कौशल सिखौला
गंगा की नगरी हरिद्वार की महिमा बहुत निराली है। यहां पूजा और कर्मकांड से जुड़ा तमाम समान तो मिलता ही है, भगवान भी मिल जाते हैं। अब यह आपकी मर्जी कि भगवान को ध्यान लगाकर पाएं या अध्यात्म में डूब जाएं। यहां भगवान मंदिर में भी मिलते हैं, गंगास्नान से भी और सूर्य को अर्घ्य देते समय भी। भगवान यहां भवनों पर तो विराजमान हैं ही, बाजार में भी बड़ी-बड़ी दुकानों पर मिल जाते हैं। श्रीराम भी मिलते हैं श्रीकृष्ण भी। गणेश भी और ब्रह्मा विष्णु महेश भी। चाहो तो तांबे-पीतल के ले लो, पूजा में सजाओ, चाहो तो संगमरमर के ले लो, मंदिर में बसाओ। भगवान का घर है, भगवान को चाहे जिस रूप में पाओ।
हरिद्वार में मूर्तियों का बाजार यहां के सबसे पुराने मोती बाजार और हर की पैड़ी से सटे बड़ा बाजार में फैला है। पत्थरों की विशाल मूर्तियों के इस बाजार में पंजाब, दिल्ली, हरियाणा, उत्तराखण्ड और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मूर्ति खरीदार रोजाना मिल जाएंगे। ये वे लोग हैं जो शहर-गांव के मंदिरों में प्रतिष्ठित करने के लिए मूर्तियां लेने यहां आते हैं। नए मंदिरों के साथ-साथ पुराने मंदिरों में खंडित प्रतिमाओं की जगह नई मूर्तियां भी हरिद्वार से ले जाकर लगाई जाती हैं। दुकानों पर शिव दरबार, राम दरबार आदि बड़ी मूर्तियां भी उपलब्ध हैं। छोटे-बड़े नंदी भी मिल जाते हैं, देवी दुर्गा और उनकी सवारी सिंह भी। मंदिरों के मुख्यद्वार के दोनों ओर सजाने के लिए गजराज भी यहां उपलब्ध हैं। विश्वकर्मा, ब्रह्मा, विष्णु, महेश, महालक्ष्मी, पार्वती, कुबेर, कार्तिकेय, गणेश आदि तमाम देवी-देवता सुंदर प्रतिमाओं के रूप में सहज मिल जाते हैं। हरिद्वार में मूर्तियों का बाजार काफी समृद्ध है।
धर्मनगरी में भगवान की सभी मूर्तियां पीतल में भी मिलती हैं। तांबे और पीतल के तमाम पूजा बर्तनों से बाजार अटा पड़ा है। इनका उपयोग घरों के पूजास्थल पर होता है। भगवान के सभी स्वरूपों के वस्त्र भी यहां सहज मिल जाते हैं। कृष्ण की पीतल से बनी मूर्ति भी मिलेगी और लड्डू गोपाल भी। शालिग्राम तथा नर्मदेश्वर आदि भी भिन्न-भिन्न आकार में उपलब्ध हैं। बाजार में मूर्तियों और किसी भी प्रकार की पूजा-यज्ञ से जुड़ी तमाम सामग्री हर की पैड़ी क्षेत्र में मिल जाएगी। इस दृष्टि से हरिद्वार का मूर्ति बाजार उत्तर भारत का समृद्ध बाजार माना जाता है। एक और विशेषता इस नगरी की यह है कि यहां दर्जनों भवनों के प्रवेश द्वार अथवा बाहरी शिखर पर देव प्रतिमाएं विद्यमान हैं। <
व्रत-पर्व
14 नवंबर : श्री रामेश्वर महादेव दर्शन-पूजन लोटा-भंटा-मेला-रामेश्वर, वाराणसी।
16 नवंबर : मार्गशीर्ष संक्रांति (15 मुहूर्ति), श्री काल भैरवाष्टमी, आकाश दीपदान समाप्त।
19 नवंबर : श्री महावीर दीक्षा दिवस (जैन)।
20 नवंबर : उत्पन्ना एकादशी व्रत।
– सत्यव्रत बेंजवाल