डॉ. बी. मदन मोहन
कनाडा को यदि संग्रहालयों का देश कहा जाए तो शायद गलत नहीं होगा। इस देश में कोई भी बड़ा-छोटा नगर और कस्बा ऐसा नहीं है जहां संग्रहालय की स्थापना न की गई हो। कनाडाई जीवन तथा समाज से जुड़ा कोई ही पक्ष ऐसा होगा जिसके अभ्युदय, विकास, उपलब्धियों और भविष्यगत संभावनाओं का विशद् विवरण इन संग्रहालयों में न मिलता हो। अपनी विरासत और संस्कृति के साथ-साथ विश्व-सभ्यताओं तथा संस्कृतियों का ऐतिहासिक लेखा-जोखा यहां के संग्रहालयों-विथिकाओं में जाना समझा जा सकता है। कनाडा के अतिरिक्त ईरान, चीन, फ्रांस, अमेरिका, ब्रिटेन और एशिया महाद्वीप के साथ इस्लाम, यहूदी, ईसाई, बौद्ध और विश्व की अन्य कई राष्ट्रीयताओं-धर्मों की गहन जानकारी इन संग्रहालयों में सहज उपलब्ध है। वर्तमान समय की शिक्षा, विज्ञान, कृषि, तकनीक, खेल, सिनेमा-थियेटर, प्रकृति, समाजशास्त्र, भू-विज्ञान, कला-संस्कृति, मानव शास्त्र, जीव-जगत तथा रक्षा पद्धति के प्रत्येक पहलू को अत्यन्त सूक्ष्मता एवं सहजता से इनमें प्रदर्शित किया गया है।
ज्ञान के स्रोत
कनाडा में संग्रहालयों की अवधारणा ने 16 मई 1856 को आकार लिया और कुछ ही समय में विस्तृत फलक को छूने लगी। इस विस्तार तथा महत्व को समझते हुए इनका प्रबंधन सन् 1927 से एक संघीय विभाग द्वारा किया जाने लगा। वास्तव में संग्रहालय कनाडा की ऐसी धरोहर हैं जहां विद्यार्थियों को व्यावहारिक शिक्षा और मनोरंजन, नागरिकों को समृद्ध जानकारी के साथ राहत, शोधार्थियों को ज्ञान के साथ सहयोग, लेखकों को समझ विकसित करती सामग्री, वरिष्ठ नागरिकों को अकेलेपन से निजात विरासती दाय के रूप में मिलता है। ‘अप्पर कनाडा विलेज’ में लेखक स्वयं इन विचार-संज्ञाओं का गवाह बना है। यहां घूमते हुए यह अहसास निरन्तर बना रहता है कि यह स्थान एक ही समय में ज्ञान के स्रोत और पिकनिक स्थल दोनों हैं। सप्ताहांत के दिनों सपरिवार यहां घूमना जीवन का अभिन्न अंग है।
विद्यार्थियों-शोधार्थियों को निशुल्क, वरिष्ठ नागरिकों को 20 से 30 फीसदी छूट के साथ प्रवेश दिया जाता है। कनाडा के प्रत्येक नगर-कस्बे मे एक-दो संग्रहालय ऐसे हैं, जिन्हें देख-समझ कर वैचारिक तृप्ति का एहसास होता है। जिस बड़ी संख्या में इनकी स्थापना की गई है उससे इनके महत्व और उपादेयता को समझा जा सकता है -वेंकुवर-30, मांट्रियल-10, ऑटवा-8, कैलगरी-11,टोरंटो-18,क्यूबेक-16। ब्रैमटन, हैमिल्टन, नियाग्रा, किंग्स्टन, बैंफ, एडमोंटन, हेलीफैक्स तथा विन्नीपेग सरीखे छोटे शहरों में भी संग्रहालयों की चमक और प्रभाव को अनुभव किया जा सकता है। भ्रमण के दौरान दर्शक इनसे बतियाते चलते हैं, जब उनके समाज का अतीत साकार हो सम्मुख आ खड़ा होता है। संग्रहालयों