हरीशचंद्र पाण्डे
उमा का बेटा बारहवीं के बाद चार साल छात्रावास में रहा और उमा को जरा सी भी फिक्र नहीं थी, क्योंकि बेटे को हर काम आता था। सचमुच उमा के बेटे की देखादेखी उसके कुछ मित्रों ने भी काम करना सीखा। और उसका लाभ यह हुआ कि नौकरी मिलने के बाद जब वे सभी एक गेट टुगेदर में मिले तो हर किसी ने उमा के बेटे को इसका श्रेय दिया कि उसी के कारण वे सब खाना पका लेते हैं, आधा घंटे में कमरा साफ कर लेते हैं और इस तरह पचास हजार से अस्सी हजार की खरी बचत कर पा रहे हैं। बचत से भी बड़ा सुख यह है कि किसी का रास्ता नहीं देखना होता। बस कुछ मिनट में परांठा बन जाता है। कुकर में दाल तैयार हो जाती है।
आत्म-निर्भरता और सहयोग
वैसे आजकल कुछ घरों में यह दृश्य दिखाई दे जाता है कि परिवार में लड़के भी चाय-काफी बना देते हैं। वॉशिंग मशीन चलाकर आराम से कपड़े धो लेते हैं। कमरा साफ नहीं है तो डस्टिंग, झाड़ू-पोंछा वगैरह करने में पीछे नहीं रहते हैं। यह सब बहुत सुखद है क्योंकि बेटे-बेटी दोनों को परिवार में मिलजुलकर काम करने की आदत है तो इसका मतलब यह है कि उस घर के बेटे भी एक आत्म-निर्भर इंसान, अच्छे नागरिक और भविष्य में बहुत अच्छे पति साबित होंगे। ऐसे में लड़के भविष्य में न सिर्फ एक सहयोगी के तौर पर रिश्तों की गरिमा बढ़ाते हैं, बल्कि अपने बच्चों के लिए उज्ज्वल भविष्य की संभावना भी छोड़ते हैं। वहीं जब बच्चे अपनी शिक्षा या काम के सिलसिले में दूर शहर में होते हैं, तो अभिभावकों को यह चिंता नहीं रहती कि उनका ख्याल कौन रख रहा होगा।
मुफ्त का वर्कआउट
एक टीवी चैनल पर एक कार्यक्रम के दौरान कुछ युवक तो साफ कह भी रहे थे कि घर से बाहर जाकर रोज आधा घंटा पसीना बहाने के लिए जिम जाने की जरूरत ही नहीं है। हम एक कमरे के फ्लैटों रहते हैं तो बालकनी की धूल साफ करना, बेड के नीचे से कचरा साफ करना, बैठ कर बीस मिनट पोछा लगाना ही पसीना निकालकर रख देता है। अपनी चादर और तकिये के गिलाफ, तौलिए खुद ही धोकर-निचोड़कर साफ करने में खूब व्यायाम हो जाता है। सबसे सुखद यह है कि जब मन में आये तब ये सब काम कर लो। काम वाली छुट्टी ले लेती है, इसका भी रत्तीभर तनाव नहीं!
प्रबंधन की सीख
घर प्रबंधन, कुकिंग जैसे काम सीखना इसलिए भी अहम है, क्योंकि ये समायोजन में बढ़ोतरी करते हैं और लड़कों को अधिक प्रसन्नचित्त और आजाद बनाते हैं। घर के छोटे-मोटे काम जैसे कि खाना पकाना, किसी भी उपलब्ध सामग्री से कुछ पका लेने की आदत से बेटे न केवल आत्मनिर्भर बनते हैं बल्कि हजारों रुपये की बचत भी कर लेते हैं।
मां की मदद
जो बेटे किशोरवय से ही अपने परिवार के साथ काम करते हुए अधिक समय बिताते हैं, उनके आगे के जीवन में अधिक संतुलन और खुशियां रहती हैं। सबसे पहले तो बेटे भी अपनी माता-बहन के परिश्रम का सम्मान करना सीखते हैं और एक-दूसरे के बीच खूब प्यार बना रहता है। अगर माता-पिता और दो बेटे हैं तो एक अकेली महिला पर काम का बोझ और परिवार की जिम्मेदारियां भयंकर तनाव का कारण बन सकती हैं लेकिन बेटे कभी-कभार घर संभालें या राशन ला कर उसे डब्बों में व्यवस्थित कर दें तो घर की अकेली महिला के तनाव को काफी हद तक कम कर सकते हैं।