मनोज चतुर्वेदी
ऑस्ट्रेलिया 14 सालों के प्रयास के बाद आखिरकार टी-20 विश्व कप का चैंपियन बन ही गया। उन्होंने दुबई में खेले गए फाइनल में न्यूजीलैंड को आठ विकेट से हराकर यह सम्मान हासिल किया। इस चैंपियनशिप की शुरुआत के समय ऑस्ट्रेलिया को खिताब जीतने का दावेदार नहीं माना जा रहा था। इसकी वजह क्रिकेट के इस सबसे छोटे प्रारूप में कभी कोई बड़ा कमाल नहीं कर पाना था। ऑस्ट्रेलिया की इस सफलता में कोच जस्टिन लेंगर ने अहम भूमिका निभाई। वह जानते थे कि ऑस्ट्रेलियाई क्रिकेटर विशेष प्रतिभा वाले हैं और उन्हें सिर्फ एकजुट करने की जरूरत है। न्यूजीलैंड आईसीसी टूर्नामेंट में ऑस्ट्रेलिया को कभी नहीं हरा सका है और उनका यह सपना एक बार फिर बिखर गया। जहां तक सपना बिखरने की बात है तो भारत का सपना तो ऐसा बिखरा कि वह पहली बार सेमीफाइनल तक में स्थान नहीं बना सका।
ऑस्ट्रेलिया की इस जीत के हीरो मिशेल मार्श, डेविड वार्नर, एडम जैम्पा और जॉश हेजलवुड रहे। मजेदार बात यह है कि इस विश्व कप से ठीक पहले संयुक्त अरब अमीरात में ही हुए आईपीएल टूर्नामेंट में डेविड वार्नर को उनकी टीम सनराइजर्स हैदराबाद ने खराब फॉर्म की वजह से ज्यादातर मैचों में खिलाना तक उचित नहीं समझा था। शायद इस कारण वह इस विश्व कप में तरोताजा उतर सके और इस कारण अपने बल्ले का जलवा दिखाने में सफल हो गए। वह सख्त विकेटों पर कड़ा अभ्यास करके रंगत पाने में सफल रहे। वह 289 रन बनाकर प्लेयर ऑफ द टूर्नामेंट का सम्मान पाने में सफल रहे। इस टूर्नामेंट में उनसे ज्यादा सिर्फ पाकिस्तान के कप्तान बाबर आजम ने 303 रन बनाए। जहां तक मिशेल मार्श की बात है तो ऑस्ट्रेलियाई टीम प्रबंधन ने वेस्ट इंडीज दौरे के दौरान इस साल तीसरे नंबर पर खिलाने की योजना बनाई और यह योजना कारगर साबित हुई, क्योंकि न्यूजीलैंड द्वारा रखे 173 रन के लक्ष्य को पाने में मार्श की भूमिका अहम रही। उन्होंने ही वार्नर के अर्धशतक (53) के बाद नाबाद 77 रन की पारी से टीम को चैंपियन बनाया।
जॉश हेजलवुड की जहां तक बात है तो उन पर टेस्ट गेंदबाज का ठप्पा लगा हुआ है। पर उन्होंने इस विश्व कप में 11 विकेट निकालकर यह साबित किया कि यदि आप में सही लाइन और लेंथ पर गेंदबाजी करने का माद्दा है तो आप किसी भी प्रारूप में सफलता हासिल कर सकते हैं। उन्होंने फाइनल में न्यूजीलैंड के 16 रन पर तीन विकेट निकालने में अहम भूमिका निभाई। एडम जैंपा ने श्रीलंका के हसरंगा के 16 विकेट के मुकाबले 13 विकेट निकाले पर सही मायनों में इस विश्व कप के सबसे सफल गेंदबाज जैम्पा ही हैं, क्योंकि हसरंगा ने तीन क्वालिफाइंग मैच भी खेले थे। यह जरूर है कि आईपीएल से ही खराब फॉर्म में चल रहे न्यूजीलैंड के कप्तान केन विलियम्सन ने फाइनल में 85 रन की शानदार पारी खेलकर मैच को लड़ने लायक तो बनाया पर 2019 के आईसीसी विश्व कप की तरह एक बार फिर खिताब जीतने से वंचित हो गई।
टीम इंडिया ने किया निराश
