उम्र के अलग-अलग पड़ाव में जीने के बाद मृत्यु निश्चित है। लेकिन कोई भी मरना नहीं चाहता है जबकि ऐसा संभव नहीं। हां, उम्र कुछ लंबी की जा सकती है जिसकी कोशिशें आदिकाल से जारी हैं। आजकल विज्ञान और चिकित्सा के क्षेत्र में अनवरत प्रयोग व शोध इस दिशा में हो रहे हैं। कुछ हद तक सफलता भी मिली कि बीते 50-100 साल में औसत आयु बढ़ी है। हालांकि रिवर्स एजिंग के दावों और उम्मीदों के बावजूद स्तर अभी प्रायोगिक ही है।

लेखक बेनेट यूनिवर्सिटी में
एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
अब तक के ज्ञात ब्रह्मांड में किसी भी जीव का जन्म लेना, किशोर, युवा, प्रौढ़ और वृद्ध होते हुए मृत्यु को प्राप्त होना एक शाश्वत सत्य है। प्रत्येक सजीव प्राणी के लिए दार्शनिक भाव से कहा जाता रहा है कि मृत्यु अटल है। लेकिन किसी जीव का जन्म और मृत्य सिर्फ दर्शन का विषय नहीं है। विज्ञान और चिकित्सा के लिए यह एक व्यापक चिंतन और शोध का विषय है कि क्या मृत्यु को टाला नहीं जा सकता। यानी यदि मृत्यु अवश्यंभावी है तो क्या उसे कुछ अरसे के लिए स्थगित नहीं किया जा सकता। भाव यह है कि अगर किसी को अमरता नहीं दी जा सकती है, तो क्या उम्र की लंबाई नहीं बढ़ाई जा सकती। अगर हम शरीर को एक मशीन मानें और उसकी हर कोशिका को एक पुर्जा, तो यांत्रिकी का नियम है कि घिस गए, खराब हो गए कलपुर्जों को बदलकर बंद हो चुकी या बंद होने की कगार पर पहुंच चुकी मशीन में नयी जान फूंकी जा सकती है। इसी तरह यदि इंसान के शरीर को भी एक मशीन के रूप में देखा जाए तो इससे एक दिलचस्प संभावना उभरती है।
शरीर एक सिस्टम
इसका एक जवाब हाल के वर्षों में चर्चित हुए इस्राइली लेखक युवल नोवा हरारी की किताब- ‘होमो डेयस : आने वाले कल का संक्षिप्त इतिहास’ में मिलता है। इसमें हरारी लिखते हैं कि वैज्ञानिकों की नजर में मृत्यु हमारे शरीर के सिस्टम में आने वाली तकनीकी खामी है। इस खामी के कारण ही शरीर का पूरा सिस्टम काम करना बंद कर देता है। अब सवाल यह है कि क्या मशीनों के कलपुर्जों को दुरुस्त करने की तरह क्या शरीर के सिस्टम की तकनीकी खामी खत्म नहीं की जा सकती। जरूरी नहीं कि इस मिथकीय किंवदंती को सिर्फ एक कहानी माना जाए कि सावित्री ने यमराज से सौ पुत्रों का वरदान इसलिए हासिल किया था ताकि मर चुके सत्यवान को जीवित किया जा सके। अब हो सकता है कि फेसबुक के मार्क जकरबर्ग, अमेजन के जेफ बेजोस और गूगल के लैरी पेज जिस तरह से अमरता पाने की जिस संभावना के लिए अरबों डॉलर फूंक रहे हैं, वह कुछ हद तक साकार हो जाए। ऐसी संभावनाओं पर विज्ञान जगत लंबे अरसे से काम करता रहा है। इधर एक नए दावे से इन संभावनाओं को नया बल मिला है। अमरता पाने या उम्र बढ़ाने के लिए कई प्रयोग कर रहे 45 वर्षीय अमेरिकी सॉफ्टवेयर उद्यमी ब्रायन जॉनसन ने यह कहकर दुनिया को चौंका दिया है कि प्रयोगों के बल पर उन्होंने अपनी बायोलॉजिकल (जैविक) उम्र सात महीने में काफी ज्यादा घटा ली है। इस प्रयोग को उन्होंने रिवर्स एजिंग का नाम दिया है। जॉनसन ने दावा किया है कि सात महीने तक कुछ प्रयोगों को आजमाने के बाद अब उनके दिल की उम्र 37 साल, त्वचा की उम्र 28 साल और फेफड़े की उम्र 18 साल के एक नौजवान की तरह हो गई है।
