रेणु जैन
हमारे देश में मौसम से अक्सर बचने की आदत है। उसका आनंद बहुत कम लिया जाता है। गर्मी आयी तो शिकायत होने लगती है कि ओह कितनी गर्मी पड़ रही है, पसीने से तरबतर हो रहे हैं। पंखा चलाओ, कूलर चलाओ या फिर एसी चलाओ। असल में, हम समझ ही नहीं पाते कि गर्मी सहन करना कुदरती तौर पर शरीर के लिए कितना आवश्यक है। यह सही है कि इस मौसम में थकान जल्दी आती है लेकिन फिर भी इसे थोड़ा सहन करना चाहिए। इससे हमारी सहनशक्ति में इज़ाफ़ा ही होगा जो अनेक मौकों पर काम आता है। वैसे तो गर्मी से बचाव के लिए हम कई साधन जुटाते हैं। पर पहले के समय में एक ऐसा तरीका था जिससे पूरे घर में आने वाली हवा ठंडक के साथ खुशबू भी बिखरती थी। उसे कहा जाता है खस के पर्दे। घर, दुकानों व बरामदों के दरवाजों और खिड़कियों पर लगे ये पर्दे एक सुगन्धित घास के बने होते थे जिसे अंग्रेजी में वेटीवर कहा जाता है जो दरअसल मूलत: तमिल शब्द है। खस का वैज्ञानिक नाम वेटीवर जिजेनिआयडीज है, जिसका अर्थ है नदी के किनारे। यह झाड़ीनुमा खुशबूदार घास पानी के किनारे उगती है। इस घास की खासियत यह भी होती है कि सूखे की स्थिति हो या जल जमाव, दोनों ही स्थिति में यह पनप जाती है। भारत में खस की फसल की खेती राजस्थान, असम, बिहार ,उत्तर प्रदेश, केरल, कर्नाटक, तमिलनाडु, आंध्रप्रदेश तथा मध्यप्रदेश में प्रमुखता से होती है।
छन कर आता सुकून
खस की तासीर ठंडी होती है। इसीलिए इसके बने पर्दे जब खिड़कियों, दरवाजों, कूलर पर लगाकर उन पर पानी का छिड़काव किया जाता है तो उससे छन कर आयी ठंडक शरीर में नई ऊर्जा के संचार में सहायक होती है। दिनभर मूड तरोताजा बनाये रखने में यह ठंडक बहुत काम आती है। दरअसल, वर्तमान समय में सबसे बड़ी समस्याओं में से एक है मानसिक तनाव। कई शोधों के परिणाम बताते हैं कि शारीरिक तथा मानसिक बेहतरी के लिए विभिन्न प्राकृतिक तथा सुगन्धित तेलों का प्रयोग करके अपने मूड को ठीक कर सकते हैं। यूनिवर्सिटी ऑफ पिट्सबर्ग की रिपोर्ट के मुताबिक, खुशबू मानव मस्तिष्क में तत्काल बदलाव ले आती है। दरअसल, हमारे मस्तिष्क में सुगंध को पहचानने वाले न्यूरॉन्स होते हैं। ये न्यूरॉन्स ही मस्तिष्क को ऊर्जावान बनाते हैं।
सुगंध से छूमंतर तनाव
पुराने जमाने में मिस्र, यूनान एवं रोम में रहने वाले लोग कई मानसिक बीमारियों को ठीक करने के लिए अलग-अलग खुशबू वाले तेलों से उपचार करते थे। खस की जड़ों से निकले तेल से इत्र,परफ्यूम,शर्बत, दवाई, साबुन और कई कॉस्मेटिक बनाये जाते हैं। आज भी खस का इत्र अरब तथा अन्य कई देशों में बहुत पसंद किया जाता है। इसकी खुशबू रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाती है जिससे नर्व्स सिस्टम शांत रहता है। तनाव को दूर करके अच्छी नींद लाने में भी मददगार होती है। अरोमा थेरेपी यानी कमरदर्द व मोच जैसी व्याधियों में भी खस का तेल उपयोगी होता है।
पर्यावरण में योगदान
खस की घास की अनोखी खासियत यह भी है कि किसान इस घास को सब्जियों तथा फलों के साथ उगाते हैं। माना जाता है कि सब्जियों तथा फलों में कीड़े नहीं लगते तथा कीट पतंगे भी दूर ही बने रहते हैं।
हस्तशिल्प उत्पादों से रोजगार
जड़ों से हल्की चन्दन जैसी आती खुशबू वाली घासों का प्रयोग पुराने समय मे मटका बनाने के लिए भी होता था। आज भी इनसे चटाई, डलिया के अलावा कई कलात्मक वस्तुएं बनाई जाती है। अब इसने भरपूर आमदनी के साथ इत्र तथा हस्तशिल्प उद्योग के नए रोजगार के अवसर प्रदान किये हैं। महिलाओं ने स्व-सहायता समूह बना लिए हैं, जिसमें खसखस के हार, योग के लिए चटाइयां, लेपटॉप बेग व बर्तन साफ करने का स्क्रब आदि वस्तुओं का प्रमुख केंद्र बन गया है।