में फिल्मांकन और विभिन्न संभागों में कम्प्यूटर पर जानकारी पाकर जीवंतता का एहसास ठीक उसी तरह होता है जैसे कुरुक्षेत्र पेनोरमा में महाभारत युद्ध काल का होता है। ‘अप्पर कनाडा विलेज’ एक खुला संग्रहालय है, जिसके कर्मचारी जब एक-डेढ़ शताब्दी पहले के कनाडा का जन-जीवन और समाज संरचना को तत्कालीन परिवेश तथा वेशभूषा में हमसे वार्तालाप करते हुए प्रदर्शित करते हैं, तो लगता है हम उसी दुनिया का हिस्सा हैं।
शताब्दियों की दास्तां
कभी-कभी जब हम गहरे अतीत में झांक कर इतिहास के पन्नों को पलटते हुए अपने परिवार और समाज को जानने का प्रयास करते हैं तो तीन-चार पीढ़ी तक जाकर रुक जाते हैं। समाज से जुड़े विचार तो मानस-पटल पर उभरते हैं, लेकिन उनकी तस्वीर बहुधा धुंधली रह जाती है। ऐसे में व्यक्ति की कल्पनाओं के रंग एक-दूसरे से जुदा दिखाई देते हैं। यह स्थितियां उस समय परिमाणात्मक रूप में बदल जाती हैं, जब इतिहास चित्रों अथवा संरचनाओं द्वारा साक्षात हमारे सम्मुख आ खड़ा होता है।
सन्् 1961 में स्थापित ‘अप्पर कनाडा विलेज’ दो शताब्दियों पूर्व के अपने धुंधलाए अतीत को संजोकर चटक रंगों में तत्कालीन मानव और समाज की दास्तां कहता खुला संग्रहालय है। जो कभी सेंट लॉरेंस नदी किनारे से विलुप्त या नष्ट हुए उन्नीसवीं शताब्दी के ब्रिटिश शासन कालीन दस गांवों की पुनर्प्रस्तुति करता है। यहां उस दौर की पुनर्निर्मित चालीस इमारतों द्वारा कृषि, लघु उद्योग, व्यापार और सामान्य जनजीवन के अनूठे दृश्य उकेरे गए हैं। यह संग्रहालय कनाडा की पहली राजधानी किंग्स्टन और दूसरी राजधानी मॉन्ट्रियल के मध्य वर्तमान राजधानी ओटवा से अस्सी किलोमीटर दूर मौरिसबर्ग में सेंट लॉरेंस नदी के पार्श्व में आबाद है।
कनाडा का राजनीतिक इतिहास बहुत पुराना नहीं है। इतने कम समय में उसके समुचित आर्थिक विकास, राजनीतिक स्थिरता, सहज लोक व्यवहार, बहुआयामी संस्कृति, जातीय विभिन्नता और समृद्ध सामाजिक परंपराओं को देखकर उसके इतिहास को जानने की जिज्ञासापरक उत्कंठा जाग्रत होती है। यह हकीकत है कि संघीय स्तर पर कनाडा बहुसंस्कृति और बहुभाषी होते हुए भी उसके नागरिक एक-दूसरे के प्रति समता, भाईचारे का भाव रखते हैं। सम्भवत: इसका प्रमुख कारण यहां के मूल निवासियों का उदार आचरण रहा है।
मूल निवासियों का स्थान
