बैजू बाबरा में संगीत की अपार सफलता को देखते हुए जब फिल्मी दुनिया के किसी सयाने ने वी. शांताराम को सलाह दे डाली कि ‘झनक झनक पायल बाजे’ का संगीत नौशाद से तैयार करवाया जाये तो वी. शांताराम बसंत देसाई पर ही अड़े रहे और नतीजा सामने है। जहां पर बसंत देसाई हों, वहां पर क्लासिजिम लाजिमी है। न केवल बसंत देसाई ने फिल्म का टाइटल गीत उस्ताद अमीर खान से गवाया, बल्कि फिल्म के बाकी हिट गीत उन्होंने लता मंगेशकर तथा मन्ना डे से गवाये हैं। कथक कवित्त को नृत्य के साथ जोड़कर गीत के साथ समन्वय बिठाना बसंत देसाई को खूब आता है। क्योंकि जब फिल्म बन रही थी तो जैसे कि होता आया है, नये और पुराने नृत्य के बीच सुपरमेसी की एक तरह से जंग छिड़ी थी। ऐसे में नृत्य सम्राट गोपी कृष्ण ने फिल्म कोरियोग्राफी करके खामख्वाह की चर्चाओं को विराम दे दिया। गोपी कृष्ण ने तो इस फिल्म में नृत्य भी किया है। याद कीजिए वह गीत ‘नैन सो नैन नाहीं मिलाओ’ हम आज भी इसीलिए गुनगुनाते हैं क्योंकि उसमें शास्त्रीयता व आधुनिकता का समावेश है। जब गीत के साथ नृत्य में भी नये पुराने का समावेश हो तो वी. शांताराम की आलोचकों द्वारा पीठ थपथपाना लाजिमी बनता है। वैसे भी यह फिल्म भारत के समस्त शास्त्रीय नृत्य के लिए एक तरह से आदर-अजंली है। यमन राग को कथक में ढालकर पेश करना काफी टेढ़ी खीर है। शिव का तांडव देखते ही बनता है। समूची फिल्म में भरतनाट्यम मणिपुरी और कथक का समन्वय कोरियोग्राफर के विजन की पराकाष्ठा कही जा सकती है। राधा कृष्ण का रोमांस कथक से शुरू होकर भील डांस में परिवर्तित होता है। यह पल्लवित और पुष्पित होता है मैसूर के प्रसिद्ध वृंदावन गार्डन में भरतनाट्यम के रूप में। लेकिन यह डांस मुख्यधारा गुरु-शिष्य परंपरा से दूर नहीं होता जो कि स्टोरी का केंद्र बिंदु है। वैसे भी वी. शांताराम की फिल्में कोई न कोई संदेश जरूर देती हैं। उन्होंने यह फिल्म प्रस्तुत करके अपने कलाकार का फिर से लोहा मनवा दिया कि वे कितने बड़े फिल्म-निर्माता हैं। गोपी कृष्ण इस फिल्म की आत्मा हैं। कहानी को समृद्ध उनके नृत्य ही बनाते हैं। चौबे महाराज और गोपी कृष्ण का नृत्य दर्शकों को दूसरी दुनिया में ले जाता है। बताया जाता है कि फिल्म शुरू करने से पहले वी. शांतराम को संध्या को डांस में निपुण करने के लिए पूरे दो साल की ट्रेनिंग देनी पड़ी। संध्या ने अथक मेहनत की। लेकिन वह वी. शांताराम की अपेक्षाओं में उतनी खरी नहीं उतरीं। कुछ आलोचकों का यह भी मानना था कि इस रोल में वैजयंती माला ठीक बैठतीं। जितने मुंह, उतनी बातें, मगर सच तो यह है कि संध्या वी. शांताराम की तीसरी पत्नी थीं और वे उसे बहुत प्यार करते थे। इसीलिए इस रोल के लिए वह संध्या के सिवाय किसी अन्य के बारे में सोच भी नहीं सकते थे। इस फिल्म का अन्य महत्वपूर्ण स्कोर है इसकी गीत रचना। हसरत जयपुरी ने लिखे हैं इसके अमर गीत और उन्हें संगीत दिया था बसंत देसाई ने जिन्होंने अपना करिअर प्रभात स्टूडियो से शुरू किया था, जिसके मालिक वी. शांताराम थे। इस फिल्म पर कई आलोचकों ने टेढ़ी कलम चलायी, मगर दर्शकों ने इसे सुपरहिट बनाया। मुंबई के कई थियेटरों में यह फिल्म दो-दो साल भी चली। इस फिल्म ने कई पुरस्कार भी जीते जिनमें सर्वोत्तम फीचर फिल्म का 1955 में मिला राष्ट्रपति स्वर्णपदक भी हैं। इस फिल्म में पहली बार संतूर का प्रयोग हुआ है और संतूर वादक थे पद्मविभूषण शिव कुमार शर्मा। इसी फिल्म से भारतीय सिनेमा में संतूर-वादन का चलन शुरू हुआ। इस फिल्म में सभी गाने लता मंगेशकर ने गाये हैं (फीमेल)। आशा भोसले ने गीत की कुछ पंक्तियां गायी हैं जो साउंड ट्रैक में तो हैं, लेकिन रिकार्ड में नहीं हैं। शायद यह वही दौर है जब लता मंगेशकर का नाम चलता था। इस फिल्म में मीराबाई का लिखा गीत ‘जो तुम तोड़ो पिया’ बाद में सिलसिला फिल्म में भी गाया गया।
