
निशा : गरीबी से लड़कर पहुंचीं ओलंपिक जीतने
सोनीपत : गांव कालूपुर निवासी निशा वारसी का ओलंपिक तक का सफर बेहद कठिनाई पूर्ण रहा। महज 25 गज के मकान में रहने वाले गरीब परिवार की बेटी ने बचपन में हॉकी को अपना तो लिया लेकिन तंगहाली की वजह से मन में अनेक बार खेल को छोड़ने के ख्याल भी आते रहे। लेकिन पेशे से दर्जी पिता सोहराब और फोम फैक्टरी में मजदूरी करने वाली मां महरून उसे हौसला बंधाते रहे। इस बीच 2015 में पिता को लकवा मार गया और परिवार के सामने मुश्किलें और बढ़ गई। दो वक्त का भोजन जुटाने के लिए भी घोर संघर्ष शुरू हो गया। लेकिन इन बेहद विषम हालात में भी निशा वारसी ने हिम्मत नहीं हारी और मेहनत मशक्कत करके अपना खर्च निकालना शुरू कर दिया। बकौल निशा, लोगों ने उसका रास्ता रोकने का खूब जत्न किया लेकिन उसका जुनून सभी पर भारी पड़ा और आखिरकार भारतीय हॉकी टीम में स्थान बनाने में कामयाब रही। निशा बताती हैं कि टोक्यो ओलंपिक में देश का प्रतिनिधित्व करते हुए सेमिफाइनल खेलना उसके लिए सपने से कम नहीं था। निशा यह बताना भी नहीं भूलती कि भारतीय महिला हॉकी टीम की पूर्व कप्तान प्रीतम सिवाच के सहयोग के बिना उनका यह सफर संभव नहीं था।
-हरेंद्र रापड़िया, सोनीपत
आकृति: कैंसर पीड़ितों की मदद कर पिता का सपना किया साकार
फरीदाबाद : कैंसर से हुई पिता की मौत के बाद एक बेटी ने संकल्प लिया कि अब वह कैंसर पीड़ितों की मदद करके अपने पिता के सपने को साकार करेगी। फरीदाबाद के रहने वाले सीए अरुण गुप्ता की ब्लड कैंसर से मौत हो गई थी। स्व. गुप्ता कैंसर पीड़ितों को बीमारी से बचने के लिए जागरूक करना चाहते थे।
अब उनके इस अधूरे काम को उनकी बेटी आकृति पूरा कर रही है। उनकी समाज सेवा की भावना को देखते हुए वर्ष 2020 में यूएन वाॅलंटियर पुरस्कार से सम्मानित किया था। आकृति ने बताया कि स्तन कैंसर पीड़ित महिलाओं में इलाज के दौरान आत्मविश्वास की कमी आ जाती है, इसके चलते वे स्वयं को पिछड़ा समझने लगती हैं। बकौल आकृति, कैंसर पीड़ितों को समाज की मुख्यधारा से जोड़ने के लिए उनमें आत्मविश्वास पैदा करना बहुत जरूरी है। इसके लिए वे दिल्ली और फरीदाबाद के बड़े अस्पतालों में स्तन कैसर पीड़ित महिलाओं की काउंसलिंग करने के अलावा उन्हें प्रोस्थेटिक ब्रा उपलब्ध कराती हैं। वर्ष 2020 में 1500 और 2021 में 2011 महिलाओं को इसे उपलब्ध कराया गया।
-राजेश शर्मा, फरीदाबाद
निर्मल तंवर: संघर्षों को हराकर जीता जिंदगी का मुकाबला
पानीपत : पानीपत के गांव आसनकलां में 5 सितंबर 1996 को जन्मी निर्मल तंवर ने अपने लक्ष्य को हासिल करने के लिये कड़े संघर्षों का मुकाबला किया। उसने 9 वर्ष की आयु में वॉलीबाल खेलने की शुरुआत की और भारतीय महिला वॉलीबाल टीम के कैप्टन बनने तक का सफर तय किया। निर्मल तंवर ने वॉलीबॉल में जिला, राज्य, राष्ट्रीय व अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतकर अपने परिवार और राज्य व देश का सम्मान बढ़ाया।
निर्मल तंवर बताती हैं कि जब वे सरकारी स्कूल में छठी कक्षा में पढ़ती थी तो गेम पीरियड के दौरान उसकी वॉलीबॉल में रुचि पैदा हुई, स्कूल के पीटीआई जगदीश ने इस दौरान वॉलीबॉल की टीम बनाई। पिता मदनलाल ने हर वक्त बेटी का हौसला बढ़ाया। निर्मल वर्ष 2019 में साउथ एशियन गेम्स से पहले भारतीय वॉलीबॉल टीम की कप्तान बनीं। यह चैंपियनशिप काठमांडू (नेपाल) में हुई थी। निर्मल तंवर अब रेलवे में सीनियर टिकट कलेक्टर के पद पर कार्यरत हैं। वे 2018 में हुए एशियन गेम में भारतीय महिला वॉलीबॉल टीम की उप कैप्टन थीं।
-बिजेंद्र सिंह, पानीपत
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