अरविंद कुमार सिंह
भारत की पहली सेमी हाई-स्पीड ट्रेन वंदे भारत एक्सप्रेस रेल इतिहास में जितनी अधिक सुर्खियां बटोर रही है, उतनी शायद ही किसी ट्रेन ने बटोरी हों। हमारे रेल इतिहास का शुभारंभ बोरीबंदर से थाणे के बीच 16 अप्रैल, 1853 को उस रेलगाड़ी से माना जाता है जो तीन भाप इंजनों की मदद से 400 सवारियों को अपने साथ ले गयी। वह 21 तोपों की सलामी पाने वाली पहली रेलगाड़ी थी। वह सफर केवल 34 किलोमीटर का था।
तब से अब तक भारतीय रेल लंबी यात्रा कर चुकी है। आजादी के पहले की भारतीय रेल कुछ अलग थी और आजादी के बाद अलग। समय के साथ ये लगातार बदलती रही। तकनीक बदलती रही और सोच भी। आज रोज आस्ट्रेलिया की आबादी के बराबर मुसाफिरों को ढोने वाली भारतीय रेल आम आदमी को सस्ती दर पर यात्रा कराती है। इसकी एक खूबी यह भी है कि इसमें अधिकतर गरीब और कमजोर तबकों के लोग चलते हैं। वहीं इसकी एक कमजोरी यानि धीमी रफ्तार भी है। इसकी बड़ी लाइन की एक्सप्रेस गाड़ियों की औसत रफ्तार 50 किमी प्रति घंटा है, जबकि ईएमयू 40 और पैसेंजर की 36 किमी से कुछ अधिक है। मालगाड़ी की रफ्तार तो 25 किमी से ज्यादा नहीं है। कोरोना काल में खाली मिले ट्रैक पर जरूर बहुत सी सरपट गाड़ियां चलती दिखीं लेकिन यह भारतीय रेल का असली चेहरा नहीं था।
प्रयोगों का सिलसिला
बीते 75 सालों में भारतीय रेल तमाम रेल मंत्रियों के प्रयोगों से गुजरी। तमाम सुधार और बदलाव हुए। तमाम नयी ट्रेनें चलीं, कभी जनता श्रेणी की ट्रेनें तो कभी गरीब रथ, कभी राजधानी तो कभी शताब्दी तो कभी दुरंतो और कभी जन शताब्दी। लेकिन बीते 9 सालों में भारतीय रेल कुछ अलग रास्ते पर चल रही है। गत 15 फरवरी 2019 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संसदीय क्षेत्र वाराणसी को जोड़ने वाली पहली वंदे भारत एक्सप्रेस का उद्घाटन करते हुए जो कुछ कहा था वह अभी तक जमीन पर तो नहीं उतर सका है, लेकिन वंदे भारत उनकी ड्रीम ट्रेन बन गयी है। इस नाते उसको चमकाने में पूरा रेल मंत्रालय लगा हुआ है।
स्वदेशी उत्पाद से सफलता
बेशक यह सफलता की एक कहानी है और यह एक स्वदेशी उत्पाद है। इसमे लगने वाले 75 फीसदी कलकुर्जे भारतीय हैं। इसका डिजाइन भी भारत में ही बना। इस ट्रेन के पहले मोदी सरकार में ही 2015-16 में स्पेनिश ट्रेन टैल्गो का ट्रायल हुआ था। तब इसके 10 से 12 डिब्बों की कीमत करीब 200 करोड़ आ रही थी। उसी दौरान सुधांशु मणि के नेतृत्व में टी-18 साकार हो गया तो रेलवे ने एक नयी रणनीति बना ली। मणि अगस्त 2016 में इंटीग्रल कोच फैक्ट्री, चेन्नई के महाप्रबंधक बने थे तो 18 महीनों में इस ट्रेन को बनाने में सफलता हासिल की और इसी कारण इसका नाम टी-18 बना। अक्तूबर 2018 में इसका पहला सेट तैयार होने के बाद 180 किमी का सफल परीक्षण भी हुआ लेकिन आरडीएसओ ने 160 किमी की अधिकतम गति पर इसे चलाने की मंजूरी दी। जब यह ट्रेन 2019 में आम चुनाव के ठीक पहले वाराणसी के लिए चली तो इसका नाम वंदे भारत एक्सप्रेस रखा गया। बेहतरीन रूट होने के कारण सबसे पहले इसे दिल्ली-भोपाल के बीच चलाने की योजना थी, लेकिन वाराणसी के लिए चली। तबसे यह लगातार सुर्खियां बटोर रही है।