बाजार का विस्तार
ब्लूप्रिंट नामक प्रोजेक्ट के तहत ब्रायन जॉनसन ने हर साल 16 करोड़ रुपये (20 लाख डॉलर) के खर्च के एवज में 30 डॉक्टरों और स्वास्थ्य विशेषज्ञों की टीम को अपने साथ जोड़ रखा है जो उनके शरीर के हर पहलू की बारीकी से जांच करती है। यह टीम उनका खानपान, सोने-जागने, कसरत करने आदि तमाम पहलुओं की निगरानी करती है और किसी भी चीज में घट-बढ़ के हिसाब से उनकी दिनचर्या और खानपान आदि निर्धारित करती है। असल में सारी कोशिशें ब्रायन को जवान बनाए रखने और मृत्यु को परे धकेलने पर केंद्रित हैं, जिस पर तमाम वैज्ञानिकों समेत दुनिया के और भी लोग काम कर रहे हैं। इसे तो अब एक उद्योग मान लिया गया है। इस रिवर्स एजिंग इंडस्ट्री के कारोबार के बारे में पी एंड एस इंटेलीजेंस नामक संस्था की रिपोर्ट कहती है कि बढ़ती उम्र पर अंकुश लगाने का बाजार 15 लाख करोड़ रुपये (191 मिलियन डॉलर) तक पहुंच चुका है और वर्ष 2030 तक इसके 35 लाख करोड़ रुपये (421 मिलियन डॉलर) तक पहुंचने का अनुमान है। जिस रफ्तार से दुनिया में अमीरों की तादाद बढ़ रही है, उससे इस बाजार के विस्तार में कोई संदेह नहीं पैदा होता। लेकिन सवाल है कि जवान बने रहने और मौत को अंगूठा दिखाने के लिए आखिर क्या कुछ किया जा रहा है। इसके कुछ रोचक उदाहरण हैं। जैसे एक अमेरिकी भविष्यवेत्ता, आविष्कारक-लेखक रे कुर्जवील रोजाना दो दर्जन गोलियों (टैबलेट्स) का सेवन करते हैं। उन्हें कोई बीमारी नहीं है, पर वे भविष्य का एक सपना देख रहे हैं जिसे साकार करने के लिए वे दवा की इतनी गोलियां रोजाना खाते हैं। उनका मानना है कि विज्ञान की सहायता से बढ़ती उम्र पर काबू पाया जा सकता है। दरअसल सपना तो खुद को अमर करने का है, लेकिन अमरता हासिल न की जा सके तो कुर्जवील 120 से लेकर 140 साल तक जीना चाहते हैं। यदि वह ऐसा कर सके तो कम से कम सवा सौ या डेढ़ सौ साल तक मनुष्य के जीवित रखने की संभावना को सच में बदलना मुश्किल नहीं है।
नित नये प्रयोग
विज्ञान जगत जिस तरह से अमरता का सपना पाले हुए है, उसे देखकर यह संभावना अब ज्यादा दूर नहीं लगती कि इंसान की औसत आयु में 15 या 20 साल तो जल्दी ही जोड़े जा सकते हैं। इस तरह एक इंसान सौ के पार जाकर भी सक्रिय जीवन जी सकता है। प्रयोग कुछ और भी हैं। जैसे न्यूयॉर्क स्थित सेंटर फॉर एपिजेनेटिक्स रिसर्च प्रोग्राम के तहत वर्ष 2022 में एक दावा किया गया कि उनके वैज्ञानिकों की टीम ने एक ऐसे तरीके की खोज की है जिससे मानव त्वचा की उम्र 30 साल तक पलटाई (रिवर्स की) जा सकती है। यानी यदि किसी की उम्र 80 साल है तो उसकी त्वचा में ऐसी जान फूंकी जा सकती है, जिससे वह अधिकतम 50 साल का दिखे। यह प्रयोग