डॉ. मोनिका शर्मा
यूं तो जीवन का कोई हिस्सा रंगों से अछूता नहीं पर फाल्गुन के मौसम में तो मानो रंग खुद मन की देहरी पर दस्तक देने लगते हैं। लगता है जैसे हवा में ही रंग घुल गया हो। सभी का मन त्योहारी रंगत का स्वागत करने को आतुर भी होता है। पहाड़ों पर खिले टेसू, खेतों में लहलहाती सरसों और बाग-बगीचों में खिले रंगीन फूलों के बीच यह त्योहारी इन्द्रधनुष हर मन और आंगन का द्वार खटखटाने लगता है। इस सतरंगी अहसास की आमद का स्वागत करते हुए मन उल्लास और उमंग से भर उठता है। साथ ही अपनेपन की अनुभूति के रंग भी हर ओर बिखरने लगते हैं।
मेलजोल का इन्द्रधनुष
होली ऐसा त्योहार है जिसमें इंसान ही नहीं, धरती भी रंगों से शृंगारित होती है। खिलते टेसू और सेमल की रुत में मन भी नई रंगत में रंग जाता है। खेतों में सरसों खिल उठती है तो बाग-बगीचों में फूलों की क्यारियां रंगों से भर जाती हैं। रंगों की इस आमद के बीच मेल-मिलाप के स्नेहमयी गुल भी खिलते हैं। प्रकृति और मन से सीधा सम्बन्ध रखने वाला यह पर्व, परिवार ही नहीं पूरे समाज के साथ मिलकर मनाया जाने वाला उत्सव है। यह उल्लास औपचारिकताओं से परे है। सामाजिक रूप से एक-दूजे से जुड़ाव रखना और सुख-दुख में भागीदार बनना, हमारी परंपरा और संस्कृति में समाये इंसानी रंगों को जीवंत रखने का माध्यम रहा है। यही वजह है कि होली के रंग दिलों की दूरियां तो मिटाते ही हैं, अपनों को और करीब लाने वाले भी होते हैं। अपनों से, समाज से कटकर रहना जीवन को बेरंग बना देता है। मन को थका देता है। ऐसे में रंग पर्व की उत्सवधर्मिता में मानवीय और पारिवारिक जुड़ाव को जीने की रीत रिश्तों में साथ-स्नेह के रंग भरती है। समाज में प्रेम, एकता और सद्भाव को बढ़ाने वाला यह रंगीन त्योहार हर रिश्ते को सहेजने की सीख देता है। इतना ही नहीं मानवीय मूल्यों की परंपरा और एकता को भी होली के त्योहार ने खूब सहेजा है। जुड़ाव की यही सोच सामाजिकता का आधार बन इस त्योहार को और रंग-बिरंगा बना देती है।
सकारात्मकता की रंगत
होली का सतरंगी उल्लास सकारात्मकता को पोषित करता है। इस परिवेश में अपनों के ही नहीं बल्कि परायों के भी मन मिल जाते हैं। ऐसे में हर ओर खिले-खिले रंगों की दस्तक परिवार और समाज में साथ के भाव को पोषित करती है। आपसी कड़वाहट भुलाकर बस एक ही रंग में रंग जाने का संदेश देने वाले होली के पर्व को एक साथ मिल-जुलकर मनाने का उल्लास और उमंग देखते ही बनता है। इतना ही नहीं, जमीन से जोड़ने वाला यह रंगीन उत्सव हर तरह की ऊंच-नीच और भेदभाव से परे भी है। घर-घर जाकर रंग लगाने की परंपरा सारी कटुता भुला देती है। अबीर के लाल रंग में आस-पड़ोस और रिश्तेदारों से लेकर दोस्तों तक सब रंग जाते हैं। सभी प्रेम स्वरूप एक-दूसरे को रंग लगाकर सुखद साथ के उल्लास को जीते हैं। इस सहज मेलजोल का भाव आंचलिक परंपराओं और लोकजीवन के रंगों को मिलजुलकर जीते लोगों में देखा जा सकता है। होली के मौके पर ढोलक-झांझ-मंजीरों की धुन के साथ नृत्य-संगीत की भी खूब रंगत होती है। हर अंचल के लोकगीतों की धुन में मानवीय भाव भी एक हो जाते हैं। बसंत ऋतु में हर ओर छाई सतरंगी छटा के बीच मन जीवन का रंगरेज सा यह पर्व हर मायने में जिंदगी में सकारात्मकता और प्रसन्नता भरने का त्योहार है।
खुशियों की लाली
रिश्ते-नाते जिन्दगी में साथ और स्नेह का रंग भरते हैं। ऐसे में होली पर बिखरने वाले इंद्रधनुषीय रंगों से खुशियों और अहसासों की लाली और गहरी हो जाती है। इस सतरंगी आभा से घर-आंगन एक रंगीन उमंग और उल्लास से भर उठता है। हर ओर आनंद छा जाता है। होली में मस्ती और हास्य-ठिठोली का भी खूब माहौल बनता है। बीती बातें भुलाकर तल्खियों की जगह प्यार और दुलार को दे दी जाती है। रंगों में रचा-बसा यह उत्सव टूटे-बिखरे संबंधों को भी फिर जोड़ देता है। परिचितों-अपरिचितों में भावनाओं के रंग छलक पड़ते हैं। रंगों का यह पर्व पीढ़ियों के अंतर को भी पाट देता है। अपनों के साथ ही नहीं, होली अपने परिवेश में बसने वालों से भी जोड़ती है। एक ओर पकवानों की खुशबू तो दूसरी ओर अपनेपन के रंग, जीवन में मुस्कुराहटों का रंग भर देते हैं। हवाओं में घुले गुलाल की लाली सामुदायिक जुड़ाव और मेलजोल का माहौल बनाती है। पारम्परिक खानपान की खुशबू भी इस पर्व पर खूब बिखरती है। आज भी होली के पर्व पर बाजार से लाने के बजाय घर में ही कहीं गुजिया तो कहीं पूरनपोली बनाने का रिवाज कायम है। कहीं ठंडाई घुटती है तो कहीं मालपुए बनते हैं। काफी समय पहले से ही घरों में तैयारियां शुरू हो जाती हैं। परंपरागत खानपान, प्रेम के बिखरते निश्छल रंग और हंसी- ठिठोली-ठहाके इस पर्व को सचमुच जीवंत बना देते हैं।