सुरक्षित, और सुविधा जनक भी
अलग-अलग कोच की जगह ट्रेन सेट होने के नाते यह बाकी गाड़ियों से अधिक सुरक्षित है। ऐसा ट्रेन-सेट बनाना भारतीय रेल की एक बड़ी उपलब्धि है। स्टेनलेस स्टील से बने होने के कारण ये हल्की हैं। ट्रेन के हर कोच में छह सीसीटीवी कैमरे लगे हैं। ड्राइवर के कोच में भी एक सीसीटीवी इंस्टॉल किया गया है, जहां से यात्रियों पर नजर रखी जा सकती है। हर कोच में दो इमर्जेंसी स्विच हैं जिनको आपात स्थिति में दबाकर मदद ली जा सकती है। लोको पायलट के लिए भी इसमें कई इंतजाम हैं। वंदे भारत के कई सेफ्टी फीचर यात्री सुविधाओं और सुरक्षा-संरक्षा के लिहाज से तैयार किए गए हैं। स्वचालित दरवाजे स्टेशन आने पर ही खुलते-बंद होते हैं, लिहाजा अवांछित लोगों के चढ़ने का जोखिम नहीं। हर कोच में आग-रोधी फाइबर का प्रयोग है, जिससे आग लगने पर धुआं नहीं भरता और खिड़की-दरवाजों को जाम होने से भी ये रोकता है। इसमें दिव्यांग जनों के लिए विशेष रूप से दो बाथरूम और बेबी केयर के लिए विशेष स्थान दिया गया है। ऐसी बहुत सी खूबियां हैं।
बात रफ्तार की
हाल के सालों में यही एकमात्र ऐसी ट्रेन है जिसके प्रचार-प्रसार पर रेलवे सबसे अधिक ध्यान दे रहा है। बार-बार इसमें कुछ नयी खूबियां जुड़ रही हैं। उपनगरीय रेलों से लेकर माल के लिए तो कभी अधिक रफ्तार के लिए। इस ट्रेन के बनने के बाद दावा किया गया था कि चरणबद्ध तरीके से इसकी गति 200, 220 और फिर 240 और 260 किमी की जाएगी। लेकिन अभी हालत यही है कि यह शताब्दी से कुछ ही अधिक गति पर चल रही है। इसमें शताब्दी से अधिक साधन और सुविधाएं हैं। इस कारण जो यात्री इसमें सफर कर रहा है, उसे वह पसंद आ रही है। अधिकांश वंदे भारत ट्रेनों में मुसाफिरों की किल्लत नहीं है।
प्रचार और आकर्षण
अब तक कुल 14 वंदे भारत ट्रेनें देश के अलग- अलग हिस्सों में चल रही हैं। अतिशय प्रचार-प्रसार के कारण ये आम लोगों के आकर्षण का केंद्र भी बनी हुई हैं। अधिकतर ट्रेनों का उद्घाटन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद कर रहे हैं। इस नाते रेलवे का पूरा अमला ही नहीं, संबंधित राज्य सरकारें और मीडिया भी पूरा जोर लगाते हैं और पूरा इलाका स्वाभाविक तौर पर चमक जाता है। उल्लेखनीय है कि अधिकतर ट्रेनों के संचालन का संबंध चुनाव से भी रहा है। हिमाचल में ठीक चुनावी मौके पर ट्रेन चली थी और कई अन्य जगहों पर भी।
संख्या और समय का गणित
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 12 अप्रैल, 2023 को दिल्ली-जयपुर-अजमेर वंदे भारत एक्सप्रेस को हरी झंडी दिखाई तो यह खबर सुर्खियां बनी कि सरकार अगस्त 2023 तक 75 वंदे भारत एक्सप्रेस ट्रेनों को पटरियों पर ला देगी। रेलवे ने जबलपुर से इंदौर, तिरुवनंतपुरम से मंगलुरु, जयपुर से आगरा, नई दिल्ली से कोटा, नई दिल्ली से बीकानेर, मुंबई से उदयपुर, हावड़ा जंक्शन से पटना, बंगलुरु से विजयवाड़ा समेत कई जगहों का प्रचार भी किया जहां ये ट्रेनें चलेंगी। लेकिन गौर करें तो अजमेर से दिल्ली कैंट की वंदे भारत 5 घंटे 15 मिनट