पुष्पा गिरिमाजी
छह माह पहले मैंने 7800 रुपये की एक सिल्क साड़ी खरीदी। हालांकि, कोविड-19 के कारण, बाहर कहीं जाना नहीं हुआ और इसके चलते कभी यह साड़ी पहनी भी नहीं। पिछले पखवाड़े जब मैंने पैकेट खोला तो पाया कि साड़ी के बॉर्डर पर एक बड़ा छेद है-लग रहा था कि यह साड़ी बनाते वक्त का डिफेक्ट है। संयोग से मेरे पास रसीद सुरक्षित थी, लेकिन दुकानदार ने यह कहकर साड़ी बदलने से इनकार कर दिया कि इसे खरीदारी के 15 दिनों के भीतर लाना चाहिए था। उसने मुझे रसीद के पीछे लिखे नियम एवं शर्तों की सूची भी दिखाई जिसमें लिखा था ‘कोई वापसी नहीं, सिर्फ एक्सचेंज हो सकता है वह भी 15 दिनों के भीतर।’ उसके अनुसार, मुझे साड़ी खरीदने से पहले जांच कर लेनी चाहिए थी और वह इसकी गुणवत्ता के लिए जिम्मेदार नहीं है। यहां मेरे अधिकार क्या हैं?
असल में हम ‘चेतावनी एम्प्टर’ या ‘खरीदार को सावधान रहने दें’ या ‘चेतावनी विक्रेता’ या ‘विक्रेता को सावधान रहने दें’ की पुरानी अवधारणा से दूर चले गए हैं-जिसका अर्थ है कि विक्रेता अपने द्वारा बेचे जाने वाले सामान के लिए जिम्मेदार है। इसलिए सबसे पहले तो आपसे खरीदने से पहले चेक करने की उम्मीद नहीं की जा सकती। दूसरी ओर, दुकानदार की जिम्मेदारी है कि वह सुनिश्चित करे कि वह दोष मुक्त माल बेचता है। यानी डिफेक्ट फ्री सामग्री बेचना उसकी जिम्मेदारी है। अगर कोई डिफेक्ट है तो इसके लिए वह जिम्मेदार है। इसके साथ ही रसीद पर छपे वे एकतरफा नियम और शर्तें दोष-मुक्त उत्पाद के आपके अधिकार या धनवापसी या रिप्लेसमेंट के आपके अधिकार या उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम के तहत प्रदान किए गए आपके निवारण के अधिकार को नहीं छीन सकते। नए उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम में ऐसे मामलों से निपटने के लिए कुछ प्रावधान जोड़े गए हैं। नए कानून के तहत डिफेक्टिव सामान को वापस लेने और उत्पाद की लागत वापस करने से इनकार करने को एक अनुचित व्यापार प्रैक्टिस माना गया है। वर्ष 2019 का उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम उपभोक्ताओं को न केवल दोषपूर्ण वस्तुओं और अनुचित व्यापार प्रथाओं के खिलाफ, बल्कि इस तरह के अनुचित अनुबंधों के निवारण का अधिकार भी प्रदान करता है। इस प्रकार, ‘उपभोक्ता पर कोई अनुचित शुल्क, दायित्व या शर्त लगाना जो ऐसे उपभोक्ता को नुकसान पहुंचाता हो’ एक अनुचित अनुबंध है।
सुप्रीम कोर्ट के साथ-साथ शीर्ष उपभोक्ता अदालत (राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग) ने सेवा प्रदाताओं के साथ-साथ निर्माताओं और खुदरा विक्रेताओं द्वारा तैयार की गई अन्यायपूर्ण और असमान अनुबंध शर्तों को लागू नहीं करने योग्य (अप्रवर्तनीय) करार दिया है।
नया उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम ऐसे एकतरफा नियमों और शर्तों के खिलाफ उपभोक्ताओं के अधिकारों को और मजबूती प्रदान करता है। इसलिए अपने दुकानदार को यह सूचित करते हुए पत्र लिखें कि आप उपभोक्ता अदालत जा रहे हैं-यदि वह समझदार होगा तो या तो सामान बदलेगा या उसके बदले पैसा लौटाएगा क्योंकि यदि आपने उपभोक्ता अदालत में शिकायत दर्ज करा दी तो उसे वकील और मुआवजे के तौर पर कहीं ज्यादा आपको भुगतान करना पड़ेगा।
क्या आप ऐसे किसी मामले का उद्धरण दे सकती हैं?
इस मामले में पायनियर अर्बन लैंड एंड इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड बनाम गोविंदन राघवन (2018 का सीए नंबर 12238) एक उदाहरण है। बिल्डरों द्वारा तैयार किए गए एकतरफा अनुबंधों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त पड़ा और कोर्ट ने कहा कि अनुचित और बेवजह शर्तों ने एक अनुचित व्यापार का मामला बनाया जो लागू नहीं करने योग्य (अप्रवर्तनीय) थे।
सुप्रीम कोर्ट ने सेंट्रल इनलैंड वाटर ट्रांसपोर्ट कॉरपोरेशन लिमिटेड बनाम ब्रोजो नाथ गांगुली का भी हवाला दिया, जहां शीर्ष अदालत ने 6 अप्रैल, 1986 के अपने फैसले में अनुचित शर्तों को खत्म करने के लिए नियम निर्धारित किए थे। साथ ही कहा कि अदालतें उन अनुचित शर्तों को लागू नहीं करेंगी जो पार्टियों के बीच समान शक्ति वाले न हों। इसी तरह, ऐसे कई विवादों में उपभोक्ता अदालतों ने माना है कि नकद प्राप्तियों (रसीद) पर छपी स्पष्ट रूप से अनुचित शर्तें लागू करने योग्य नहीं थीं। शीर्ष उपभोक्ता अदालत द्वारा इस मुद्दे पर तय किया गया सबसे पुराना मामला शायद टिप टॉप ड्राईक्लीनर्स बनाम सुनील कुमार (2003 का आरपी नंबर 1328) है, जहां यह माना गया था कि ड्राईक्लीनर की रसीद के पीछे छपीं अनुचित शर्तें उपभोक्ता पर बाध्यकारी नहीं।