शारा
‘जागृति’ जागृति ही थी खासकर पचासवें दशक के जवां होते उन बच्चों के लिए जिन्हें अभी तक आजादी के मायने सही मायनों में पता नहीं थे क्योंकि उनके अभिभावकों को अंग्रेजी की गुलामी इस कदर रास आयी थी कि उन्हें नहीं मालूम कि आजादी क्या होती है और आजाद बंदे के सपनों के कितने रंग होते हैं? इसीलिए उन्होंने जो देखा अपने बच्चों को भी वही सिखा रहे थे। ऐसे में 1954 में जागृति फिल्म रिलीज हुई, जिसका निर्देशन सत्येन बोस ने किया था। इस फिल्म ने जागृति की ऐसी लहर फैलायी कि हर भारतीय को उसके सवालों के जवाब मिल गये। उथल-पुथल का यह ऐसा दौर था जब देश का बचपन से लेकर जवां खून लगभग दिशाहीन-सा था। उस समय इस तरह की फिल्म का रिलीज होना बहुत लाजिमी था जो देश के जनमानस को उसके देश का बाशिंदा होने का गरूर का अहसास करा सके, आने वाली पीढ़ी को राष्ट्रीयता का पाठ पढ़ा सके तथा अपनी धरोहरों के बारे में जागृत करा सके। निर्देशक ने तो बेशक बांगला फिल्म ‘परिवर्तन’ को हिंदी में ही अनूदित किया वह भी ब्लैक एंड ह्वाइट फिल्म में, लेकिन कहानी की समकालीनता, प्रदीप के गानों को हेमंत दा द्वारा दिये गये संगीत ने जन-जन में इसे लोकप्रिय बना दिया कि इसे सिनेमा हॉलों के अतिरिक्त गांव के चौपालों पर स्क्रीन लगाकर दिखाया जाने लगा। ‘आओ बच्चो तुम्हें दिखायें झांकी हिन्दोस्तान की’, ‘साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल’, ‘हम लाये हैं तूफां से कश्ती निकाल के’ आदि गाने इसी जागृति फिल्म के हैं, जिनके बगैर आज भी आजादी का हर जश्न अधूरा है। इसके अलावा यह फिल्म एक और कारण से मशहूर है। इसी फिल्म को लेकर भारत-पाक के बीच इतनी ठन गयी कि पाक को सरकारी तौर पर फिल्मघरों से उस ‘बेदरी’ फिल्म की रीलें सील करनी पड़ीं जो रत्न नामक निर्देशक ने बनायी थी, बनायी क्या नकल की थी? बस इस बात की भारत सरकार ने जोर-शोर से आपत्ति जतायी तो वहां की सरकार को इस पर बैन लगाना पड़ा। हुआ यूं कि रत्न कुमार जिन्होंने फिल्म में शक्ति का किरदार निभाया था और जिनका असली नाम सैयद नाजिर अली था, रत्न कुमार उनका फिल्मी नाम था। वह जागृति फिल्म के बाद 1956 में पाकिस्तान चले गये जहां उन्होंने जागृति को नकल करके ‘बेदरी’ नामक फिल्म बनायी। हूबहू संगीत को चुराककर गीतों में नाममात्र का फेरबदल किया जैसे ‘आओ बच्चो सैर करायें तुमको पाकिस्तान की।’ इसी तरह साबरमती के संत की जगह जिन्ना का कायदे-आजम के रूप में स्तुतिगान किया था, जिसके चलते इसके गीतों को सरकारी समारोहों में गाया जाने लगा, लेकिन थोड़े ही समय में पाकिस्तान के लोगों को समझ आ गयी कि यह संगीत सीमापार से चुराया गया संगीत है। पाक के लोगों ने चुरायी गई राष्ट्रभक्ति को अपनाने से इनकार कर दिया और फलस्वरूप सरकार को इस पर बैन लगाना पड़ा। रत्न कुमार अभी इस सदमे से उबरे नहीं थे कि कार दुर्घटना में उनकी बच्ची की मृत्यु हो गयी। तब गमजदा रत्न कुमार ने फिल्मी लाइन को अलविदा कहा और कालीनों का धंधा शुरू कर दिया। फिर वे विदेश चले गये। उसके बाद फिल्मी दुनिया में उनके