जीवनशैली के दोषों से उपजा खतरा : The Dainik Tribune

प्रोस्टेट कैंसर

जीवनशैली के दोषों से उपजा खतरा

जीवनशैली के दोषों से उपजा खतरा

प्रो़ ( डॉ.) संतोष कुमार

यूरोलॉजी विभाग, पीजीआईएमईआर, चंडीगढ़

आज भारतीयों में जीवन शैली की विसंगतियों और खानपान में बढ़ती तामसिक प्रवृत्तियों के चलते शरीर कई तरह की बीमारियों का घर बनता जा रहा है। इसमें बढ़ती उम्र के साथ यूरिन से जुड़ी बीमारियां प्रमुख होती हैं। इसके साथ ही प्रोस्टेट और इसमें होने वाले कैंसर की आशंका बहुत अधिक बढ़ रही है। समय-समय पर जांच से आम आदमी ऐसे रोगों का पता लगाकर वक्त रहते उपचार करा सकता है।

बढ़ती उम्र का रोग

दरअसल प्रोस्टेट की समस्या बढ़ती उम्र का रोग है। जो किसी भी पुरुष को पचास साल के बाद हो सकता है। इसमें कभी-कभी कैंसर भी हो जाता है। पुराने अनुभव बताते हैं कि सात में से एक व्यक्ति को प्रोस्टेट का कैंसर होने की संभावना होती है। इसलिए यदि किसी व्यक्ति को रुक-रुक कर पेशाब आता हो या कभी-कभी रुक जाता है। संसर्ग करने में दिक्कत होती है। यूरिन या सीमेन में ब्लड आता हो। कमर में दर्द होता है तो तुरंत इसकी जांच करवाएं। इन रोगों के लक्षण होने पर यूरोलॉजिस्ट से परामर्श करना चाहिए। वैसे हमारी जीवन शैली के दोषों के चलते पचास साल की उम्र में पेशाब की परेशानी होना आम बात है। कुछ लोगों को किडनी में भी दर्द हो सकता है।

खून आने पर टेस्ट

यदि पेशाब में खून आता हो तो तुरंत यूरोलॉजिस्ट से जांच करवाएं। इसकी जांच में पीएसए टेस्ट महत्वपूर्ण होता है। साथ ही अल्ट्रासाउंड कराने की जरूरत भी होती है। यदि जांच में कुछ गड़बड़ नहीं आती है तो इसका मतलब है कि यूरिन ब्लैडर में कैंसर या प्रोस्टेट नहीं है। यह भी पता चलता है कि कोई रसौली तो नहीं है।

डाक्टरी सलाह और इलाज

यह जरूरी है कि किसी योग्य यूरोलॉजिस्ट से ही परामर्श लें व इलाज करवाएं। आम तौर पर प्रोस्टेट लिंग के अगले हिस्से में आये अवरोध के कारण होता है। जो यूरिन की आवृत्ति में कमी लाता है। यह जरूरी है कि बाजार से कोई भी दवा बिना किसी यूरोलॉजिस्ट की सलाह के न लें। अब चाहे मूत्राशय तंत्र का कैंसर हो या प्रोस्टेट का कैंसर वो धीरे-धीरे बढ़ता है। ब्लड का आना भी रुक-रुक कर होता है। यदि एक बार रुक गया तो नहीं मान लेना चाहिए कि अब जांच की जरूरत नहीं है। दरअसल, प्रोस्टेट कैंसर बढ़ता रहता है। ऐसे में जांच कराकर ही निश्चिंत हो जाएं कि सारी स्थिति नार्मल है। फिर आप डॉक्टर के परामर्श से ली जाने वाली दवा पर अपनी जिंदगी रोगमुक्त होकर काट सकते हैं।

दूसरे लक्षण भी

दरअसल, कई तरह के अन्य लक्षण देखकर हम इस रोग का पता लगा सकते हैं। जैसा नर्व का कमजोर होना। यौन व्यवहार में व्यवधान होना। पेशाब के रास्ते में दर्द का होना रोग के लक्षण हो सकते हैं। ये संकेत हैं कि किसी व्यक्ति को प्रोस्टेट के रोग के साथ कैंसर हो सकता है। किडनी का कैंसर या फिर ब्लड कैंसर हो सकता है।

मर्ज के मूल में जीने का ढंग

सवाल उठाया जाता है कि प्रोस्टेट या उसका कैंसर क्यों होता है। क्या यह हमारी जीवन शैली व खानपान की देन है? निश्चित रूप से हमारा अपने परंपरागत खानपान से दूर होना और शारीरिक सक्रियता कम होना इसकी वजह है। सामान्य सी बात है कि हम यदि रेड मीट खाते हैं या चिकन खाते हैं तो उसका प्रतिकार तो होगा। आप किसी को मारकर सुख पाने की बात सोचेंगे तो दुख ही तो मिलेगा। ये कर्मफल की बात है। यह तार्किक है कि मांसाहारी भोजन कैंसर होने की संभावना को बढ़ाता है। यदि आप नियमित धूम्रपान करते हैं तो यह रोग होने की आशंका होती है। अल्कोहल का सेवन करते हैं तो इस रोग की जद में आने की संभावना बढ़ जाती है। यदि ज्यादा मक्खन या अन्य डेरी प्रोडक्ट लेते हैं तो भी समस्या बढ़ सकती है। हमें पीजा-बर्गर व चाउमिन जैसे खाद्य पदार्थों से परहेज करना चाहिए, इसमें प्रयोग होने वाले रासायनिक पदार्थ हमारे लिये घातक साबित हो सकते हैं।

प्रदूषण भी वजह

बाकी हमारे जीवन में घर कर गया प्रदूषण भी रोग बढ़ने का कारण बन सकता है। इसमें वातावरण का पॉल्यूशन भी शामिल है और प्लास्टिक का भी। इनका उपयोग कम से कम करने का प्रयास करें। विडंबना ही है कि हमारे खानपान में रासायनिक उर्वरकों तथा अप्राकृतिक चीजों के उपयोग से लगातार ऐसी समस्याएं बढ़ती जा रही हैं।

दरअसल, भारतीय जीवन दर्शन में स्वस्थ रहने के जो उपाय बताए गए हैं,हम उन्हें भूल गये हैं। हर व्यक्ति को रोज योग व ध्यान करना चाहिए। कम से कम एक घंटा व्यायाम व सैर करनी चाहिए। भारतीयों के खानपान में विटामिन डी की काफी कमी है। यदि रोज सुबह आधे घंटे धूप में बैठते हैं तो कई रोगों से मुक्त हो जाते हैं। इससे कैंसर होने की आशंका भी कम हो जाती है। दरअसल हमारे स्वस्थ रहने में खानपान व जीवनशैली का महत्वपूर्ण योगदान होता है।

(जैसा उन्होंने अरुण नैथानी को बताया)

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