विराट कोहली की अगुआई वाली टीम इंडिया को इस बार खिताब जीतने का सबसे प्रबल दावेदार माना जा रहा था। इसकी वजह यह थी कि यह विश्व कप लगभग भारत जैसे माहौल में ही खेला गया। यही नहीं भारतीय टीम के ग्रुप दो को ग्रुप एक के मुकाबले काफी आसान भी माना जा रहा था, क्योंकि भारत के ग्रुप में पाकिस्तान और न्यूजीलैंड की ही दो मजबूत टीमें थीं। बाकी टीमें अफगानिस्तान, नामीबिया और स्कॉटलैंड की टीमें थीं। पर विराट सेना ने पहले दो मैचों में पाकिस्तान और न्यूजीलैंड से हारकर अपनी काफी कुछ किस्मत तय कर ली थी। इसके बाद बाकी तीन मैचों में जौहर दिखाने का कोई फायदा न तो होने वाला था और न ही हुआ। हमारी टीम इस टी-20 विश्व कप में पहली बार सेमीफाइनल तक में स्थान बनाए बगैर ही लौट आई। अब सवाल यह है कि भारतीय हार के कारण क्या रहे। पहली वजह तो आईपीएल और इस विश्व कप में अंतर नहीं होने से टीम को सही तैयारी करने का मौका ही नहीं मिल सका। पाकिस्तान, इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया सहित सभी प्रमुख टीमें इस विश्व कप की तैयारी करके आई। वहीं भारतीय खिलाड़ियों को आईपीएल के बाद बिना आराम दिए ही विश्व कप में उतारना भारी पड़ गया। वैसे भी भारतीय खिलाड़ी आईपीएल में भाग लेने के लिए भी सीधे इंग्लैंड दौरे से आए थे। इस कारण लंबे समय तक बॉयो बबल में रहने से खिलाड़ियों पर मानसिक थकान हावी हो गई, जबकि वह शारीरिक रूप से थके हुए पहले से थे।
पूर्व भारतीय कप्तान सुनील गावस्कर ने भारतीय प्रदर्शन पर टिप्पणी की थी कि भारतीय बल्लेबाजों के पॉवर प्ले में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर पाने की वजह से खराब प्रदर्शन हुआ है। वह कहते हैं हमारे बल्लेबाज इस विश्व कप में ही नहीं, बल्कि अन्य टूर्नामेंटों में भी पॉवर प्ले में अच्छा प्रदर्शन नहीं कर सके हैं। इसकी वजह सही एप्रोच का नहीं अपनाना है। गावस्कर मानते हैं कि विराट की अगुवाई वाली भारतीय टीम अब तक की सबसे ज्यादा फिट है। लेकिन इस टीम को कैचिंग में सुधार करने की जरूरत है। यह सही भी है क्योंकि इस प्रारूप में एक कैच छूटना भी मैच को पलट सकता है।
सही चयन नहीं होने से भी बढ़ीं मुश्किलें
हम यदि आईपीएल में गेंदबाजी की बात करें तो हर्षल पटेल ने सबसे ज्यादा विकेट लिए थे और लेग स्पिनर यजुवेंद्र चहल ने भी अपने प्रदर्शन से सभी को प्रभावित किया था। लेकिन भारतीय टीम में यह दोनों ही नाम नदारद थे। इसके अलावा जबर्दस्त प्रदर्शन करने वाले पृथ्वी शॉ के नाम पर भी विचार नहीं किया गया। यही नहीं जब टीम प्रबंधन ने पहले दो मैचों के लिए टीम का चयन किया तो उसमें भी खामियां रह गईं। हम सभी जानते हैं कि रविचंद्रन अश्विन देश के नंबर एक स्पिनर हैं। लेकिन उन्हें पहले दो महत्वपूर्ण मैचों में पाकिस्तान और न्यूजीलैंड के खिलाफ नहीं खिलाना बड़ी भूल साबित हुई। टीम ने रहस्यमयी गेंदबाज कहलाने वाले वरुण चक्रवर्ती पर भरोसा किया और वह भरोसे पर खरे नहीं उतर सके। यही नहीं टीम में बाएं हाथ के किसी पेस गेंदबाज का नहीं होना भी खलने वाला रहा। इस विश्व कप में जिन बाएं हाथ के पास गेंदबाजों ने गेंद को अंदर लाने में सफलता हासिल की, वह सफल रहे। इसमें ट्रेंट बोल्ट का नाम लिया जा सकता है।