शरीर के अन्य अंगों पर भी दोहराए जाने का दावा किया जा रहा है। हालांकि इसके बारे में एक चेतावनी प्रोसिडिंग्स ऑफ द नेशनल एकेडमी ऑफ साइंस जर्नल में वर्ष 2017 में कराये गये शोध के बाद प्रकाशित की जा चुकी है। इसके मुताबिक अगर मल्टी सेलुलर यानी बहुकोशीय जीवों की बढ़ती उम्र को जबरन रोकने की कोशिश की गई, तो ऐसे जीव की मृत्यु कैंसर जैसी बीमारियों की वजह से हो जाएगी। ऐसे में त्वचा या किसी अंग की उम्र पलटाने का कोई लाभ नहीं है क्योंकि मृत्यु तो निश्चित है। फिर भी चिकित्सा विज्ञान ने अपनी तरक्की के बल पर यह करिश्मा तो कर ही दिखाया है कि इंसान की औसत उम्र पहले के मुकाबले काफी बढ़ गई है। पूरी दुनिया में बुजुर्गों की आबादी में तेज इजाफा साबित कर रहा है कि मृत्यु को कुछ समय के लिए टालना असंभव नहीं है।
औसत उम्र का बढ़ना
वैसे तो आज से सौ या पचास साल पहले पचास साल की उम्र के बाद लोग बूढ़े लगने लगते थे और उनमें से ज्यादातर लोग जल्द ही मर जाते थे। पर बीते 50-60 वर्षों में ही पूरी दुनिया में औसत उम्र बढ़ चुकी है। कम से कम 1970 में पैदा हुए अमेरिकियों पर यह बात तो लागू होती ही है, जिनकी औसत उम्र पहले 70.8 वर्ष मानी गई थी, जो वर्ष 2000 में 77 साल मानी जाने लगी थी। इसी तरह वयस्क अमेरिकियों की औसत उम्र 2002 में अगर 75 साल मानी जा रही थी, तो अब आगे उसमें ग्यारह या बारह साल की और बढ़ोतरी की उम्मीद है। ऐसे में हर कोई जानना चाहेगा कि साइंस ने वह कौन सा चमत्कार किया है कि इंसान की औसत उम्र में सहसा बढ़ोतरी होती लग रही है। विज्ञानियों के मुताबिक, उम्दा खानपान और बेहतर चिकित्सा सुविधाओं का इसमें बड़ा रोल है। पर इससे भी बड़ी बात है वृद्धावस्था में मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य को बनाए रखना और दिमाग, मांसपेशियों, जोड़ों, इम्यून सिस्टम, फेफड़ों और दिल में ‘सिनेसेंस’ कहे जाने वाले बदलावों पर अंकुश लगाना, क्योंकि इन्हीं से बढ़ती उम्र पर काबू पाया जा सकता है। यह भी कहा जा रहा है कि वर्ष 2030 तक दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में विज्ञान ऐसा करिश्मा करने में सफल हो सकता है कि पूरी दुनिया में इंसानों की औसत उम्र सौ साल तक हो जाए। इस बारे एक जानेमाने विज्ञानी डॉ. एब्रे डि ग्रे ने भी एक उम्मीद जगाई है। एजिंग यानी बढ़ती उम्र रोकने वाली दवाओं के अनुसंधान पर काम कर रहे डॉ. ग्रे के मतानुसार कोशिकाओं के क्षरण को रोक कर और शरीर में मौजूद मॉलेक्यूल्स की चाल पलट कर बढ़ती उम्र यानी एजिंग को कुछ हद तक थामा जा सकता है। चूंकि अब साइंस यह काम करने के करीब है, लिहाजा सौ साल की जिंदगी को एक आम बात बनाना मुमकिन है। पर यहां प्रश्न है कि आखिर मृत्यु क्या है। पौराणिक मिथकों में जाएं तो कठोपनिषद् के अनुसार नचिकेता ने यम से यही सवाल पूछा था। वहां यमराज का उत्तर था कि चूंकि हरेक के कर्म और भाग्य अलग होते हैं, इसलिए संसार में हरेक के