में सफर पूरा कर रही है जबकि शताब्दी एक्सप्रेस 6 घंटे 15 मिनट में। अब इस गाड़ी के साथ देश भर में कुल 14 वंदे भारत ट्रेनों का संचालन हो रहा है। पहली ट्रेन नई दिल्ली से वाराणसी के बीच 2019 में चली थी। दूसरी नई दिल्ली-वैष्णो देवी के बीच। इसके बाद गांधीनगर-मुंबई, दिल्ली-अंब अंदौरा, चेन्नई-मैसूर, नागपुर-बिलासपुर, हावड़ा-न्यू जलपाईगुड़ी, विशाखापट्टनम-सिकंदराबाद, मुंबई-साईंनगर शिरडी, मुंबई-सोलापुर और भोपाल-दिल्ली, चेन्नई-कोयंबटूर और सिकंदराबाद-तिरुपति के बीच शुरू की गयी। समय के हिसाब से देखें तो दिल्ली-वाराणसी के बीच 757 किमी का सफर आठ घंटे में पूरा होता है, जबकि दिल्ली से माता वैष्णों देवी का 655 किमी का सफर आठ घंटे में, मुंबई- गांधीनगर का 519 किमी का सफर सवा छह घंटे में, हिमाचल की ट्रेन का 412 किमी का सफर सवा पांच घंटे में, चेन्नई- मैसूर का 504 किमी का सफर साढ़े छह घंटे में, नागपुर- बिलासपुर के 411 किमी का सफर साढ़े पांच घंटे में और हावड़ा से न्यू जलपाईगुड़ी का 564 किमी का सफर साढ़े सात घंटे में तय हो रहा है।
स्लीपर वर्जन की तैयारी
दिलचस्प तथ्य यह है कि 2022 के आरंभ में भारतीय रेल के मुख्यालय रेल भवन में अरसे से मौजूद अंग्रेजी राज के सुंदर भाप इंजन को राष्ट्रीय रेल संग्रहालय भेज कर उसकी जगह वंदे भारत की प्रतिकृति लगा दी गयी। आगे इसके की स्लीपर वर्जन योजना भी है जिसका प्रोटोटाइप रैक जल्दी तैयार हो जाएगा। अभी वंदे भारत केवल एसी चेयरकार और एग्जीक्यूटिव क्लास में ही उपलब्ध है, जिसका किराया शताब्दी के एसी चेयरकार का 1.4 गुना है, जबकि एक्जिक्यूटिव क्लास का 1.3 गुना अधिक। इस पर आरक्षण शुल्क, सुपरफास्ट चार्ज, खानपान शुल्क, और जीएसटी आदि प्रभार अलग से लगते हैं।
उत्पादन का कार्यक्रम
वंदे भारत गाड़ी के सवारी डिब्बे भारतीय रेल की उत्पादन इकाइयों में बन रहे हैं। 2020-23 में 35 रैकों और 2023-24 में 67 रेकों के उत्पादन का कार्यक्रम जारी है। इसी के साथ वंदे भारत गाडि़यों के साथ मेनलाइन और उपनगरीय गाड़ियों के लिए वंदे-मेट्रो, वंदे भारत गाड़ियों के स्लीपर संस्करण, मेमू, ईएमयू, कोलकाता मेट्रो के कोचों में वंदे भारत के समान तीन चरण प्रणाली वाले गाड़ी निगरानी और नियंत्रण प्रणाली की डिजाइन तैयार की जा रही है। वंदे भारत के निर्यात संभावनाओं के लिए संभावित बाजार की पहचान राइट्स (भारत सरकार का एक उद्यम) कर रहा है। बहुत से दावे इस ट्रेन को लेकर किए जा रहे हैं। इस बीच इसमें कुछ कमियां भी दिखीं। जैसे 8 अक्तूबर 2022 को वाराणसी वंदे भारत के पहिए मोटर ट्रैक्शन में तकनीकी खराबी के कारण दिल्ली से 90 किमी दूर खुर्जा में जाम हो गए तो मुसाफिरों को शताब्दी में बिठा कर आगे की यात्रा पूरी की गयी। कई जगहों पर यह गाय-भैंस से टकराने के कारण खबरों में रही। लेकिन ट्रेनों के साथ ऐसा होता ही रहता है। लेकिन रफ्तार की मोदी सरकार की सोच नयी नहीं है। 2014 के रेल बजट में मोदी सरकार ने नौ रूटों पर सेमी हाईस्पीड ट्रेन चलाने की घोषणा की थी। दिल्ली- चंडीगढ़ रूट पर 200 किमी तक रफ्तार के साथ चलाने के लिए काम भी आरंभ किया गया,लेकिन इसे अभी साकार होना है।
