Tribune
PT
Subscribe To Print Edition About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

खुद को कमतर समझने का मर्ज

इंपोस्टर सिंड्रोम राजेंद्र कुमार शर्मा कई लोगों को स्वयं को अपनी योग्यता और कुशलता पर विश्वास नहीं होता , वे योग्य होते हुए भी अपने आपको अपनी क्षमताओं से कम आंकते हैं। उनकी यही सोच धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व का अभिन्न...

  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

इंपोस्टर सिंड्रोम

राजेंद्र कुमार शर्मा

कई लोगों को स्वयं को अपनी योग्यता और कुशलता पर विश्वास नहीं होता , वे योग्य होते हुए भी अपने आपको अपनी क्षमताओं से कम आंकते हैं। उनकी यही सोच धीरे-धीरे उनके व्यक्तित्व का अभिन्न अंग बन जाती है जिसे खुद को अंडर एस्टीमेट करना कहते हैं। बहुत समय तक शोध के अभाव में व्यक्ति की इस अंडर एस्टीमेट करने की आदत को आत्मविश्वास की कमी के रूप में माना जाता रहा है। परंतु मानव मनोविज्ञान में तरक्की के साथ मनुष्य की मानसिकता और उसकी आदतों के कारणों से धीरे-धीरे रहस्य उठते जा रहे हैं। हमारी अपने आप को , अपनी क्षमताओं को नजरअंदाज करके, जरूरत से ज्यादा कमतर आंकने की प्रवृत्ति को विज्ञान की भाषा में इंपोस्टर सिंड्रोम का नाम दिया गया है।

Advertisement

क्षमताओं पर संदेह की प्रवृत्ति

इम्पोस्टर सिंड्रोम को आम तौर पर अपनी क्षमताओं पर संदेह करना और धोखाधड़ी की तरह महसूस करना के रूप में परिभाषित किया गया है। यह उच्च उपलब्धि वाले लोगों को अतार्किक रूप से प्रभावित करता है, जिन्हें अपनी उपलब्धियों को स्वीकार करने में कठिनाई होती है। कई लोग सवाल करते हैं कि क्या वे प्रशंसा के पात्र हैं?

Advertisement

अयोग्य होने का भ्रम

मनोवैज्ञानिक पॉलीन रोज़ क्लैंस और सुज़ैन इम्स ने अपने साल 1978 में किये अध्ययन में इस अवधारणा को विकसित किया, जिसे मूल रूप से 'धोखेबाज़ घटना' कहा गया, जो उच्च उपलब्धि हासिल करने वाली महिलाओं पर केंद्रित थी। उन्होंने कहा कि 'उत्कृष्ट शैक्षणिक और व्यावसायिक उपलब्धियों के बावजूद, जो महिलाएं अपने आप को अंडर एस्टीमेट करती हैं, वे इस भ्रमजाल में बनी रहती हैं कि उनमें उतनी योग्यता या कुशलता नहीं है जिनके लिए उनको सम्मान दिया जा रहा है। उन्हें ऐसा महसूस होता है कि वे अन्य लोगों को अपनी योग्यता के विषय में मूर्ख बना रहे हैं।

व्यावसायिक जीवन पर असर

यद्यपि बचपन में या विद्यार्थी जीवन में इस तरह की सोच या आदत के ज्यादा गंभीर प्रभाव न हों। परंतु व्यक्ति जब व्यावसायिक जीवन में प्रवेश करता है तब उसे इस सिंड्रोम के गंभीर प्रभावों का सामना करना पड़ता है तथा उसका व्यक्तित्व एक हीनभावना ग्रस्त व्यक्ति का बनता है। इंपॉस्टर सिंड्रोम से ग्रस्त व्यक्ति अपने से कम क्षमता वाले लोगों को अपने से अधिक बेहतर मानने की सोच बना लेते है। ऐसे में वे अपनी क्षमताओं का पूर्ण प्रयोग नहीं कर पाते और असफलता के शिकार होने लगते हैं जो उनके मनोबल को और अधिक तोड़ने का काम करता है।

कमतर आंकने वालों की बड़ी संख्या

ऐसा नहीं है कि विरले व्यक्ति ही इस आदत के शिकार होते हैं , शोध बताते है कि लगभग 70 फीसदी लोगों के जीवन में कभी न कभी ऐसी स्थिति जरूर आती है जब वे अपने आप को अन्य से कम आंकने लगते हैं या अपने से कम क्षमता वाले लोगों को अपने से बेहतर मानने की सोच बना लेते हैं। आपके सामने वाला व्यक्ति आपकी इस सोच को आपकी विनम्रता मानने की भूल कर बैठता है। ऐसा उन व्यक्तियों के साथ अधिक होता है , जिन्हें कम उम्र में अधिक सफलता मिल गई हो या जिनकी कम योग्य होने पर भी अच्छा पद या व्यवसाय मिल गया हो।

सजगता और मनोवैज्ञानिक परामर्श

इंपॉस्टर सिंड्रोम के प्रति सजग होना बहुत आवश्यक है। इस तरह के रुझान का जरा भी संदेह होने पर अपनी आदत और व्यवहार को बदलने की कोशिश करनी चाहिए। आत्मविश्वास और मनोबल की वृद्धि हेतु सकारात्मक सोच पर कार्य करना चाहिए। मोटिवेशनल स्पीकर्स, आपकी इस आदत को सुधारने में मददगार साबित हो सकते हैं। चूंकि यह एक मनोवैज्ञानिक स्थिति है, अतः मनोचिकित्सक इस स्थिति से छुटकारा दिलवाने में सबसे बड़े सहायक हो सकते हैं।

खुद को जानने की सकारात्मक राह

सुख-सुविधाओं और सफलता प्राप्ति की अंधी दौड़ में व्यक्ति के पास अपनी योग्यता और क्षमताओं का आकलन करने का समय ही नहीं बचा है। हमें अपने रोजमर्रा के जीवन से कुछ समय निकलकर, एकांत में अपना पूर्ण आकलन सकारात्मक रूप से करना चाहिए ताकि हम अपनी खूबियों को पहचान,उनका जीवन के हर क्षेत्र में भरपूर प्रयोग कर, ऐसी सफलता को प्राप्त कर सकें जहां हमें विश्वास हो कि यह सफलता मेरी अपनी है तथा इसे मैंने अपनी योग्यता के बल पर प्राप्त किया है। इंपॉस्टर सिंड्रोम की समय रहते पहचान और निदान , जीवन में अवसाद को आने से पहले रोकने का सफल तरीका है।

Advertisement
×