
रजनी अरोड़ा
मां बनना हर स्त्री के लिए दुनिया का सबसे अनूठा अहसास होता है। जब महिला पहली बार मां बनती है, तो कई बार उसे ठीक से यह पता नहीं होता कि खुद को कैसे स्वस्थ रखना है, बच्चे की देखभाल कैसे करनी है। इसलिए उसे कई तरह की परेशानियों का सामना करना पड़ता है।
बच्चे को दूध न पिला पाना
डिलीवरी के बाद होने वाली परेशानियों, सिज़ेरियन या प्री-मेच्योर बेबी होने या नर्सरी में रखे जाने के कारण कई महिलाएं बच्चे को कोलेस्ट्रम दूध भी नहीं पिला पातीं। यह दूध डिलीवरी के 48 घंटे तक आता है जो बच्चे के लिए लाइफ सेविंग का काम करता है। बच्चे के इम्यून सिस्टम को मजबूत बनाता है और संक्रामक बीमारियों से बचाता है। ऐसे में महिला ब्रेस्ट पंप की मदद से दूध स्टोर कर ले और बाद में बच्चे को जरूर पिलाएं। स्तनपान न करा पाने के पीछे कई अन्य कारण भी रहते हैं। वहीं कई बार शिशु के तालू में छेद होने के कारण दूध नाक में चला जाता है और उसे सांस लेने में भी समस्या हो रही हो, तो वह दूध पीना छोड़ देता है। वहीं ध्यान न दिए जाने पर दूध उतरना बंद हो जाता है। इस स्थिति को लैक्टेशन फैल्योर कहा जाता है। ऐसी स्थिति में माएं ब्रेस्ट पंप की मदद से बच्चे को फीड करा सकती हैं।
सोते हुए स्तनपान खतरनाक
कई बार मां शिशु को सोते-सोते ही दूध पिला देती हैं जो बच्चे के लिए कई बार नुकसानदायक हो सकता है। दूध उसके गले में अटक सकता है, उसे उल्टी हो सकती है या सांस रुक सकती है। अगर बच्चा सो रहा है तो उसकी टांगों और पैरों के तलवों को धीरे-धीरे थपथपा कर पहले जगाएं और तभी स्तनपान कराएं। स्तनपान कराते हुए बच्चे का सिर 45 डिग्री ऊपर उठा हुआ होना चाहिए। दूध पिलाने के बाद बच्चे को सीधी या उल्टी करवट से लिटाना चाहिए।
डेली रूटीन को करें मैनेज
ज्यादा सोना नवजात शिशु के शारीरिक-मानसिक विकास के लिए जरूरी है। आमतौर पर बच्चा शुरू में पूरे दिन सोता है और रात भर जागता है। मां के पेट में भी उसकी यही रूटीन होता है। लेकिन मां को नैपी बदलने, फीड कराने, साफ करने को नवजात शिशु के साथ रात-रात भर जगना पड़ता है। इससे उनका रूटीन गड़बड़ा जाता है। बेहतर है कि दिन में बच्चे के साथ मां को भी सो जाना चाहिए।
पेट में गैस से बेहाल
आमतौर पर नवजात शिशु बहुत रोते रहते हैं और दूध तक नहीं पी पाते। जिसकी मुख्य वजह होती है- उनके पेट में गैस बनना। दूध पीते-पीते बीच-बीच में वो हवा भी अंदर ले जाते हैं जिससे गैस बनती है। दूध पिलाने से पहले और बाद जरूरी है कि बच्चे की अपने गले से सीधे लगा कर धीरे-धीरे पीठ ऊपर से नीचे हाथ ले जाते हुए थपथपाएं। इससे बच्चे को डकार आ जाएगी।
मां का आहार
नवजात शिशु के पेट में गैस बनने या ज्यादा रोने के पीछे एक बड़ा कारण मां का गरिष्ठ भोजन करना है। मां के भारी चीजें खाने से बच्चे के पेट में गैस ज्यादा बनती है, दूध के जरिये बच्चे तक पहुंचती है और नुकसान पहुंचाती है। पेट दर्द या लूजेज की शिकायत रहती है। ऐसे में मांएं राजमाह, चने, फ्राइड चीजें, मटर जैसी भारी चीजें आहार में कम से कम शामिल करें। इनके बजाय तोरी, लौकी, टिंडा, मूंग दाल जैसा हल्का भोजन करें। मां की डाइट एक्स्ट्रा कैलोरी और पौष्टिक तत्वों से भरपूर होनी चाहिए क्योकि वो जो खाएंगी उसका सार ही दूध में शामिल होकर बच्चे तक पहुंचता है। इसके उन्हें अपने भोजन में सभी रंगों की फल-सब्जियों और डेयरी प्रोडक्ट्स को शामिल करना चाहिए। ज्यादा लिक्विड डाइट लेनी चाहिए जिससे दूध उतरने में आसानी हो। इसके अतिरिक्त उन्हें रोजाना कैल्शियम और विटामिन्स की टेबलेट लेनी जरूरी हैं।
शिशु को सर्दी-जुकाम
अक्सर मांएं नवजात को ठंड लगने, बार-बार होने वाले सर्दी-जुकाम, बुखार से परेशान रहती हैं। ऐसा समुचित ध्यान न रखे जाने पर या इन्फेक्शन की चपेट में आने के कारण होता है। कई बार मां नहाने के तुरंत बाद खासकर गीले बालों के साथ स्तनपान कराती हैं, इससे शिशु को ठंड लगने की संभावना रहती है। ठंड से बच्चे को निमोनिया हो सकता है। इसी तरह शिशु को नहलाने में बरती जाने वाली असावधानियों की वजह से भी बच्चे जल्द बीमार हो जाते हैं। मालिश में बच्चे के सारे कपड़े उतार देना, तुरंत बाद नहलाना और नहाने की तैयारी न कर बच्चे के कपड़े उतार देना, नहाने के बाद पंखा या एसी चला कर कपड़े बदलना- जैसे कारणों से बच्चे को हवा या ठंड लगने की आशंका रहती है। दिन में जब टेम्परेचर गर्म हो यानी 12-1 बजे के आसपास नहलाएं।
न बरतें लापरवाही
आमतौर पर बच्चे के विकास के बारे में मां को पता नहीं होता जैसे- बच्चे को कब बैठना चाहिए, कब खड़े होना या चलना चाहिए, कब बोलना चाहिए। इस बारे में यह न सोचें कि टाइम बीतने के साथ यह सब बच्चा अपने-आप करने लगेगा। बेहतर होगा कि मां डॉक्टर से कंसल्ट करे, हर 2-3 महीने में डॉक्टर के पास चैकअप करवाएं।
डॉ. अंशु जिंदल, वरिष्ठ स्त्री रोग विशेषज्ञ,
मेरठ से बातचीत पर आधारित
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