ऐसा माना जाता है कि कनाडा के फर्स्ट नेशन या मूल निवासी, लगभग बारह हजार वर्ष पूर्व एशिया से यहां आए। यह लोग सीमित साधनों द्वारा जलमग्न भूमि तल (द्वीप) से होते हुए साइबेरिया से अलास्का तक पहुंचे थे। एक मान्यता यह भी है कि साठ हजार वर्ष पूर्व अज्ञात लोग आर्कटिक क्षेत्रों से यहां आए। लेकिन अधिसंख्य मत यही है कि मूल कनाडाई लोग एशिया से सम्बद्ध हैं, जिनकी निकटतम समानताएं उत्तरी अमेरिका (कनाडा) के आर्कटिक लोगों तथा साइबेरियाई समकक्षों से मेल खाती हैं। वास्तव में ये लोग यायावर प्रवृत्ति के रहे होंगे जो भोजन और निवास के नए इलाकों को तलाशते यहां आ पहुंचे। अटलांटिक महासागर और उत्तरी अमेरिका इस दृष्टि से अत्यधिक समृद्ध क्षेत्र था। फिर यहां की भौगोलिक स्थितियां भी उनके अनुकूल थीं। यूरोप तथा एशिया से आने वाले नागरिकों को यही क्षेत्र सबसे पहले मिलता है। यहीं से सेंट लॉरेंस नदी जल मार्ग द्वारा अमेरिका तक पहुंचना भी सुगम था।
खुला संग्रहालय़
सुरक्षित निवास और भोजन के साथ औपनिवेशिक मानसिकता को आधार माना जाए तो फ्रांस, स्पेन, ब्रिटेन और अमेरिका ने 16वीं शताब्दी से अपने अधिपत्य स्थापना के प्रयास किए। लेकिन अंततः सफलता ब्रिटेन को मिली और सन 1867 से कनाडा एक स्वतंत्र संघीय राष्ट्र के रूप में ब्रिटिश शासन का अहम देश बन गया। प्रशासनिक आवश्यकताओं और सुविधाओं की उपलब्धता के अनुरूप लोग सेंट लॉरेंस नदी के आस-पास नियाग्रा, योर्क, किंग्स्टन, मौरिसबर्ग, कॉर्नवाल, स्टोरमोंट, डुंडास तथा ग्लेनगैरी में बसने लगे। उस समय यह क्षेत्र अप्पर कनाडा कहलाता था जो बाद में ओंटारियो प्रोविन्स बना। 200 साल पहले यहां आबाद हुए लोगों की ही वास्तविक तथा मनोरंजक दास्तान कहता है-‘अप्पर कनाडा विलेज’।
संग्रहालय कनाडाई जीवन का अभिन्न अंग हैं। अपनी युवा पीढ़ी, विशेषत: विद्यार्थियों में इतिहास को जानने-समझने की सोच-जिज्ञासा बनाए रखना इनका सर्वोपरि ध्येय है। अप्पर कनाडा विलेज एक खुले संग्रहालय के रूप में दो शताब्दियों पूर्व स्थापित अपने समाज और प्रकृति के सर्वांगीण पक्षों की विशद और वास्तविक तस्वीर सौंपता है। इसकी विशेषता समाज का पुनर्प्रस्तुतीकरण है, जिसमें कोई बनावटीपन नहीं। यहां वस्तुओं को सजाया नहीं गया अपितु सैकड़ों कर्मचारी, युवक-युवतियां उसी दौर की वेशभूषा में, उसी समय के संसाधनों के साथ हमारे समक्ष मौजूद रहते हैं। ऐसा आभास बना रहता है कि हम भी तत्कालीन समाज का हिस्सा बन गए हैं।
जीवन की विविधता
लुहार, बढ़ई, श्रमिक, कृषक, मोची, मछुआरे और पारिवारिक सेवकों की पोशाक, कार्यशैली, व्यवहार और खानपान उनके सामान्य जीवन को चिह्नित करता है। दूसरी तरफ धनाढ्य व्यापारी, संपन्न जमींदार, पादरी तथा भद्र महिलाओं की वैभवपूर्ण जीवन शैली को रेखांकित करता है। इन लोगों के आकर्षक परिधान, केश-सज्जा, जूतों तथा सिर पर रखे हैट से इनकी ऊंची हैसियत को परखा जा सकता है। यद्यपि उस समाज में आर्थिक विषमता स्पष्ट परिलक्षित होती थी तथापि जातिगत भेदभाव का कोई चिह्न मौजूद नहीं था। संपन्न घरों की स्त्रियां संगीत और नृत्य सीखतीं, पुस्तकें