यही नहीं हार्दिक पांड्या का बिना पूरी तरह फिट हुए चयन करना भी दिक्कतें बढ़ाने वाला रहा। हार्दिक पांड्या शुरुआती मैचों में गेंदबाजी करने में सक्षम नहीं थे। इसने टीम का संतुलन बिगाड़ दिया। इससे हुआ यह है कि टीम को पांच ही गेंदबाजों के साथ उतरना पड़ा। इस टीम की दिक्कत यह है कि बल्लेबाजी के नाम पर खेलने वाला कोई भी खिलाड़ी गेंदबाजी करता ही नहीं है। इस कारण एक गेंदबाज के पिटने पर टीम दवाब में आ गई।
इस झटके से सुधरने का मौका
इस विश्व कप में प्रदर्शन के बाद टीम को अपनी खामियां नजर आ गई हैं। इन खामियों को दूर करके भारत के पास 11 माह बाद ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 विश्व कप को जीतने का मौका होगा। यह जरूर है कि संयुक्त अरब अमीरात के मुकाबले स्थितियां ऑस्ट्रेलिया में ज्यादा चुनौतीपूर्ण होंगी। पर ऑस्ट्रेलियाई माहौल में खेलने में हमारे खिलाड़ी ज्यादा सहज नजर आते हैं। भारत ने ऑस्ट्रेलिया में पिछली दो टेस्ट सीरीज जीतकर यह दिखाया भी है। साथ ही भारत को यह भी ध्यान रखना होगा कि आईपीएल जैसे किसी थकाऊ टूर्नामेंट में विश्व कप से पहले खेलने से बचा जाए।
अगले टी-20 विश्व कप को ध्यान में रखकर एक बाएं हाथ के पेस गेंदबाज को तैयार करना भी बेहद जरूरी है। हमारे पास चेतन सकारिया और टी नटराजन के रूप में दो अच्छे बाएं हाथ के तेज गेंदबाज हैं। इनको अभी से अंतर्राष्ट्रीय मैचों में मौके देकर तैयार किया जा सकता है। इसके अलावा खिलाड़ियों का चयन उनकी छवि के बजाय फॉर्म को ध्यान में रखकर करना भी बेहद जरूरी है। इसके अलावा मोहम्मद शमी जैसे अनुभवी गेंदबाजों के बजाय इस सबसे छोटे प्रारूप में मोहम्मद सिराज और अवेश खान को भी आजमाया जा सकता है। भारतीय कोच रवि शास्त्री ने अभियान खत्म होने पर कहा था कि इस विश्व कप टीम के चयन में मेरी कोई दखलंदाजी नहीं थी और कप्तान विराट ने भी कोई दखल नहीं दिया था। हमारे यहां टीम चयन में कोच और कप्तान के शामिल होने की परंपरा रही है। आमतौर पर कप्तान की मर्जी वाली टीम ही चुनी जाती रही है। अगर इस बार यह बदलाव हुआ है तो यह खेल के लिए अच्छा नहीं है। आगे से हम यदि कप्तान और कोच को टीम चुनते समय भरोसे में लेंगे तो कहीं बेहतर टीम चुनी जा सकेगी।
द्रविड़ के सामने कई चुनौतियां
टीम इंडिया के इस विश्व कप में घटिया प्रदर्शन के बाद इसे पंख लगाने की जिम्मेदारी रवि शास्त्री की जगह मुख्य कोच की जिम्मेदारी संभालने वाले राहुल द्रविड़ पर होगी। विराट कोहली के विश्व कप के बाद टी-20 प्रारूप की कप्तानी छोड़ने के बाद रोहित शर्मा को यह जिम्मेदारी सौंपी गई है। टीम इंडिया की कप्तानी बंटी होने की वजह से द्रविड़ के सामने दोनों कप्तानों के बीच सामंजस्य बनाए रखना बड़ी चुनौती होगी। आमतौर पर ज्यादातर क्रिकेट खेलने वाले देशों में बंटी हुई कप्तानी होने पर सफेद गेंद और लाल गेंद दोनों के अलग-अलग कप्तान बनाए जाते हैं। इसका मतलब है कि रोहित शर्मा को जल्द ही वनडे की कप्तानी भी मिल सकती है। इस स्थिति में रोहित शर्मा यदि सफेद गेंद वाले दोनों प्रारूपों में सफल रहते हैं, तो आगे चलकर उन्हें सभी प्रारूपों का कप्तान बनाने की मांग भी उठ सकती है। इस तरह की स्थितियों में टीम को बंटने से बचाने की द्रविड़ के सामने बड़ी चुनौती हो सकती है।
