डॉ. मोनिका शर्मा
जैसे अच्छी बातों, विचारों और बर्ताव की कड़ियां सहजता से जुड़ती जाती हैं। सकारात्मक पहल अच्छी सोच को आकर्षित करती है। सधा-सम्मानजनक व्यवहार आदर भाव से भरा परिवेश बनाता है। साथ देने के लिए बढ़ा एक कदम दूसरों में भी मदद का जज़्बा जगा देता है। वैसे ही नकारात्मकता भी पूरे माहौल को प्रभावित करती है। गलत बर्ताव और सोच की भी एक शृंखला बनती जाती है। इस मामले में एक ताज़ा शोध वाकई विचारणीय है। स्कूल, कॉलेज और ऑफिस में बुलीइंग की घटनाओं को लेकर हुए इस शोध के मुताबिक, ऑफिस में बुलीइंग के शिकार लोग खुद भी षड्यंत्र करने लगते हैं। ऐसे लोगों का गपशप, अफवाह और बेवजह की चर्चा करने में ज्यादा विश्वास हो जाता है। ब्रिटेन की नॉटिंघम और फ्रांस की नैनटेरे यूनिवर्सिटी द्वारा किए गए एक शोध में इसका कारण भी सामने आया है। अध्ययन बताता है कि दफ्तर में 75 फीसदी लोग बुलीइंग के शिकार होते हैं। बुली किए गए लोग अवसाद का शिकार हो जाते हैं। कामकाजी मोर्चे पर पिछड़ने लगते हैं। इस मनःस्थिति में वे दूसरों के खिलाफ भी अफवाहें फैलाने लगते हैं। नकारात्मक बातें करने लगते हैं। देखा जाये तो इस रिसर्च के नतीजों से स्कूल, कॉलेज और ऑफिस ही नहीं, आम जीवन में बढ़ती नेगेटिविटी के कारणों को भी गहराई से समझा जा सकता है। उनका हल निकाला जा सकता है।
व्यक्तिगत मोर्चे पर
व्यक्तिगत मोर्चे पर इंसान बहुत जल्दी इस भाव से घिर जाता है। किसी से मिले बुरे बर्ताव या भाव के बाद उसके प्रति रोष मन में पलने लगता है। लेकिन यह रोष खुद को ही नुकसान पहुंचाता है। साथ ही किसी ओर के नेगेटिव व्यवहार के स्याह अहसास भी हर पल मन में रहते हैं। दुर्भाव की यह शृंखला भले कहीं ओर से शुरू होती है, पर हमें भी जाने-अनजाने खुद से जोड़ लेती है। एक बार इस दोषपूर्ण दृष्टिकोण को अपनाने के बाद इससे निकलना भी आसान नहीं। ऐसे में समय रहते खुद के बदलते बर्ताव को समझें। दूसरों का व्यवहार आपके विचारों को दिशा देने लगे तो चेत जाना जरूरी है।
घर-परिवार का दायरा
घर-परिवार के मामले में भी नकारात्मकता का यह फैलाव देखने को मिल ही जाता है। अधिकतर मामलों में तो रिश्तों में आई खटास का कारण जैसे को तैसा की सोच भी होती है। कई बार हमने जो देखा-जिया वैसा ही दूसरा भी जिये, का विचार भी इसके पीछे होता है। हमारी सास ने हमारे साथ यह किया तो हम भी अपनी बहू के साथ वही करेंगे। रिश्तेदारी में किसी ने नासमझी दिखाई तो हम भी पीछे नहीं रहेंगे। जबकि बीते समय की पीड़ादायी बातें हों या वर्तमान में किया गया मन दुखाने वाला बर्ताव। भुला देना ही बेहतर है। सुकून के लिए भी नेगेटिविटी की चेन से खुद को बाहर रखना आवश्यक है।
सामाजिक जीवन में
सामुदायिक स्तर पर तो किसी कुरीति को पोषण देने से लेकर सहज जीवन से जुड़े भाव-चाव तक, बहुत कुछ देखा-देखी ही किया जाता है। बहुत सी बातें फॉलो करने लायक नहीं होतीं। बावजूद इसके दूसरे भी वही करने लगते हैं, जो होता आया है। कई बार तो दूसरों की नेगेटिव अप्रोच के समान ही खुद कुछ न करने पर लोग अपने आप को कमतर आंकने लगते हैं। तभी तो सकारात्मक बदलाव के बजाय रूढ़िवादी सोच की शृंखला बरसों बरस चलती रहती है। जरा सी बात बिगड़ते ही एक-दूसरे के प्रति अफवाहें फैलाने का काम भी खूब होता है। नतीजतन सामाजिक व्यवस्था में नकारात्मक सोच की एक अंतहीन चेन बन जाती है। जो हरेक के लिए नुकसानदेह है। इससे बचना जरूरी है।