सूर्यकांत
यह तो सच ही है कि प्रत्येक व्यक्ति सफल होना चाहता है। असफलता किसी को पसंद नहीं। लेकिन शायद ही हमने इस ओर ध्यान दिया हो कि सफलता और विफलता घटनाओं को इंगित करती हैं व्यक्ति को नहीं। या तो हम कुछ करते हुए सफल होते हैं, या हम किसी काम में विफल हो जाते हैं। इसका अर्थ यह नहीं है कि हम पूरी तरह से सफल हैं या पूरी तरह से विफल। हमारे कुछ पहलू ऐसे हो सकते हैं जिनमें हम पूरी तरह सफल न हों या किसी में पूरी तरह विफल न हों। एक सफलतम व्यक्ति का बड़ा बैंक बैलेंस हो सकता है, लेकिन साथ ही यह भी संभव है कि वह एक अभिभावक, पति या पत्नी या किसी अन्य रिश्ते में पूरी तरह नाकाम हो। इसी तरह कोई व्यक्ति किसी व्यवसाय में पूरी तरह नाकाम हो, लेकिन अविश्वसनीय रूप से वह अच्छा अभिभावक साबित हो सकता है।
क्या कभी हम इन बातों की तरफ ध्यान देते हैं कि मनोवैज्ञानिक दृष्टिकोण से सफलता के मायने क्या हैं? हम क्यों हर बार, हर जगह सफल ही होना चाहते हैं। दरअसल यह हमारा ‘बिलीफ सिस्टम’ होता है जिसके कारण हम यह मान लेते हैं कि हम सफल हैं और हमारे बच्चों को भी सफल होना चाहिए। या हम यह मान लेते हैं कि हम नाकाम हैं लिहाज़ा ये सुनिश्चित कर लेना चाहते हैं कि हमारे बच्चे नाकाम न हो जाएं।
अगर बच्चा परीक्षा में फेल हो जाता है तो हम उसे नाकाम कहते हैं, हम इस तरह से पेश आते हैं जैसे कि वह जिंदगीभर नाकाम ही रहेगा। यानी एक बार मिली असफलता को अस्थायी मान बैठते हैं। हो सकता है एक परीक्षा में फेल बच्चा आगे सफलता की इबारत लिखे। हम यह मानने के लिए तैयार नहीं होते कि बच्चे खेल में अच्छे हो सकते हैं, वे बहुत बड़े कलाकार हो सकते हैं, अच्छे वक्ता या रचनात्मक समस्या को हल करने वाले हो सकते हैं। वे ईमानदार व मददगार हो सकते हैं। उनमें व्यक्ति के रूप में अनोखे गुण हो सकते हैं। हम इन सब चीजों को नजरअंदाज कर देते हैं और उन पर विफलता का ठप्पा लगा देते हैं सिर्फ इसलिए कि वह एक परीक्षा में फेल हुए हैं।
सफलता-विफलता जीवन का हिस्सा
अपने बच्चों को उनके तमाम सामर्थ्यों और कमजोरियों के साथ, समग्रता में स्वीकार करने के लिए यह समझने की जरूरत है कि सफलता और विफलता, घटनाओं को परिभाषित करने वाली शब्दावलियां हैं, लोगों को नहीं। ध्यान रहे कि कुछ विफलताओं का सामना हमें और हमारे बच्चों को निश्चित रूप से करना ही पड़ेगा। हमें एक अभिभावक होने के नाते बच्चों को ऐसे जीवन कौशलों से सुसज्जित करना चाहिए जिनको वे नाकाम होने की स्थिति में इस्तेमाल कर सकें और परिस्थितियों से निपट सकें। हमें बतौर अभिभावक, विपरीत हालात के सामने साहस व समृद्धि के सामने विनम्रता के गुणों को विकसित करना चाहिए। तभी हम अपने बच्चों को उनके जीवन में आने वाली तमाम चुनौतियों और खुशियों, सफलताओं और विफलताओं का सामना कर पाने लायक बना पाएंगे।
जीवन में सफलता-असफलता बहुत महत्वपूर्ण नहीं है। यह मायने नहीं रखता कि आप कितनी बार असफल हुए हैं, दुनिया सिर्फ परिणाम देखती है, कोशिश नहीं। कभी-कभी सफलता हमारी नाकामी, गलती व अनचाहे अपराध की भी ढाल बन जाती है। अतः सफल होना व संतुष्ट होना दो भिन्न बातें हैं। यदि हम अपने मन के अनुसार कोई भी कार्य करके खुश हैं, तो वह संतुष्टि है और यदि हम किसी बड़े पद, प्रभाव या प्रतिष्ठा से समाज में रुतबा बनाए हुए हैं, तो यह कामयाबी है। जरूरी नहीं कि कामयाबी से आप संतुष्ट ही हों। संतुष्टि में ‘अर्थ’ के लिए कोई स्थान नहीं होता है। जीवन हमारा है व निर्णय भी हमारे हैं। तय हमें करना है कि जीवन कैसे जीयें? कामयाब होना है या संतुष्ट? जीवन का असली आनन्द सिर्फ इस बात में है कि लोग हमें पैसे, प्रभाव या पद से प्रभावित होकर अग्रिम पंक्ति में स्थान न दें, बल्कि हमारी योग्यता व समाज के प्रति हमारे योगदान के बलबूते पर अग्रिम पंक्ति में स्थान मिले।