गति बढ़ाने के लक्ष्य
भारतीय रेलों में गाड़ियों की गति बढ़ाने को 2016-17 के बजट में मिशन रफ्तार की घोषणा की गयी थी, जिसके तहत पांच सालों में मालगाड़ियों की औसत गति दोगुनी करने का लक्ष्य रखा। मिशन रफ्तार के तहत 5 अप्रैल 2016 को गतिमान एक्सप्रेस की शुरुआत हुई, जिससे दिल्ली- आगरा के बीच का सफर सौ मिनटों में साकार हो गया। 2017-18 के दौरान 769 मेल एक्सप्रेस और पैसेंजर गाड़ियों की गति बढ़ायी गयी है। रेल मंत्रालय का प्रयास था कि 2020 तक सभी ट्रेनों की गति बढ़ जाये, पर ऐसा हो नहीं सका। यह अलग बात है कि सारे रेल नेटवर्क को विद्युतीकृत करने के बाद जल्दी ही गति बढ़ाने में फायदा मिल सकता है।
बुलेट ट्रेन परियोजना हमारी पहली बुलेट ट्रेन की शुरुआत 15 अगस्त 2022 तक होनी थी लेकिन इसमें अभी समय लगना है। अहमदाबाद-मुंबई हाईस्पीड रेल परियोजना पर एक लाख आठ हजार करोड़ रुपए का व्यय हो रहा है। यह परियोजना भारतीय रेल को रफ्तार के एक नए युग में प्रवेश कराएगी। लेकिन अगर अतीत को देखें तो 1967 को याद रखना होगा जब स्वदेशी प्रयासों से बगैर रेलपथ, सिगनलिंग और चलस्टाक पर अधिक निवेश किए गति विस्तार की संभावनाओं पर विशेष अध्ययन हुआ। तब बड़ी लाइन पर यात्री गाडि़यों की अधिकतम गति 96 किमी थी। रेलवे बोर्ड ने 7 अक्तूबर 1967 को हुई अपनी उच्च स्तरीय बैठक में पहली बार दिल्ली-हावड़ा के बीच 120 किमी रफ्तार से गाड़ी चलाने की व्यवहार्यता अध्ययन का फैसला किया और पहली राजधानी नयी दिल्ली-हावड़ा के बीच 1 मार्च, 1969 को चली तो इसे देखने हर जगह भारी भीड़ उमड़ी थी। जिस इलाके से ये गाड़ी गुजरती थी, वहां का नजारा कुछ और होता।
राजधानी का कमाल उस दौरान राजधानी ने 1445 किलोमीटर का लंबा सफर महज 17 घंटे 20 मिनट में पूरा कर रेल इतिहास में नया अध्याय जोड़ा। यही गाड़ी भारत में सुपरफास्ट क्रांति का वाहक बनी। 120 किमी प्रति घंटे की रफ्तार से दौड़ी राजधानी हावड़ा की गति आगे 130 किमी प्रति घंटा की गयी। इसने सौ सालों के गति प्रतिबंधों को तोड़ा। आज 24 जोड़ी राजधानी एक्सप्रेस लाखों यात्रियों को सेवा दे रही हैं। देश में पहला एसी-3 डिब्बा भी 1993 में हावड़ा राजधानी में लगा था और 1996-97 में मुंबई राजधानी में पहली बार उपग्रह आधारित टेलीफोन सेवाएं भी उपलब्ध हुईं। आज राजधानी गाड़ियां अत्याधुनिक एलएचबी कोचों से लैस हैं। 1988 में शताब्दी एक्सप्रेस की शुरुआत हुई। फिलहाल यह तैयारी भी चल रही है कि फरवरी 2024 तक चुनावी शोर की तेजी के बीच आम रेलयात्रियों के लिए स्लीपर कोच भी सुलभ होगा। भविष्य में वंदे भारत कोच ही ट्रेनों में लगेंगे और जर्मन तकनीक वाले एलएचबी कोचों की विदाई हो जाएगी। आईसीएफ चेन्नई, एमसीएफ रायबरेली, रेल कोच फैक्ट्री सोनीपत और रेल कोच फैक्ट्री लातूर में वंदे भारत बनेगी। बहुत कुछ बदलाव हो रहे हैं। लेकिन आम आदमी के हक में भारतीय रेल कितना बदलती है, यह देखना अभी बाकी है।
लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं और भारतीय रेल के सलाहकार रहे हैं।