डॉ. जगत राम एवं डॉ. राजेश कोछड़
पिछले लगभग 9 महीनों से कोविड-19 वैश्विक महामारी ने दुनिया में तबाही मचा रखी है। यूरोप के अनेक मुल्कों में इसकी दूसरी लहर आ चुकी है और अमेरिका में संक्रमण और मौतों के आंकड़े नीचे नहीं आ रहे। भारत में भी मामले लगातार बढ़ रहे हैं। हाल में कुछ राज्यों में ऑक्सीजन की उपलब्धता में कमी की खबरें आई हैं। विश्वभर में सबसे कम कोरोना मृत्यु दर वाले देशों में से एक भारत ने अब तक इस वायरस के खिलाफ लड़ाई में बहादुरी से सामना किया है। प्रति दस लाख लोगों के पीछे मृत्यु दर कम होना हमारे लिए कुछ सांत्वना वाली बात हो सकती है, परंतु पुष्ट मामलों की संख्या 67 लाख पार कर गई है।
सितंबर माह के पहले पखवाड़े में ही 13 लाख नये मरीज सामने आए हैं। बिट्स-पिलानी की हैदराबाद शाखा का अध्ययन बताता है कि कोविड पॉज़िटिव मामले जल्दी ही 70 लाख के आंकड़े को छू जाएंगे।
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महामारी के दौरान उपजी शब्दावली और सीखने का नया मौका
कोरोना वायरस की सटीक दवा के अभाव में विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने जो उपाय सुझाए हैं, उनमें कंटेनमेंट जोन बनाना और अन्य रोकथाम के उपाय हैं। लॉकडाउन की अवधि ने हमें स्वास्थ्य ढांचे में सुधार करने का समय प्रदान किया, जिसके तहत आईसीयू वार्ड और वेंटिलेटरों की संख्या बढ़ाई गई। पीपीई किट्स आयात करने वाली अवस्था से उठकर आज हम इन्हें निर्यात करने वाला देश बन गए हैं। इसी तरह कोविड-19 टेस्टों की संख्या आज बढ़कर 11 लाख रोजाना हो चुकी है। समयानुसार टेस्ट हो जाना इस बीमारी की रोकथाम में मुख्य हथियार है, क्योंकि पॉजिटिव आए व्यक्ति को अलग रखने की जरूरत होती है। आबादी के बीच स्थानीय सामुदायिक स्तर पर टेस्टिंग सुविधाएं बनाकर रैपिड एंटीजन टेस्ट किए जा सकते हैं, न केवल इसकी कीमत वहन योग्य है बल्कि इसकी रिपोर्ट आने में मात्र 30 मिनट लगते हैं। लक्षण वाले जिन संदिग्धों का टेस्ट पॉजिटिव आता है, उनका इलाज शीघ्रातिशीघ्र शुरू करना जरूरी हैै। हमारा मानना है कि संक्रमण को ‘टेस्टिंग-इलाज-कॉन्टेक्ट ट्रेंसिंग’ के त्रिशूल से काबू में किया जा सकता है।
हमें कोविड-19 के खिलाफ युद्ध को नये जोश से लड़ना होगा। राज्य मशीनरी और जनता को इस ध्येय के लिए मिलकर काम करना होगा। सामाजिक एवं धार्मिक संगठनों को सामने आने की जरूरत है। पिछले 6 महीनों से लगातार काम करते आ रहे स्वास्थ्य कर्मियों पर थकावट हावी होने लगी है, जिसे दूर करना जरूरी है। अब जबकि ज्यादातर प्रिंट मीडिया ने कोविड संबंधित खबरों को पेज के कोने में धकेल दिया है और टीवी के खबरिया चैनल भी नाकाफी तरजीह दे रहे हैं तो यह स्थिति खतरनाक है। जनता को सतत चेताने हेतु कई उपाय, मसलन सड़क पर लगे बोर्ड, घोषणाएं और व्यस्त सार्वजनिक जगहों पर यथेष्ट सावधानी बरतने की जागरूकता बनाकर कोविड-19 के बारे में बताया जा सकता है। हमें तनिक रुककर यह विचार करना होगा कि वैश्विक महामारी से लड़ने को हमें कौन से सर्वश्रेष्ठ उपाय अपनाने होंगे।
सही जानकारी ही मददगार
