लॉथ का इस्तेमाल किया जाता है। वरुण का कहना है कि कपड़े की पतंग बनाने के लिए सबसे ज्यादा हुनर की जरूरत होती है। चूंकि अगर पतंग ठीक नहीं बनी तो वह उड़ेगी ही नहीं। रस्सी का साइज पतंग के आकार पर निर्भर करता है। जितनी बड़ी पतंग होगी उसके लिए रस्सी भी उतनी ही मजबूत होनी चाहिए। पतंग की डोर को संभालने के लिए सभी लोग प्रोफेशनल होने चाहिए। उन्हें यह पता होना चाहिए कि डोर को कब, कितना खींचना और छोड़ना है।
वरुण के मुताबिक, उनकी पतंगें समाज के लिए एक पैगाम होती हैं। उन्होंने बताया कि 2020 में जब कोरोना के दौरान देश में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने जनता कर्फ्यू का ऐलान किया तो उन्होंने लोगों को इसका संदेश देने के लिए कर्फ्यू पतंग बनाकर उड़ाई। इसी तरह कोरोना के दौरान स्वास्थ्य कर्मचारियों के काम को प्रोत्साहित करते हुए ‘वेस्ट मैनेजर्स’ पतंग बनाई। यह पतंग पूरी तरह वेस्ट से बनाई गई। करवा चौथ पर ‘चौदहवीं का चांद’ पतंग बनाकर उड़ाई गयी। सेना में युवाओं को भर्ती के लिए प्रोत्साहित करने के लिए ‘ज्वाइन आर्मी’ पतंग बनाई।
गुजरात में टाइगर पतंग उड़ाने की तैयारी
वरुण बताते हैं कि गुजरात के अहमदाबाद में आयोजित हो रहे अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सव के लिए वे 3 पतंग लेकर आए हैं। इनमें एक है ‘टाइगर पतंग’, जो 27 से 28 फुट की है। यह 3डी पतंग है। इसके अलावा ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ का संदेश देने वाली ‘बेटी पतंग’ को भी वे उड़ाएंगे। 13 से 15 फुट की इस 3डी पतंग में बेटी को स्कूल जाते दिखाया है। इसके अलावा, राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को याद करते हुए ‘द गांधी पतंग’ तैयार की है। यह 28 फुट की है। वे इस महोत्सव में 14 जनवरी तक हिस्सेदारी करेंगे।
35 फुट की पतंग, उड़ान 150 मीटर तक
चड्ढा के मुताबिक, अब तक उन्होंने 35 फुट की पतंग बनाई हैं। ये पतंगें कपड़े की होती हैं और 100 से 150 मीटर की ऊंचाई तक उड़ती हैं। आमतौर पर पतंगों का वजन उनके साइज के हिसाब से होता है। 35 फुट लंबी पतंग 30 किलो तक भारी होती है। अगर यह 3डी में है तो इसका वजन बढ़ जाता है और यह 50 से 55 किलो तक पहुंच जाती है। इन्हें उड़ाने के लिए रस्सी का इस्तेमाल किया जाता है।
बच्चों-युवाओं को जोड़ने की मुहिम
आजकल बच्चे जब मोबाइल फोन से निकलने का नाम नहीं लेते। ऐसे में चड्ढा की टीम ने इन बच्चों को पतंगबाजी से जोड़ने का बीड़ा उठाया है। वरुण का कहना है कि बच्चों को हम मोबाइल छोड़ने के लिए तो कहते हैं लेकिन इसकी जगह हम उन्हें यह नहीं सिखा पाते कि मोबाइल छोड़कर उन्हें करना क्या है। वे बताते हैं कि बच्चों को पतंग अभियान से जोड़ने के लिए वे स्कूलों में जाकर उन्हें जागरूक कर रहे हैं। पतंग उत्सवों के लिए वे युवा टीम भी बना रहे हैं। इसमें 18 से कम उम्र के 100 से ज्यादा बच्चे हैं। चड्ढा बताते हैं कि ट्राइसिटी में उनकी टीम में करीब 160 सदस्य हैं।
अब महिलाएं भी मैदान में
आज जब हर क्षेत्र में महिलाएं आगे आ रही हैं तो भला पतंगबाजी में वे पीछे कैसे रह सकती हैं। यह पूछने पर कि पतंगबाजी में महिलाओं की भागीदारी न के बराबर नजर आती है तो वरुण चड्ढा का कहना है कि उन्होंने पतंगबाजी के लिए महिला टीम भी बनानी शुरू कर दी है। उनके साथ आई महिला पतंग टीम की सदस्य पल्लवी ने कहा कि वे हाल ही में यूथ क्लब इंडियन काइट टीम के साथ जुड़ी हैं। वे अभी पतंगबाजी सीख रही हैं। चड्ढा के मुताबिक, अभी महिला पतंगबाजी टीम में बहुत कम सदस्य हैं। लेकिन टीम के साथ नये महिला सदस्य जोड़ने के लिए वे स्कूलों और कॉलेजों में कैंपेन चला रहे हैं। आप जल्द ही महिला टीम को भी उत्सवों में पतंगबाजी करते देखेंगे।
चीनी मांझा के जोखिम
चीनी मांझे से पक्षियों के जख्मी होने के साथ-साथ कई लोगों की जान तक जा चुकी है। इस बारे में वरुण चड्ढा बताते हैं कि आमतौर पर पतंग उड़ाने के लिए सूती धागे का इस्तेमाल किया जाता है, लेकिन कुछ लोग दूसरों की पतंगों को आसानी से काटने और और स्पर्धाएं जीतने के लिए नाइलोन के धागे या चाइना डोर से पतंग उड़ाते हैं। आसमान में पतंग उड़ने या इसके कटने के दौरान इस धागे के संपर्क में कोई पक्षी आता है तो यह उसे नुकसान पहुंचाती है। वे बताते हैं कि हमारे यहां विशेषकर पंजाब में घरों के ऊपर पतंगें उड़ाई जाती हैं। जब ये कटती हैं तो पेड़ों या तारों में अटक जाती हैं और पक्षियों व लोगों को हानि पहुंचाती हैं। बकौल वरुण, वे पतंग उड़ाने को नाइलोन धागे का इस्तेमाल नहीं करते। जिन फेस्टिवल में वे जाते हैं वहां इसका इस्तेमाल न करने के लिए लोगों को प्रेरित करते हैं।
मां बनाती थी पतंगें
यूथ क्लब इंडियन काइट फ्लाइंग टीम के लीडर वरुण चड्ढा बताते हैं कि वह पतंगबाजी में अपनी मां सुनील चड्ढा की प्रेरणा से आए। अंतर्राष्ट्रीय महोत्सवों के लिए पतंगें कौन बनाता है, के सवाल पर उन्होंने बताया कि पहले उनकी मां पतंगें बनाती थीं, लेकिन अब वह खुद बनाते हैं। उन्होंने कहा कि किसी पतंग महोत्सव में जाने से पहले वह कोई थीम चुनते हैं और उस पर पतंग तैयार करते हैं। वरुण के अनुसार , वह अंतर्राष्ट्रीय पतंग महोत्सवों में भी देश का प्रतिनिधित्व कर चुके हैं। साल 2019 में उन्होंने चीन में आयोजित बीजिंग इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल में हिस्सा लिया। इसमें उन्हें एक कैटेगरी में पहला प्राइज मिला। इंडोनेशिया में बंगाधरन इंटरनेशनल काइट फेस्टिवल फिर बाली इंटरनेशल काइट फेस्टिवल 2019 में उन्होंने 35 फुट की ‘वन इंडिया’ पतंग उड़ाई।