डॉ. मोनिका शर्मा
गुस्से को आमतौर पर सामाजिक जीवन में परेशानियां पैदा करने वाले मनोभाव के रूप में देखा जाता है। व्यक्तित्व की छवि बिगाड़ने वाला इमोशन माना जाता है। बर्ताव के पक्ष पर नकारात्मकता लिए सोच और ठहराव की कमी के समान समझा जाता है। यह सब सही भी है पर क्रोध के खामियाजे हमारी सोच से कहीं ज्यादा हैं। गुस्सा मन को ही नहीं, तन को भी बीमार कर देता है। गुस्से से शरीर के हर हिस्से पर असर पड़ता है। क्रोध कई बीमारियों को न्योता देता है। यहां तक कि पुरानी व्याधियों को भी फिर बढ़ा देता है। इस विषय में बहुत से विशेषज्ञों के विचार सोचने और समझने योग्य हैं। ताकि विचार, व्यवहार और स्वास्थ्य कुछ भी क्रोध के खामियाजों की जद में न आये।
हार्मोनल बदलाव
सबसे पहले तो हार्मोनल बदलाव कर शरीर की इम्युनिटी कम करता है। विशेषज्ञों के मुताबिक, गुस्से का अपना एक मैकेनिज़्म होता है। जो शरीर में कई तरह के बदलाव करता है। इसके चलते कई ऐसे हार्मोन्स का लेवल बढ़ जाता है जो शरीर के लिए फायदेमंद नहीं हैं। गुस्से की वजह से हमारे मन-मस्तिष्क और शरीर में हॉर्मोन्स का नकारात्मक असर होता है। विशेषकर कोर्टिसोल हार्मोन का रिसाव बढ़ जाता है जिससे इंसान तनावग्रस्त रहने लगता है। इसे स्ट्रेस हार्मोन भी कहते हैं। स्ट्रेस हार्मोन को बढ़ाने वाले बहुत से कारणों में ज्यादा गुस्सा आना सबसे अहम है। इतना ही नहीं, क्रोध के कारण अनिद्रा की समस्या भी बढ़ जाती है। चैन की नींद न ले पाने के कारण शरीर की सभी क्रियाएं प्रभावित होती हैं। पूरी दिनचर्या बिगड़ जाती है। जो कुल मिलाकर स्वास्थ्य सहेजने वाले दूसरे हार्मोन्स को भी असंतुलित करती है। विशेषज्ञ कहते हैं कि गुस्सा शरीर के न्यूरो हॉर्मोनल सिस्टम पर बहुत ज्यादा दबाव डालता है, जो आपातकालीन स्थिति में पहुंचा सकता है।
दिल के लिए खतरा
गुस्से का सबसे ज्यादा जोखिम इंसान का हृदय उठाता है। गुस्से के कारण धमनियां सिकुड़ती हैं। रक्तचाप बढ़ता है। क्रोध के समय हार्ट बीट के साथ ही सांस की गति भी बढ़ जाती है। गुस्से के चलते शरीर और दिमाग दोनों तनाव की चपेट में आ जाते हैं। यह स्थिति भी दिल के लिए खतरा है और क्रोध कम होने के बाद अपराधबोध का भाव भी दिल को दु:खी करता है। दोनों ही बातें इंसान को अवसाद की ओर भी ले जाती हैं। शोधकर्ताओं के मुताबिक, स्वस्थ लोग जो अक्सर गुस्से में रहते हैं या फिर किसी के प्रति द्वेष पालकर रखते हैं, उनमें हृदय रोग होने की संभावना शांत लोगों के मुक़ाबले 19 फीसदी अधिक होती है।
दिमाग के लिए उलझन
कई बार लोगों की यह स्वीकार्यता सुनने में आती है कि ‘मैं गुस्से था इसलिए गलत फैसला कर लिया|’ ‘क्रोध में आकर यह काम कर डाला |’ या ‘गुस्से में सही रास्ता सूझा ही नहीं|’ दरअसल अनियंत्रित क्रोध की स्थिति में कोई भी इंसान परिस्थितियों को सही ढंग से नहीं समझ पाता। न ही गुस्से में दिमाग सही फैसले कर पाता है। कई बार तो क्रोध के पलों में सोचने-समझने की क्षमता पूरी तरह खो जाती है। तब इंसान ऐसा कुछ भी कह जाता है जो नहीं कहना चाहता। ऐसा कुछ कर बैठता है, जो शांत दिमाग से सोचने पर अविश्वसनीय सा लगता है। बहुत अपराध भी ऐसी मनःस्थिति में ही होते हैं। इतना ही नहीं, गुस्से के कारण याद्दाश्त भी कमजोर होती है। दिमाग को किसी एक काम पर फोकस कर पाने में भी दिक्कत आने लगती है। हर बात में गुस्सा करने वाले तनाव और डिप्रेशन का शिकार भी बन जाते हैं। क्रोध के चलते जाने कितनी ही उलझनें मस्तिष्क को घेर लेती हैं।
पाचन से जुड़ी समस्याएं
आमतौर पर पाचन से जुड़ी परेशानियों को शारीरिक बीमारी ही माना जाता है। खान-पान की गड़बड़ी भर से जोड़कर देखा जाता है। जबकि इंसान के मन की भावनाओं का पेट से गहरा संबंध होता है। एक रिसर्च के मुताबिक, अधिक गुस्सा करने और नकारात्मक भावों को मन में जगह देने वाले लोगों का खाना दूसरों की तुलना में तीन से चार घंटे बाद पचता है। बहुत ज्यादा गुस्सा करने की आदत अपच से लेकर कब्ज तक, कई परेशानियों की वजह बनती है। भूख न लगने के पीछे भी कई बार क्रोध बड़ा कारण होता है। गुस्से के चलते अकेलेपन और आत्मकेंद्रित जीवनशैली को चुनने वाले लोगों में ओवर ईटिंग की भी आदत लग जाती है। ऐसी सभी बातें पाचन से जुड़ी परेशानियों को पैदा करती हैं। पहले से चल रही तकलीफ़ों को और बढ़ा देती हैं।