
हकीकत में स्वास्थ्य विषयक प्रमाणिक सूचनाएं एक उपचार की तरह ही होती है। इसके विपरीत यदि सूचना भ्रामक, गलत है तो वह घातक नकारात्मक प्रभाव ही उत्पन्न करती है। निस्संदेह, स्वास्थ्य विषयक खबरों के संकलन में काल्पनिकता से परे और तथ्य आधारित पत्रकारिता के लिये क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। इस दिशा में सार्थक प्रयास करते हुए यूनिसेफ ने हाल ही में स्वास्थ्य विषयक रिपोर्टिंग में जरूरी जांच-परख आधारित कार्यशाला का आयोजन किया जिसमें पूरे देश से करीब 150 से अधिक पेशेवर मीडियाकर्मियों ने तथ्य आधारित स्वास्थ्य पत्रकारिता के विभिन्न पहलुओं पर विमर्श किया। मीडियाकर्मी व मीडिया प्रशिक्षु बाल स्वास्थ्य पर प्रभावी रिपोर्टिंग के लिए जरूरी जांच-परख-मूल्यांकन कौशल से जुड़े तथ्यों से रूबरू हुए।
निस्संदेह किसी भी स्वास्थ्य विषयक रिपोर्टिंग में गलत सूचना किसी भी वायरस से अधिक संक्रामक होती है। दरअसल, क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स यानी सीएएस मीडिया कर्मियों की क्षमता निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। यूनिसेफ की साक्ष्य आधारित स्वास्थ्य पत्रकारिता पर आयोजित कार्यशाला में यह तथ्य शिद्दत के साथ सामने आया। इस दौरान प्रिंट व इलेक्ट्रानिक मीडिया, निजी रेडियो चैनलों तथा पत्रकारिता के मौलाना आजाद राष्ट्रीय उर्दू विश्वविद्यालय, जामिया मिलिया इस्लामिया और हिमाचल प्रदेश विश्वविद्यालय के तमाम छात्रों ने यूनिसेफ के क्रिटिकल अप्रेजल स्किलस यानी सीएसए के इस पाठ्यक्रम के माध्यम से स्वास्थ्य पत्रकारिता में साक्ष्य आधारित रिपोर्टिंग और तथ्य जांच के महत्व को सीखा। निस्संदेह, यह खबरों को प्रामाणिक व विश्वसनीय बनाने में सहायक ही होगा।
कार्यशाला में ऑनलाइन शिरकत करते हुए यूनिसेफ इंडिया की संचार, एडवोकेसी एवं भागीदारी प्रमुख ज़ाफरीन चौधरी ने कहा, ‘गलत सूचना शायद वायरस से अधिक संक्रामक है। यह तेजी से फैलता है और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुरक्षा के लिए एक आसन्न खतरा बन गया है। जाफरीन चौधरी का कहना था कि सीएएस पर किसी पर किसी गलत सूचना का मुकाबला करने के लिये एक समग्र 360 डिग्री विज्ञान आधारित संचार दृष्टिकोण बनाने और मीडियाकर्मियों की क्षमता निर्माण में बड़ी भूमिका निभाता है। एक प्रभावी दो-तरफा संचार सुनिश्चित करने में मीडिया की एक अहम भूमिका है, ताकि टीकाकरण और समग्र स्वास्थ्य प्रबंधन की जमीनी हकीकत नीति निर्माताओं तक पहुंचायी जा सके।
टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह यानी एनटीएजीआई के कोविड-19 वर्किंग ग्रुप के अध्यक्ष डॉ. एन. के. अरोड़ा कोविड-19 टीकाकरण से जुड़ी भ्रांतियों पर प्रकाश डालते हैं। उनका मानना है कि मीडिया को सूचना रफ्तार को कम नहीं पड़ने देना चाहिए। इसके लिये नए तरीके खोजे जाने चाहिए जिससे जरूरतमंद लोगों को समय पर टीके की खुराक लेने के लिए प्रोत्साहित किया जा सके।
गो न्यूज के संस्थापक संपादक पंकज पचौरी, जो क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स समिति के प्रमुख संस्थापक सदस्य रहे हैं, कहते हैं कि महामारी के दौरान काल्पनिकता से परे और तथ्य की ओर ले जाने में सीएएस अत्यधिक कारगर साबित हुआ है। उनका मानना है कि पत्रकारिता और जनसंचार के पाठ्यक्रम में क्रिटिकल अप्रेजल स्किल्स को अनिवार्य बनाया जाना चाहिए। इसके लिए विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के समक्ष इस पहल को पेश किया जाना चाहिए। वहीं वरिष्ठ पत्रकार मधुरेंद्र सिन्हा का कहना है कि संपादकों, पत्रकार संगठनों और मीडिया मालिकों को भी सीएएस पाठ्यक्रम को व्यवहार में लाने के लिये अतिरिक्त प्रयास करने चाहिए। वरिष्ठ पत्रकार संजय अभियान का मानना रहा है कि हमने अपने संस्थानों में सीएएस को जल्दी लागू करने की पहल की। महामारी अपने साथ गलत सूचना और दुष्प्रचार की सुनामी लेकर आई, जिसे हम एक इन्फोडेमिक कह सकते हैं। सीएएस के माध्यम से हम इस इन्फोडेमिक में से कुछ को प्रबंधित करने में सक्षम हुए।
यूनिसेफ के इस आयोजन में टीकाकरण, स्वास्थ्य और पोषण विशेषज्ञ, प्रमुख समाचार पत्रों और निजी एफएम के बड़े अधिकारियों और आरजे ने नियमित टीकाकरण, कोविड-19 टीकाकरण, एंटीबायोटिक्स, बच्चों को प्रभावित करने वाले मुद्दों पर चर्चा को आगे बढ़ाया। दरअसल, सबसे अधिक वंचित बच्चों तक पहुंचने के लिए यूनिसेफ दुनिया के कुछ सबसे कठिन स्थानों में काम करता है। तकरीबन 190 से अधिक देशों और क्षेत्रों में, हर बच्चे के लिए, हर जगह, एक बेहतर दुनिया बनाने के लिए संस्था काम करती है। यूनिसेफ इंडिया भारत में सभी लड़कियों और लड़कों के लिए स्वास्थ्य, पोषण, पानी और स्वच्छता, शिक्षा और बाल संरक्षण कार्यक्रमों को बनाए रखने और विस्तार करने के लिए प्रतिबद्ध रहा है। हर बच्चे को जीवित रहने और फलने-फूलने में मदद करने के लिए संस्था विभिन्न संगठनों व व्यक्तियों से सहयोग भी लेती रही है।