पढ़तीं, क्लब जातीं और सैर-सपाटा करतीं तो सामान्य गृहणियां खेतों, रसोई और अन्य जगहों पर काम करते गुजर-बसर करती थीं। पुरुषों की स्थिति भी मिलती-जुलती थी। उपर्युक्त तथ्यों को इस गांव की संरचनाएं भली-भांति परिपुष्ट करती हैं। अप्पर कनाडा विलेज में दर्शाए संसाधनों को उसी रूप में प्रदर्शित किया गया है जैसा वो उस युग में थे। यथा- वूलन मिल्स, आटा चक्की, आरा मशीन तथा छापाखाना का पानी अथवा भाप से चलना। खेत-खलिहान, दुकान तथा घर में प्रयुक्त यंत्र, वर्तमान मशीनी युग से बहुत दूर, हाथों से ही चलाए जाते हैं। हां समृद्ध लोगों के घर पक्के व नदी किनारे हैं, जबकि आमजन के घर छोटे व कुछ उपेक्षित से लकड़ी के बने हैं। लेकिन धार्मिक स्थलों पर सभी का व्यापार सौहार्द्रपूर्ण रहता है। संभव है आज के कनाडा में सांस्कृतिक विविधता के बावजूद एकता-भाव इन्हीं से विरासत में मिला हो।
समृद्ध अतीत
बच्चे, विद्यार्थी और अधेड़ कनाडाई नागरिकों और विश्व के अन्य देशों से आए सैलानियों को खुले आकाश के नीचे छतनार वृक्षों के बीच विशाल नदी के सान्निध्य में ग्रामीण रास्तों-पगडंडियों पर चहकते उत्साह भरे भावों को अभिव्यक्त करते देखना आनन्दित करता है। कोई वूलन मिल्स देखकर चकित है तो किसी को बेकरी अच्छी लगी है। किसी को मोची की दुकान तो कोई चर्च की बनावट देखकर आश्चर्यचकित है। बच्चों को नदी का फैलाव, लहलहाती फसल और डॉक्टर का आकर्षक घर अच्छा लगा, तो महिलाएं दर्जी, बढ़ई की दुकान और रॉबर्टसन का आलीशान बंगला और उसकी महिलाओं को देखकर खुशी से बतियाती हैं। युवाओं का जमघट मधुशाला और वेश्यालय को विस्फरित नेत्रों से निहार रहा है। लेकिन स्कूल की इमारत को देखकर सभी को हैरानी हुई कि दो शताब्दी पहले का समाज शिक्षा के प्रति कितना सजग था। मौरिसबर्ग स्थित अप्पर कनाडा विलेज में आस-पास के 80 किलोमीटर क्षेत्र में दो शताब्दी पूर्व बसे गांवों- केम्प्टविल, लैंकेस्टर, ब्रोक्विल, किर्कवुड़, ग्रीनविल, अर्नेस्टो, नार्थ अगस्टा, विलियम्सबर्ग, मोरिक्विल तथा ग्लेनगैरी- से आरा मशीन, बेलीमाई आटा चक्की, असेल्सटाईन वूलन मिल्स, फायर इंजन, रॉस फार्म हाऊस, विद्यालय भवन, पनीर फैक्ट्री, रॉबर्टसन का बंगला, विलियार्ट होटल के साथ डाकघर, परचून दुकान, लुहार, मोची, बढ़ई, दर्जी और घरेलू सेवकों का आशियाना उसके वास्तविक रूप में स्थापित किया गया है। नष्ट हुए भवनों की उनके चित्रों और वर्णनों के आधार पर पुन:स्थापना की गई है। इन्हें देखते-परखते पूरा दिन कब बीत जाता है, सैलानी जान ही नहीं पाता। बस लौटते हुए अपने समृद्ध अतीत की स्मृतियों की मिठास उसके मानस-पटल पर अमिट प्रभाव अंकित कर जाती है।
लेखक पूर्व एसोसिएट प्रोफेसर और साहित्यकार हैं।