रहने के समय में भी अंतर होता है। विज्ञान भी मृत्यु की शाश्वतता के बारे में कुछ ऐसे ही तर्क देता है। विज्ञान के नजरिये से बूढ़ा होकर मर जाना यानी एजिंग एक ऐसी प्रक्रिया है जिसका सामना पृथ्वी पर मौजूद हर जड़-चेतन को करना पड़ता है। चेहरे और हाथ-पांव में पड़ती झुर्रियों, झुकते शरीर और कमजोर होती हड्डियों के अलावा आंख-कान से लेकर हर इंद्रिय का क्षरण बुढ़ापे का साफ संकेत होता है। विज्ञान कहता है कि बुढ़ापा और मृत्यु असल में कोशिकाओं के विभाजन की दर पर निर्भर है। मानव की कोशिकाएं अपनी मृत्यु से पहले औसत रूप से अधिकतम 50 बार विभाजित होती हैं। जितनी बार कोशिकाएं विभाजित होती हैं, इंसानी क्षमताओं में शनै:-शनै: उतनी ही कमी आने लगती है। बुढ़ापे का एक अन्य कारण टेलोमर्स एंजाइमों की लंबाई घटना भी माना जाता है। टेलोमर्स नाम का एंजाइम युवावस्था में प्रचुर मात्रा में बन पाता है जो डीएनए कोशिकाओं को टूट-फूट से बचाता है।
कोशिकाएं, जीन और एंजाइम
मामला सिर्फ ब्रायन जॉनसन के प्रयोगों तक सीमित नहीं है, बल्कि वैज्ञानिक कई तरह की खोजों पर अपना ध्यान लगा रहे हैं, जिनसे लंबी उम्र का रहस्य खोला जा सके। जैसे एक खोज में वैज्ञानिको को जेलीफिश परिवार के एक सदस्य हाइड्रा नामक जीव में ऐसे संकेत मिले हैं जिन्हें अमरत्व की अवधारणा के करीब माना जा रहा है। अमेरिका के पॉमोना कॉलेज के एक शोधकर्ता डेनियल मार्टिनेज के अनुसार, यह जीव बढ़ती उम्र को मात देने में सक्षम पाया गया है। ताजे पानी की झीलों और तालाबों में पाए जाने वाले जीव- हाइड्रा के शरीर की स्टेम सेल्स (कोशिकाओं) में यह खूबी पाई गई है कि वे खुद को नए स्टेम सेल से लगातार बदलते रहते हैं। यानी शरीर से पुरानी कोशिकाएं खुद ही हटती जाती हैं और नई कोशिकाएं उनका स्थान लेती रहती हैं। इससे हाइड्रा का शरीर एकदम नया बना रहता है। इस खोज से इंसान के भी कम से कम सौ साल जीने की संभावना बढ़ गई है। इसी तरह आज से डेढ़ दशक पहले वर्ष 2006 में अमेरिकी साइंटिस्ट रे कर्जवील ने घोषणा की थी कि आगे चलकर साइंस की मदद से बढ़ती उम्र को रोकना और फिर उम्र घटाने की प्रक्रिया शुरू करना मुमकिन हो जाएगा। कर्जवील की यह उम्मीद नैनो टेक्नोलॉजी पर टिकी है, जिससे शारीरिक संरचनाओं को रीप्रोग्राम किया जा सकेगा। वहीं अमेरिका के अल्बर्ट आइंस्टाइन कॉलेज ऑफ मेडिसिन की पहल पर वैज्ञानिकों की एक इंटरनेशनल टीम ने इस संदर्भ में जो खोजबीन की है वह इंसान की उम्र सौ साल तक बढ़ाने का ठोस आधार बन सकती है। इस टीम ने 97 साल की औसत उम्र वाले अमेरिकी अश्केनाजी यहूदी समुदाय में लंबी उम्र देने वाला जीन खोजा है। इस जीन की वजह से शरीर में टेलोमर्स नाम का वह एंजाइम प्रचुर मात्रा में बन पाता है। साइंटिस्ट इस कोशिश में हैं कि टेलोमर्ज एंजाइम की मात्रा बढ़ाकर बुढ़ापे की रफ्तार कम की जा सके।
कसरत और उपवास का कमाल
