मोनिका शर्मा
बड़े होकर भी अपने बचपने को बचाए रखने वाले लोग मन के अनमनेपन और तन की थकान से हमेशा दूर रहते हैं| जिंदगी की भागमभाग में भी बचपन वाली थोड़ी सी निश्छलता और बेफ़िक्री को सहेज लेते हैं| उम्र के हर पड़ाव पर सहेजी गई यह मासूमियत मन को खुशनुमा अहसासों से लबरेज़ करने वाली होती है| शारीरिक और मानसिक सेहत सहेजती है| शिकायतों और उलझनों से दूर जीवन के प्रवाह में सरलता से बहते जाने की सीख देती है| यह निश्छलता हमें कितनी ही बातों से मुक्त कर देती है। फायदे-नुकसान से परे एक ऐसे वैचारिक भाव को पोषित करती है जिसमें कोई द्वेष और चालाकी नहीं होती। मन संतोष और ख़ुशी से भरा रहता है| यह ख़ुशी उस बेफ़िक्री की वजह से मिलती है, जो मन की सरलता के कारण हमारी झोली में आती है। आज के समय में बड़ों से जीवन में इतनी भागमभाग और कटुता है कि न बेफ़िक्री बची है और न ही सहजता। मानवीय व्यवहार की यह अनमोल नेमत खो रहे हम भीतर से भी खाली हुए जा रहे हैं। ऐसे में भावनात्मक टूटन कितना कुछ बिखेर रही है यह भले ही नजर नहीं आता पर मन-जीवन दोनों इसके खामियाज़े भुगत रहे हैं। ऐसे में भोलेपन और भावुकता का मेल जो बच्चों के व्यवहार में होता है वह हम सभी को बचपन की इस निश्छल मिठास को बनाये रखने की सीख देता है। इसीलिए निष्कपट सरलता का भाव बड़े होकर भी बना रहे यह कोशिश तो जरूर की जानी चाहिए। कल बाल दिवस पर इस बारे में सोचना चाहिए।
व्यस्त रहने का सुख
बच्चे हरदम व्यस्त रहते हैं। उनकी व्यस्तता अपनेआप में रचनात्मक होती है| उसमें कोई नकारात्मकता का भाव नहीं होता| जरूरी है कि बड़े भी व्यस्त रहें| बस, इतना ख़याल रहे कि यह व्यस्तता अर्थपूर्ण भाव लिए हो| यूं तो आजकल हर कोई व्यस्त है। जीवन की गति से तालमेल बनाये रखने को आतुर है। या यूं कहें कि जीवन से भी अधिक तेज़ी से दौड़ने को बाध्य है। हम भागे तो जा रहे हैं पर जितना स्वयं को उलझा रखा है उसका प्रतिफल क्या है? ऐसे में कम से कम यह सोचना जरूरी है कि यह व्यस्तता अर्थपूर्ण और सकारात्मक हो। हमारे मन को ख़ुशी दे। अपनेआप से सवाल करना होगा कि हम ‘व्यस्त रहो मस्त रहो’ वाली कहावत के अनुरूप चल रहे हैं या तकनीकी युग में स्वयं भी किसी गैजेट के समान व्यस्त तो बहुत हैं, पर मस्त नहीं। इसीलिए व्यस्त रहने के लिए भी कुछ ऐसा किया जाये जो मन को सुकून और संतुष्टि दे। इसके लिए अपने काम या नोकरी के अलावा बड़ों को भी कुछ ना कुछ क्रिएटिव करते रहना चाहिए। यही सृजनात्मकता हमें सकारात्मक सोच और सार्थक व्यस्तता की सौगात देती है।
भूलें और आगे बढ़ें
बच्चों से सहज बनें और सब भूल जाएं। बच्चे को देखिये और सीखिए कि कैसे बालमन ख़ुशी या तकलीफ दोनों को ही लम्बे समय तक याद नहीं रखते। पलभर में उनकी नाराजगी दूर हो जाती है और चंद लम्हों में ही अपने प्यारे खिलौने के टूटने का दुःख भुला देते है। आज के समय में रिश्तों की जो उलझने हैं, उनमें बहुत कुछ ऐसा है जो केवल भुला देनेभर से दूर हो सकता है। जीवन में अच्छा-बुरा समय आता-जाता रहता है। इसे सहजता से स्वीकार कर आगे बढ़ने में जीवन की सार्थकता है। किसी एक घटना का साया ज़िन्दगी के हर लम्हे को सूना और असहज बना दे, ऐसा नहीं होना चाहिए। इसीलिए बड़ों को भी समझना होगा कि जीवन में हर समय गंभीरता नहीं ओढ़ी जा सकती। थोड़ी खिलखिलाहटें, थोड़ी मुस्कुराहटें जीवन को हर दिन नयी ऊर्जा देती हैं। हमें बच्चों से सीखना होगा कि वे कैसे हर हाल में ख़ुश रहते हैं। कहते भी हैं कि हंसना बच्चों से सीखिए, जिनके लिए जीवन का हर भाव ख़ुशी देने वाला ही है। बालमन की ख़ासियत है कि जो बीत गया वह उसे जाने देता है। बड़े भी बीती बातें भूलकर आगे बढ़ना इन बच्चों से सीखें|
खुशियां बांटें
एक कहावत है कि हमारी आत्मा बच्चों के साथ रहने पर स्वस्थ होती है। यानी बालपन की सहजता और निश्छलता मन को भीतरी ख़ुशी देती है| बच्चों से मिलने और उनके साथ समय बिताने वाला हर इंसान आनन्द की सौगात पाता है। बालमन की यह मासूमयित बड़ों को भी बहुत कुछ सीखने-समझने की प्रेरणा देती है। बच्चे न केवल खुलकर खुशियां बटोरते हैं, बल्कि बांटते भी हैं। कभी-कभी तो आंखों में आंसू और चेहरे पर हंसी एक साथ दिखती है। यही तो जीवन है। यह सरलता और स्वीकार्यता का भाव ही तो जीना आसान करता है। सबसे जोड़कर रखता है। बच्चों की ख़ुशी एक समान होती है चाहे उन्हें कोई माटी का खिलौना मिले या महंगा खिलौना। इसलिए बड़े भी खुशियां बांटना और खुश रहना बच्चों से सीख सकते हैं|