शारा
70 का दशक आते-आते एक स्टार के रूप में साधना की जमीन खिसकती जा रही थी। केवल स्टार के रूप में क्यों, एक अभिनेत्री के रूप में भी उन्हें फिल्में हासिल करने के लिए काफी एड़ी-चोटी का जोर लगाना पड़ रहा था। शर्मिला टेगोर, मुमताज और हेमा मालिनी सरीखी अदाकाराएं साधना को काफी टक्कर दे रही थीं। ऊपर से साधना थायराइड की मरीज थीं, सो नैन-नक्श और डीलडौल के अलावा वह फुर्तीलापन भी घट रहा था। ऐसे समय में वह ‘इश्क पर जोर नहीं’ फिल्म के जरिये अपनी खिसकती जमीन बचा पायीं। उनके उम्दा अभिनय और लाखों की पसंद मुस्कान ने न केवल दर्शकों को ही बांधे रखा बल्कि प्रोड्यूसर के भी गल्ले भर दिये। फिल्म हिट की श्रेणी में आ गयी। आखिर इस फिल्म को भी ‘फिर सुबह होगी’, ‘गर्म कोट’ जैसी क्लासिक फिल्में फिल्म जगत को देने वाले निर्देशक रमेश सहगल ने निर्देशित किया था। उनके साथ थे हकीकत फिल्म का निर्देशन करने वाले चेतन आनंद। निर्देशकों की बढ़िया टीम होने के बावजूद फिल्म सिर्फ ‘हिट’ पर आकर रुक गयी, सुपरहिट नहीं बन सकी। लगा कि मुख्यधारा वाली फिल्म बनाते-बनाते निर्देशक रमेश सहगल ‘कन्फ्यूज’ हो गये थे। रही-सही कसर फिल्म के संपादन में खामियों ने निकाल दी। हालांकि साधना के बेजोड़ अभिनय ने देर तक दर्शकों को बांधे रखा। ड्रीम सीक्वेंसेज ने साधना के सौंदर्य को और उभारा। थैंक्स टू किशन रेज, जिन्होंने सिनेमैटोग्राफी की थी। इसमें धर्मेंद्र भी हैं। वह भी अपने रोल को जी पाने में कामयाब रहे। लेकिन सारा का सारा शो चुराने वाले विश्वजीत थे। फिल्म की जान एस.डी. बर्मन का संगीत और आनंद बख्शी द्वारा लिखे गये गीत थे जो आगे चलकर लोगों की जुबान पर काफी चढ़े। ‘ओ महबूबा कैसी तेरी तस्वीर’, ‘यह दिल दीवाना है’, ‘तुम मुझसे दूर’ सरीखे गीत आज भी लोकप्रिय हैं। यह ऐसी पहली और आखिरी फिल्म है जहां विश्वजीत और साधना ने इकट्ठे काम किया है। इसी तरह इसी फिल्म में धर्मेंद्र ने साधना के साथ काम किया। इसके अतिरिक्त इस फिल्म ने एक और रिकार्ड बनाया है। इसी फिल्म में पहली बार संतूर का प्रयोग हुआ । इस फिल्म की स्टोरी 1969 में रिलीज यश चोपड़ा की ‘आदमी और इन्सान’ से मिलती-जुलती है। इसी फिल्म के बाद बतौर हीरोइन साधना ने एकाध फिल्मों में काम किया और फिर संन्यास ले लिया। उन्होंने चरित्र भूमिकाएं नहीं कीं। ‘लव इन शिमला’ में एक्टिंग करते हुए उनकी फिल्म के निर्देशक आर.के. नैयर से आंखें चार हुईं और उनसे ही शादी कर ली। पाठक इन्हें संगीतकार नैयर न समझें। उन्होंने ‘वक्त’, ‘मेरा साया’, ‘मेरे महबूब’ ‘वो कौन थी’ जैसी सुपर-डुपर हिट फिल्में हमें दीं। लेकिन अंत उनका बड़ा ही खराब गुजरा। आखिरी वक्त में रिश्तेदार आफताब शिवदसानी ने उनके अस्पताल के बिल भरे। बबीता उनकी चचेरी बहन हैं। बताते हैं कि उनके निधन पर पारिवारिक दुश्मनी के कारण वह नहीं आयीं।
बहरहाल, कहानी की ओर मुड़ें। अमर दुरैस्वामी बने विश्वजीत शिपिंग कंपनी के धनवान मालिक की संतान हैं जो गोवा स्थित एक आलीशन बंगले में रहते हैं। अमर अपने पिता से राम बने धर्मेंद्र को मिलाता है जो उसे नौकरी पर रख लेते हैं। तभी अमर सुषमा (साधना) नामक लड़की के इश्क में पड़ जाते हैं और राम से अपने नाम से अपनी महबूबा को प्रेमपत्र लिखते हैं, जिनमें कविताएं लिखी होती हैं। प्रेमपत्र पढ़कर सुषमा सोचती है कि लेखक ही अमर है और उसके प्यार में पड़ जाती है। जब वह राम को मिलती है तो सचमुच उसके प्रति आकर्षित हो जाती है। राम को जब पता चलता है कि वह अमर को प्यार करती है तो राम उससे दूर रहने लगता है। लेकिन राम के लिए सुषमा कुछ और ही सोचती है। वह उससे किसी भी कीमत पर शादी करना चाहती है। वह इस बात से बेखबर है कि इससे राम की नौकरी जाएगी ही बल्कि उसकी मां का क्या होगा? अब सुषमा यानी साधना इसमें राम उर्फ धर्मेंद्र से शादी करेगी या नहीं? यह पाठक मूवी देखकर ही बताएं, तभी ठीक है। फ्लैश बैक उनका सस्पेंस खराब नहीं करना चाहता।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : सुरेश सहगल
निर्देशक : रमेश सहगल
पटकथा : एस.पी. बख्शी, रमेश सहगल
सिनेमैटोग्राफी : किशोर रेज़े
गीतकार : आनंद बख्शी
संगीतकार : सचिन देव वर्मन
सितारे : साधना, धर्मेंद्र, विश्वजीत, नादिरा आदि
गीत
इश्क पर जोर नहीं : लता मंगेशकर
यह दिल दीवाना है : मोहम्मद रफी, लता मंगेशकर
मैं तो तेरे रंग : लता मंगेशकर
प्यार भरी एक बात चली : आशा भोसले
ओ मेरे वैरागी भंवरा : लता मंगेशकर
महबूबा तेरी तस्वीर : मोहम्मद रफी
तुम मुझसे दूर चले जाना ना : लता मंगेशकर
कोई माने या न माने : किशोर कुमार, आशा भोसले