मेडिकल बिरादरी ने भी इस दौरान नया सीखा है कि नये वायरस का इलाज बेहतर ढंग से कैसे किया जा सकता है। चूंकि अभी इसके लिए कोई प्रभावी एंटी-वायरल दवा नहीं बनी है, सो इलाज मुख्यतः अन्य तरीकों से है। हमने पाया कि इलाज में हाइड्रोक्लोरोक्वीन कारगर नहीं रही, प्लाज़मा थेरेपी की भूमिका भी अभी तक पूरी तरह सिद्ध नहीं हो पाई है, बीमारी के विशिष्ट स्तरों पर खून में थक्के बनने से रोकने वाली दवाएं या फिर स्टीरोयॉड मददगार पाए गए हैं। आईसीएमआर ने इलाज की प्रस्तावित पद्धति-संहिता में बदलाव किया है। दिशा-निर्देशों पर चला जाए तो ज्यादा से ज्यादा मरीजों का प्रभावी इलाज किया जा सकता है।
वैक्सीन : अभी और लगेगा वक्त
पिछले कुछ समय से कोविड-19 की प्रतिरोधक दवा बनने के कगार पर है। 200 से ज्यादा कंपनियाें में दो भारत से हैं। खबरों के मुताबिक मौजूदा साल के अंत तक एक या दो वैक्सीनों को उपयोग के लिए हरी झंडी दे दी जाएगी, परंतु यह अगले साल की पहली तिमाही तक ही संभव हो पाएगा जब ये बड़े पैमाने पर मिल पाएंगी। यह स्थिति कोविड-19 से लड़ाई में वापस पहले वाले तीन उपायों पर ले आती है। यानी मास्क, सामाजिक दूरी और हाथों की स्वच्छता। इसके अलावा पॉजिटिव पाए गए मरीजों को अलग रखना बहुत जरूरी है। पॉजिटिव केसों में आए बड़े उछाल के मद्देनजर यही समय है जब उपरोक्त संहिता के पालन पर अत्यधिक जोर दिया जाए। ज्यादातर लोगों को लगता है कि जब वे अपने मित्रों-रिश्तेदारों-सहयोगियों के साथ होते हैं तो उन्हें मास्क पहनने की कोई जरूरत नहीं है। अमेरिकी अनुसंधानकर्ताओं ने अपने अध्ययन में पाया है कि मास्क पहनने से वायरस के फैलाव की परिधि सीमित हो जाती है।
अस्पतालों को संक्रमण मुक्त होना जरूरी
जिस एक कारक को नजरअंदाज किया जा रहा है, वह है स्वास्थ्य देखभाल सुविधाएं। मई माह में मुबंई में कई अस्पतालों को इसलिए बंद करना पड़ा था क्योंकि वे खुद कोविड-19 फैलाने का अड्डा बन गए थे। क्योंकि चंडीगढ़-मोहाली-पंचकूला के अस्पतालों में पड़ोसी राज्यों से काफी संख्या में लोग इलाज करवाने आते हैं, इसलिए सभी का पहले कोविड-19 टेस्ट किया जाना जरूरी है। स्वास्थ्य देखभाल सुविधाओं में काम करने वालों के जरिए भी अस्पतालों में कोरोना वायरस का फैलाव होने की घटनाएं सामने आई हैं। कई अस्पतालों में, जिनमें सरकारी अस्पताल भी शामिल हैं, वहां केवल उन्हीं कर्मियों को काम की इजाजत है, जिनकी कोरोना टेस्ट रिपोर्ट नेगेटिव आई हो।
मास्क और दूरी बेहद जरूरी
मास्क पहनने वाले को वायरस के अटैक से सुरक्षा मिलती है। तीन परतों वाला मास्क सबसे उत्तम है। घर में बना मास्क भी प्रभावी होता है, बशर्ते उसे रोज धोया जाए। कुछ मास्क जैसे कि एन-95 का इस्तेमाल बहुत ज्यादा जोखिम भरी स्थितियों में काम करने वालों, जैसे कि स्वास्थ्य कर्मियों के लिए मुफीद है। लेकिन मुंह पर रुमाल बांधना उतना प्रभावशाली नहीं होता, उल्टे ये नुकसानदायक पाए गए हैं। सामाजिक दूरी बनाए रखना जरूरी है। ज्यादातर शादी-ब्याह के समारोहों में शिरकत करने वाले पॉजिटिव पाए गए हैं। इसी तरह दफ्तरों के बंद कमरों में मीटिंग के बाद लोग पॉजिटिव हुए। कुछ महीने पहले मध्य प्रदेश के स्वास्थ्य विभाग में कई अधिकारी केवल एक संक्रमित व्यक्ति के संपर्क में आने के बाद पॉजिटिव हो गए थे। जब लॉकडाउन हटाया गया तो पहले-पहल ज्यादातर लोग आपस में दो मीटर की दूरी कायम रखने के नियम का पालन करने लगे थे, परंतु अब ऐसा नहीं कर रहे। इस तथ्य को हम नकार नहीं सकते कि कोविड-19 संक्रमित व्यक्ति के आसपास रहने से फैलता है। हाथों को धोते रहना रोकथाम का अन्य जरूरी उपाय है।
(डॉ. जगत राम पीजीआई चंडीगढ़ के निदेशक और डॉ. राकेश कोछड़ उप-डीन (अनुसंधान) हैं।)