उम्र बढ़ाने के सिलसिले में शोध कर रहे वैज्ञानिकों का कहना है कि अगर नियंत्रित तरीके से कुछ समय का उपवास रखा जाए और योगासान व कसरतें की जाएं, तो इनसे न सिर्फ बढ़ते वजन को घटाया जा सकता है, बल्कि स्वास्थ्य संबंधी कई अन्य फायदे भी हो सकते हैं। खास तौर से उम्र बढ़ाना भी संभव है। दुनिया में 1930 से ही एक ऐसे प्रयोग के बारे में लोगों को बताया जाता रहा है, जिसके तहत कम कैलोरी पर पल रहे चूहे उन चूहों की तुलना में ज्यादा दिन तक जिंदा रहे जिन्हें पौष्टिकता से भरपूर भोजन दिया गया था। यह बात आज भी कई शोध साबित कर रहे हैं। जैसे, यूनिवर्सिटी कालेज लंदन स्थित इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ एजिंग के बुढ़ापे से निपटने के मकसद से आनुवंशिकी और जीवनशैली फैक्टर्स अध्ययन कर रहे वैज्ञानिक भी कुछ ऐसे ही नतीजों पर पहुंच रहे हैं। इंस्टीट्यूट में रिसर्च टीम से जुड़े प्रमुख वैज्ञानिक डॉ. मैथ्यू पाइपर का कहना है कि आहार पर नियंत्रण जीवन को लंबा करने का एक असरदार तरीका है। डॉ. पाइपर के मुताबिक यदि आप किसी चूहे के आहार में चालीस फीसदी की कमी कर दें तो वह 20-30 प्रतिशत ज्यादा जीवित रहेगा। वस्तुतः उपवास के दौरान एक खास किस्म के हार्मोन के असर को वैज्ञानिकों ने दर्ज किया है। प्रयोग के दौरान आनुवंशिक रूप से संवर्धित चूहों को जब खाना देना बंद कर दिया गया, तो देखा गया कि इससे हार्मोन आईजीएफ-1 के स्तर में कमी आने लगी। पर साथ ही यह भी पाया गया कि शरीर की बढ़ोतरी में कारगर यह हार्मोन ऐसी स्थिति में शरीर में आ रही कमियों और टूट-फूट को रिपेयर करने लग गया।
ऐजिंग की घड़ी पीछे खिसकाने संबंधी एक प्रयोग बर्कले स्थित यूनिवर्सिटी ऑफ कैलिफोर्निया में किया गया है। वहां वैज्ञानिकों की एक शोध टीम ने अपने एक प्रयोग में एक बूढ़े चूहे की रक्त स्टेम कोशिका में एक दीर्घायु जीन मिला कर उसकी आणविक घड़ी को पीछे खिसका दिया। इससे बूढ़ी स्टेम कोशिकाओं में नई जान आ गई और वे फिर से नई ब्लड स्टेम कोशिकाएं उत्पन्न करने में समर्थ हो गईं। दीर्घायु जीन का नाम ‘सर्ट 3’ है। ‘सर्ट 3’ और कुछ नहीं, ‘सर्ट’ समूह का एक प्रोटीन है, जो रक्त की स्टेम कोशिकाओं को तनाव से निपटने में मदद करता है। उल्लेखनीय है कि वैज्ञानिकों को पहले से इस बात की जानकारी थी कि सर्ट ग्रुप के प्रोटीन बुढ़ापे की प्रक्रिया को नियंत्रित करते हैं, लेकिन इस नए शोध में यह पहली बार साबित हुआ कि यह सर्ट प्रोटीन बुढ़ापे से जुड़ी गिरावट को भी पलट सकता है। असल में, साइंस अब बुढ़ापे को अनियंत्रित और बेतरतीब प्रक्रिया नहीं मानता। नई परिभाषा के अनुसार एजिंग एक नियंत्रित प्रक्रिया है और इसमें तब्दीली की संभावनाएं भी हैं। फर्क सिर्फ इतना है कि हमें ऐसी तब्दीली के तौर-तरीके बहुत स्पष्ट रूप से नहीं मालूम हैं। जिस दिन ये रहस्य खुल जाएंगे, अमरता या कम से कम सौ-एक सौ बीस की उम्र इंसानों के लिए कोई बहुत बड़ी बात नहीं रह जाएगी।
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