हस्तक्षेप की कोई खाब-ओ-खबर नहीं सुनाई दी। रत्न कुमार ने अपने जमाने में काफी हिंदी फिल्मों में काम किया। दो बीघा जमीन का बच्चा, दोस्ती में लंगड़ा बना बच्चे का किरदार, बूट पॉलिश का बच्चा आदि कितने ही फिल्मों के नाम हैं जो बाल कलाकार के रूप में उनके मंजे हुए अभिनय की झलक दिखाती है। जागृति का उदंड और ढीठ शक्ति नहीं होता तो कहानी का कलेवर इतना पॉवरफुल नहीं होता। हेमंत दा को आनंद मठ फिल्म से ब्रेक मिला था। मगर इसी फिल्म से उनके नाम की तूती बोलने लगी। देविका रानी की कंपनी से ताजे-ताजे अलग हुए फिल्मीस्तान ने जिन नये चेहरों को स्थापित किया उनमें हेमंत दा का नाम भी है। जागृति प्रोड्यूस करके फिल्मीस्तान कंपनी ने साबित कर दिया कि किसी भी हिट को नामी चेहरों की नहीं, सशक्त निर्देशन और कहानी की दरकार है। फ्लैश बैक के पाठक जानते ही होंगे कि प्रदीप ने 72 फिल्मों में केवल राष्ट्रभक्ति के ही गाने लिखे हैं। राष्ट्रभक्ति के गानों के लिए उन्हें राष्ट्रकवि का खिताब दिया गया। उन्होंने जब फिल्म किस्मत (1943) के लिए राष्ट्रभक्ति के गीत लिखे, ब्रिटिश साम्राज्य की आंख की किरकिरी बन जाने के कारण उन्हें इस फिल्म के रिलीज होने तक भूमिगत रहना पड़ा था। पाठकों को पता ही होगा कि उनका असली नाम रामचंद्र नारायणजी द्विवेदी था। इस फिल्म को तीसरे फिल्मफेयर अवार्ड (1956) में सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला था। बेहतर अभिनय के लिए अभिभट्टाचार्य को बेस्ट सपोर्टिंग एक्टर का भी अवार्ड मिला था। इसे 1954 में नेशनल फिल्म अवॉर्ड ने मेरिट सर्टिफिकेट भी दिया था। जागृति को आज तक बच्चों पर बनी सर्वोत्तम फिल्म माना जाता है। इसी फिल्म को 2016 में 14 अगस्त को सरकारी तौर पर दिखाया था जब 70वां भारतीय स्वाधीनता दिवस समारोह मनाया जा रहा था। फिल्म अमीर घर के बिगड़ैल बच्चे अजय की कहानी है, जिसे बोर्डिंग स्कूल में डाल दिया जाता है, जहां उसकी मुलाकात अपंग बच्चे शक्ति से होती है जो अजय को बदल पाने में सहायक होता है। यह बोर्डिंग स्कूल शेखर (अभि भट्टाचार्य) शिक्षक चलाते हैं जो बच्चों में आदर्श, अच्छे संस्कार भरते हैं ताकि वे अच्छा नागरिक बन सकें। लेकिन अजय बोर्डिंग स्कूल में आते ही रोज नयी परेशानियां खड़ी करते हैं। ‘शक्ति’ के आगे आने के कारण मगर वे बच जाते हैं। एक रोज अजय बोर्डिंग स्कूल से बाहर जाते हैं और शक्ति उसे रोकने के लिए बाहर जाते हैं तो एक कार दुर्घटना में वह मारे जाते हैं। यहीं से ही शक्ति में बदलाव आता है और वह बोर्डिंग स्कूल की मिसाल बन जाते हैं।
निर्देशन : सत्येन बोस
प्रोड्यूसर : सशाधर मुखर्जी (फिल्मीस्तान)
मूलकथा लेखक : मनोरंजन घोष, पंडित उर्मिल
पटकथा लेखक : सत्येन बोस
गीत : कवि प्रदीप
संगीत : हेमंत कुमार
सिनेमैटोग्राफी : एनवी श्रीनिवास
सितारे : अभि भट्टाचार्य, रत्नकुमार, राजकुमार गुप्ता, परिणीति घोष, मुमताज बेगम
गीत
आओ बच्चो तुम्हें दिखाएं : कवि प्रदीप
चलो चलें मां : आशा भोसले
साबरमती के संत तूने : आशा भोसले
हम लाये हैं तूफां से कश्ती : मोहम्मद रफी