बीसीसीआई का द्रविड़ को मुख्य कोच बनाने के पीछे एक उद्देश्य यह भी है कि टीम को वह आईसीसी ट्रॉफियां जीतना सिखाएं। असल में रवि शास्त्री के कार्यकाल में भारत तीन आईसीसी ट्रॉफियां जीत की कुंजी तलाशने में असफल रहा है। भारत को 2019 का आईसीसी वनडे विश्व कप में खिताब जीतने के प्रमुख दावेदार माना जा रहा था। पर हमारी टीम सेमीफाइनल में न्यूजीलैंड से हार गई। इसी तरह इस साल विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में फिर से न्यूजीलैंड से हार गई। अभी पिछले दिनों टी-20 विश्व कप में तो टीम सेमीफाइनल में ही स्थान नहीं बना सकी। इससे लगता है कि द्रविड़ के सामने टीम को करो या मरो के मैच में जीत दिलाने का तरीका सिखाना होगा। भारतीय टीम द्विपक्षीय सीरीजों में तो पिछले काफी समय से शानदार प्रदर्शन कर रही है। अगर द्रविड़ 11 माह बाद ऑस्ट्रेलिया में होने वाले टी-20 विश्व कप और इसके बाद 2023 में घर में होने वाले आईसीसी वनडे विश्व कप में भारत को चैंपियन बना सके, तो उनका डंका बज जाना है।
मिशेल मार्श के नाम अनोखा रिकॉर्ड
ऑस्ट्रेलिया को चैंपियन बनाने में मिशेल मार्श की अहम भूमिका रही है। उन्होंने 50 गेंदों में 77 रनों की नाबाद पारी खेलकर अपनी टीम को लक्ष्य तक पहुंचाने में मदद की। वह ऑस्ट्रेलिया के चैंपियन बनते ही एक अनाेखे रिकॉर्ड से जुड़ गए। वह इकलौते क्रिकेटर हैं, जो पिता के विश्व कप जीतने के बाद खुद भी विश्व कप जीते हैं। मिशेल के पिता ज्योफ मार्श 34 साल पहले विश्व कप जीतने वाली ऑस्ट्रेलिया टीम में शामिल थे। ज्योफ के टीम रहते ऑस्ट्रेलिया ने 1987 में भारत में आयोजित आईसीसी वनडे विश्व कप को जीता था। इसका फाइनल कोलकाता के ईडन गार्डन में खेला गया था। यह भी अजब संयोग है कि ज्योफ मार्श के विश्व कप जीतने और मिशेल मार्श के विश्व कप जीतने, दोनों ही मौकों पर विश्व कप का आयोजक भारत था। मिशेल 2015 में ऑस्ट्रेलिया में ही हुए आईसीसी विश्व कप में चैंपियन बनी ऑस्ट्रेलिया टीम में तो शामिल थे लेकिन वह फाइनल की अंतिम एकादश में शामिल नहीं थे।
फाइनल में हारने वाली न्यूजीलैंड टीम के कप्तान केन विलियम्सन और पेस गेंदबाज ट्रेंट बोल्ट भी एक अनोखे रिकॉर्ड से जुड़े हैं। यह जोड़ी आईसीसी के लगातर तीन टूर्नामेंटों के फाइनल में खेलने वाली इकलौती जोड़ी है। यह जोड़ी 2019 के आईसीसी वनडे विश्व कप के फाइनल में इंग्लैंड के खिलाफ खेली। इसके बाद इस साल भारत के खिलाफ विश्व टेस्ट चैंपियनशिप के फाइनल में खेली और अब ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ इस टी-20 विश्व कप के फाइनल में खेली है।