कहानी यूं है : नृत्य के ज्ञाता गुरु मंगल महाराज चाहते हैं उनका बेटा गिरिधर जो कि नृत्य में पारंगत है, नाटेश्वर उत्सव डांस कंपीटिशन में भाग ले। यह प्रतियोगिता दस साल में एक बार आयोजित होती है। गुरु मंगल महाराज की यह भी इच्छा है कि उनका बेटा ही इस प्रतियोगिता को जीते। उसके ही सिर पर भारत नटराज का सेहरा बंधे। चूंकि उनका बेटा गिरिधर एकल डांस तो कर सकता है, लेकिन दिक्कत यह है कि उसे शिव-पार्वती तांडव डांस करने में एक महिला पार्टनर की जरूरत होगी। इससे पूर्व हवेली में जिस तरह का डांस नीला ने किया था, उससे गुरु महाराज खासे दुखी थे, नृत्य का गिरता स्टैंडर्ड देखकर। नीला भी असली बात जान गयी थी कि उसे डांस-वांस कुछ नहीं आता। इसीलिए नीला ने गुरु महाराज से विनती की थी कि उसे अपना शिष्य बना ले। गुरु महाराज को भी बात ठीक लगी क्योंकि वह प्रतियोगिता जीतना चाहते थे। साथ-साथ नृत्य करते-करते नीला को गिरिधर से प्यार हो गया। जब गुरु महाराज ने उन्हें आकण्ठ प्रेम में डूबे हुए पाया तो उन्हें अपनी उम्मीदों पर कुठाराघात लगा। इसीलिए उन्होंने बेटे का परित्याग कर दिया। उधर नीला ने पाया कि उसी के कारण उसे (गिरिधर को) प्रतियोगिता से हाथ धोना पड़ रहा है, उसे दोबारा कला क्षेत्र में लौटाने के लिए नीला झूठमूठ ही मणिलाल को प्रेम करने का नाटक करती है और मीरा बाई को आदर्श बना कर खुद को एक साधु की शरण में ले आती है। इसी साधु ने नीला की जान बचाई थी जब वह डूबने चली थी। वह मीराबाई के पदचिन्हों पर चल ही रही थी कि एक दिन उसका सामना गिरिधर से हो जाता है। वह उसे न पहचानने का नाटक करती है और बीमार पड़ जाती है। उसे पिता घर ले जाते हैं जहां वह अपनी सहेली बिंदिया के साथ मंदिर जाती है जहां नृत्य प्रतियोगिता का आयोजन होता है। उधर साजिश करके मणिलाल गिरिधर के डांस पार्टनर को बहका देता है और डांस पार्टनर प्रतियोगिता से नदारद हो जाता है। गिरिधर को अकेला पाकर नीला मंच पर आ जाती है। बाद में गुरु महाराज भी उसे आशीर्वाद देते हैं। दोनों शादी कर लेते हैं। इस फिल्म ने उसी वक्त (1955) में दो करोड़ 45 लाख रुपये अर्जित किये थे। पाठक आज के हिसाब से उस कमाई का अनुमान लगा सकते हैं। इस फिल्म को तृतीय राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार (1955), ऑल इंडिया सर्टिफिकेट ऑफ मेरिट (बेस्ट फिल्म), बेस्ट हिंदी फीचर फिल्म, फिल्म फेयर अवॉर्ड फॉर बेस्ट डायरेक्टर, फिल्म फेयर अवॉर्ड फॉर आर्ट डायरेक्शन एवं फिल्म फेयर अवॉर्ड फॉर बेस्ट साउंड डिजाइन से भी नवाजा गया।
निर्माण टीम
प्रोड्यूसर : राजकमल कलामंदिर
निर्देशक : वी. शांताराम
मूल व पटकथा : देवेन शरार
गीत : हसरत जयपुरी
संगीत : बसंत देसाई
सिनेमैटोग्राफी : जी. बालाकृष्ण
सितारे : संध्या, वी. शांताराम, गोपी कृष्ण, केशवराव दाते, मदनपुरी, नाना पल्सिकर, चौबे महाराज आदि
गीत
झनक झनक : उस्ताद अमीर खान
झनक झनक पायल बाजे : लता मंगेशकर, हेमंत कुमार
जो तुम तोड़ो पिया : लता
सैयां जाओ : लता मंगेशकर
सुनो सुनोजी : लता मंगेशकर
कैसी यह मुहब्बत : लता
मुरली मनोहर : मन्ना डे, लता
मेरे ऐ दिल बता : लता
नैन सो नैन : हेमंत कुमार, लता
राग मल्लिका : लता, मन्ना डे