यदि नवजात की आंख के रेटिना पर सफेद गोल धब्बा दिखे तो उसे नजरअंदाज न कीजिए। यह आंख का कैंसर हो सकता है। इसे रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर कहा जाता है, जो 5 साल तक के बच्चों में पाया जाता है। बच्चों की आंखों में किसी भी प्रकार की दिक्कत हो तो तुरंत आंखों के डॉक्टर के पास जाना बेहद जरूरी है। समय पर इलाज ही इस प्रकार की गंभीर बीमारी से बच्चों को बचा सकता है। एडवांस स्टेज में बीमारी का पता न लगने की वजह से ज्यादातर बच्चों को पूरा इलाज नहीं मिल पाता और जान बचाने के लिए आंख ही निकालनी पड़ती है। इस बीमारी को रेटिनोब्लास्टोमा कहा जाता है। बच्चे की आंखों के रेटिना में सफेद धब्बा या फिर आंख तिरछी होना कैंसर का शुरुआती लक्षण हो सकता है। जानिये इस बीमारी के कारणों, लक्षणों और इलाज के बारे में।
जेनेटिक भी होती है वजह
लगभग 40 प्रतिशत केसों में बीमारी जेनेटिक वजह से होती है। अगर किसी के पहले बच्चे को बीमारी हो तो दूसरे बच्चे के जन्म के तुरंत बाद जांच करानी चाहिए। टेस्ट हर तीन महीने में कराना बेहतर है। कई बार ट्यूमर फैलने की वजह से आंख निकालनी पड़ती है। इसकी जगह पर आर्टिफिशियल आंख लगाई जाती है।
रेटिनोब्लास्टोमा का सबसे आम रूप छिटपुट या गैर-आनुवंशिक रेटिनोब्लास्टोमा है। छिटपुट रेटिनोब्लास्टोमा आगे परिवारों में जाने में सक्षम नहीं होता। इसमें एक आंख के रेटिना में एकल कोशिका के आरबी वंशाणु में परिवर्तन होता है। ये कोशिकाएं विभाजित होकर ट्यूमर का निर्माण करती हैं। केवल एक आंख से प्रभावित (एकतरफा) अधिकांश रोगियों में छिटपुट रेटिनोब्लास्टोमा होता है।
ये लक्षण आयें नजर तो…
बच्चों की आंख में होने वाले रेटिनोब्लास्टोमा कैंसर का मुख्य लक्षण आंख पर रोशनी पड़ने पर रेटिना का सफेद दिखाई देना है। आंख में दर्द महसूस होता है और अधिक लाली आना भी इसके लक्षण हैं। दिखाई देने में समस्या, आंखों का बाहर उभर आना, खून आना और दोनों आंखों की पुतली का रंग अलग हो जाना इस बीमारी के लक्षण हैं।
देश में सालाना दो हजार मामले
देश में रेटिनोब्लास्टोमा से पीड़ित बच्चों के हर साल पंद्रह सौ से दो हजार मामले सामने आते हैं। इनमें से अधिकांश बच्चे आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों से संबंध रखते हैं। इलाज के अभवा में ऐसे परिवारों के बच्चों में 60 प्रतिशत तक बीमारी पनप जाती है। जागरूकता की कमी, देखभाल की खराब व्यवस्था, उपचार की उच्च लागत, बुनियादी ढांचे की कमी, स्वास्थ्य पेशेवरों की कमी, अच्छे उपचार प्रोटोकॉल, गुणवत्ता वाली दवाओं की कमी के चलते गरीब परिवार इलाज करा पाने में असमर्थ होते हैं।
पीजीआई में उपचार की सुविधा
पीजीआई चंडीगढ़ में अब तक वर्ष 1999 से मार्च 2022 तक 1143 मरीज रेटिनोब्लास्टोमा (आरबी) से पीड़ित दर्ज किए जा चुके हैं। पीजीआई में आरबी क्लिनिक वर्ष 1996 से संचालित की जा रही है। यह विभाग पूरे उत्तर भारत के लिए प्राथमिक रेफरल केंद्र है। यहां चंडीगढ़, पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड, यूपी के कुछ हिस्सों, राजस्थान और जम्मू-कश्मीर राज्यों से मरीज इलाज के लिए आते हैं। यहां लेजर फोटोकैग्यूलेशन, क्रायोथेरेपी, इंट्राविट्रियल कीमोथेरेपी और ट्रांसप्यूपिलरी थर्मोथेरेपी के जरिये अत्याधुनिक उपचार किया जाता है।
इलाज की अलग-अलग विधियां
रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज करने के लिए उपयोग किए जाने वाले इलाज इस बात पर निर्भर करते हैं कि क्या ट्यूमर एक आंख को या दोनों आंखों को प्रभावित करता है। आंख में रोग कितना फैला है और क्या ट्यूमर आंख में और उसके आसपास के अन्य भागों में फैल गया है। रेटिनोब्लास्टोमा की चपेट में आने वाले बच्चों का इलाज और देखभाल विशेषज्ञों की टीम द्वारा किया जाता है। रेटिनोब्लास्टोमा का इलाज करने के लिए सर्जरी, परिसीमित उपचार, कीमोथेरेपी और/या रेडिएशन थेरेपी का उपयोग किया जाता है। आमतौर पर, इलाजों के संयोजन का उपयोग किया जाता है। नेत्र रोग विशेषज्ञ द्वारा लेजर फोटोकैग्यूलेशन, क्रायोथेरेपी, इंट्राविट्रियल कीमोथेरेपी, ट्रांसप्यूपिलरी थर्मो थेरेपी (टीटीटी) और अंतःशिरा, विकिरण और इंट्रा-धमनी कीमोथेरेपी जैसे विभिन्न तरीकों का उपयोग करके किया जाता है।