सहज जीवनचर्या में ज़िंदगी का सुख
आपाधापी और हड़बड़ी की जीवनशैली लोगों में कई शारीरिक-मानसिक रोगों की वजह बन रही है। वहीं इससे सामाजिक मेलजोल , निर्णय क्षमता और प्रॉडक्टिविटी पर असर पड़ रहा है। कई अध्ययनों में भी यह तथ्य सामने आया है। ऐसे में सेहत विशेषज्ञ स्लो लिविंग यानी सहज जीवनचर्या अपनाने पर बल दे रहे हैं।
शिखर चंद जैन
आज जिसे देखिए वही जल्दबाजी में है। न खाने का टाइम, न ठीक से नहाने का। न नींद पूरी होती है न परिवार के सदस्यों से ठीक से बातचीत हो पाती है। मनोरंजन और सुकून के लिए फिल्म देखते वक्त भी हम उसे लगातार फॉरवर्ड करते रहते हैं। यहां तक कि 2 मिनट की कोई रील या वीडियो देखते वक्त भी उसे फास्ट स्पीड कर देते हैं मानो हम कहीं भागे जा रहे हों। हर वक्त डर सताता है कि वर्कप्लेस के लिए देर न हो जाए, ट्रेन या बस न छूट जाए। इन सभी के बीच पीछे छूट जाते हैं रिश्ते, सेहत और तन-मन का सुकून।
नुकसान बेवजह की हड़बड़ी के
अनावश्यक हड़बड़ी से आपको कई तरह के खमियाजे उठाने पड़ते हैं :
मानसिक बीमारियां : समाजशास्त्री और व्यवहार विशेषज्ञों का कहना है कि यह आपाधापी और हड़बड़ी लोगों को तरह-तरह की शारीरिक-मानसिक बीमारियां दे रही है। हाई ब्लड प्रेशर, डायबिटीज, ब्रेन स्ट्रोक, हार्ट अटैक जैसी बीमारियां बढ़ती ही जा रही हैं। इसलिए अब सेहत विशेषज्ञ थोड़ा सुकून से, जरा ठहरकर और शांतिपूर्वक जीवन जीने की सलाह दे रहे हैं।
पाचन की समस्या : जब आप ठीक से घर का भोजन नहीं करते तो या तो भूखे रह जाते हैं या फिर खाना पचता नहीं। रोज बाहर खाते हैं तो उसके साइड इफेक्ट आपको पेट, हार्ट और दिमाग की बीमारी दे सकते हैं।
बिगड़ता वर्कप्लेस परफॉर्मेंस : हर वक्त हड़बड़ी में रहना जब आपका स्वभाव हो जाता है तो यही आपके वर्किंग स्टाइल में भी रिफ्लेक्ट होता है। आपके काम सही तरीके से नहीं होते। अक्सर गलतियां होती हैं और आपके व्यापार में नुकसान होता है या बॉस से डांट सुननी पड़ती है। प्रोडक्टिविटी कम होने लगती है। आपका मन हमेशा बेचैन, असंतुष्ट और चिड़चिड़ा रहने लगता है। आप समझ नहीं पाते कि क्यों इतनी मेहनत करने के बावजूद न तबीयत ठीक रहती है और न कोई काम होता है।
स्लो लिविंग के मायने
स्लो लिविंग का अर्थ यह कतई नहीं है कि आप आलस्य में बिस्तर पर पड़े रहें, काम करने में ढिलाई बरतें या 1 घंटे का काम 2 घंटे में पूरा करने की आदत डाल लें। स्लो लिविंग का अर्थ है जीवन को फर्राटे से दौड़ने वाला इंजन न बनने दें। इसे सजीव जीने की आदत डालें, तेजी से बिताने की नहीं। अपने तन-मन व रिश्तों को समय दें। थोड़े रचनात्मक, सामाजिक, मिलनसार और विनम्र बनें। न सिर्फ दूसरों के प्रति बल्कि स्वयं के प्रति भी जिम्मेदारियां समझें। सुबह की चाय जरा इत्मीनान से पिएं। भोजन शांति से करें। माता-पिता, जीवनसाथी, बच्चों और दोस्तों के बीच भी थोड़ी देर बैठें।
क्या करें सुकून से जीने के लिए
जीवन में स्पीड कंट्रोल करने के लिए आप अपने स्वभाव और आदतों में कुछ बदलाव लाएं। मसलन -
सुबह आहिस्ते से : सुबह की शुरुआत धीमी हो। यह समय जीवन में कुछ योग करने यानी जोड़ने का है। यह वक्त योगासन, प्राणायाम, ध्यान, व्यायाम को दें, बागवानी करें। टहलते हुए प्रकृति की संगत करें, पेट्स और बर्ड्स से बतियाएं। इससे मन को सुकून मिलेगा। जब हम दिनचर्या को धीमा करते हैं और सुबह की शुरुआत अच्छी करते हैं तो हमारी रचनात्मक बढ़ती है। बड़े-बड़े वैज्ञानिकों और कलाकारों ने हमेशा स्लो लाइफ जीना पसंद किया।
तय करें उद्देश्य : आप दिन में अस्त-व्यस्त रहने के बजाय यकीनन प्रोडक्टिव और व्यस्त रहना चाहेंगे। इसलिए सवेरे अपने दिनभर का रूटीन फिक्स करें। आज क्या करना है, किन लोगों से मिलना है, सब लिस्ट बनाकर टाइम फिक्स कर लें।
रिश्तों को तवज्जो : अपने मम्मी-पापा, जीवनसाथी, बच्चों और फ्रेंड्स के साथ बातचीत करें। उनके हाल-चाल लें। महत्वपूर्ण विषयों पर सलाह लें और जरूरत पड़ने पर उनका सहयोग करें। यूनिवर्सिटी ऑफ़ मिशीगन की एक स्टडी कहती है कि जो लोग परिजनों और दोस्तों के साथ अधिक समय बिताते हैं और रिश्तों को प्राथमिकता देते हैं वे जिंदगी में अधिक संतुष्ट महसूस करते हैं।
शौक करें पूरे : स्टैनफोर्ड यूनिवर्सिटी की एक रिसर्च के अनुसार, सिर्फ काम ही काम यानी अत्यधिक काम करते रहने से कार्य क्षमता घट जाती है और तनाव बढ़ता है। अपनी हॉबीज को टाइम दें। पेंटिंग, रीडिंग, राइटिंग जो पसंद है करें। शहर में इधर-उधर घूमें। मोबाइल फोन को अपना दोस्त नहीं, उपकरण मात्र समझें जो आपकी सुविधा के लिए है। इसके गुलाम न बनें। दिनभर रील, इंस्टाग्राम, व्हाट्सएप देखकर समय और दिमाग खराब न करें।
