आदत में शामिल हो बिल देना : The Dainik Tribune

उपभोक्ता अिधकार

आदत में शामिल हो बिल देना

आदत में शामिल हो बिल देना

श्रीगोपाल नारसन

उपभोक्ताओं के साथ कोई अन्याय न कर पाये और वह खरीदे गए सामान या सेवा में कमी होने पर सहजता से न्याय प्राप्त कर सके,इसके लिए जरूरी है खरीदारी के समय अदा की गई कीमत की रसीद यानि बिल प्राप्त करना। उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019 के तहत उपभोक्ता आयोगों में शिकायत दर्ज कराने के लिए खरीदारी के प्रमाण के रूप में दुकानदार या फिर सेवा प्रदाता से अदा की गई कीमत का बिल लेना अनिवार्य है। मिसाल के तौर पर उपभोक्ताओं को खरीदारी पर बिल लेने की आदत पड़े, इसके लिए उत्तराखंड में एक अनूठी योजना ' बिल लाओ इनाम पाओ'चल रही है। इस योजना के जरियेे जहां टैक्स से मिलने वाला राजस्व बढ़ाया जा रहा है वहीं उपभोक्ताओं को खरीदारी पर जीएसटी बिल लेने को प्रोत्साहित किया जा रहा है।'

क्रेता-विक्रेता को प्रोत्साहन

बिल लाओ इनाम पाओ' योजना के तहत हर महीने 1500 लकी ड्रा निकाले जा रहे हैं। यह योजना व्यापारियों और उपभोक्ताओं के हितों को ध्यान में रख तैयार की गई है। इसके तहत व्यापारियों का 10 लाख रुपये तक का दुर्घटना बीमा भी कराया गया है। यदि कोई व्यापारी ग्राहकों को जीएसटी वाला बिल मांगने पर भी नहीं देता है तो इसकी शिकायत शासन स्तर पर की जा सकती है। इस योजना के प्रोत्साहन पुरस्कारों में मेगा ड्रा के तहत कार, इलैक्ट्रिक स्कूटर, बाइक, लैपटॉप, मोबाइल फोन व माइक्रोवेव दिये जाने हैं जिसके तहत जीतने वाले विजेता को उत्तराखंड सरकार की तरफ से 10 करोड़ रुपये की इनाम राशि प्रदान की जानी है।

पक्के बिल पर ना-नुकर

अक्सर हम देखते हैं कि खरीदारी करने पर दुकानदार किये गए भुगतान का बिल नहीं देता। जबकि सरकारी स्तर पर बने कानूनों के तहत भी उपभोक्ताओं को बिल देना जरूरी है। मिसाल के तौर पर, दवा खरीदने पर भी उपभोक्ताओं को पक्का बिल देना अनिवार्य है, लेकिन इसका पालन नहीं हो पा रहा है। अधिकांश मेडिकल की दुकानों के संचालक इसकी अनदेखी करते हैं। पक्का बिल नहीं देते हैं और जब उपभोक्ता मांगता है तो सादी पर्ची पर सिर्फ दवा का दाम लिखकर दे देते हैं। पक्का बिल मांगने पर परेशान करने की भी अक्सर शिकायत मिलती हैं। उपभोक्ता को उनका बिल प्राप्त करने का अधिकार नहीं मिलने से वे नकली या एक्सपायरी दवा दिए जाने पर भी प्रतिवाद नहीं कर पाते। पक्का बिल मांगे जाने पर नित नये बहाने दुकानदार द्वारा किए जाते हैं,जैसे बिल क्या करोगे,मैं तो हूं ना,या फिर कच्चा बिल थमा दिया जाता है।

दुकानदारों की जिम्मेदारी

उपभोक्ता संरक्षण कानून के तहत बिल देना दुकानदारों की जिम्मेदारी है। कोई दुकानदार बिल नहीं देता है तो वह कानून का उल्लंघन कर रहा है। बिल में जीएसटी व एमआरपी के साथ बैच नंबर अंकित रहना जरूरी है। थोक विक्रेता ज्यादातर बिल देता है लेकिन खुदरा विक्रेता बिल देने में लापरवाही बरतते हैं। दवा में तीन तरह का जीएसटी होता है। जीवन रक्षक दवाओं पर 5 से 12 प्रतिशत व कम उपयोग होने वाली महंगी दवाओं पर 18 प्रतिशत जीएसटी लगता है। वहीं, खुदरा उत्पाद अधिनियम के तहत 28 प्रतिशत टैक्स लगता है। बिल के साथ बैच नंबर जरूरी है, क्योंकि उससे ही पता चलेगा कि दवा असली है या नकली है। दवा लेने के बाद अगर कोई परेशानी होती है तो इसकी शिकायत दर्ज कराई सकती है। इसी तरह प्रतिदिन उपयोग में आने वाली खाद्य वस्तुओं, सब्जियों, दूध, दही, छाछ के बिल भी उपभोक्ताओं को मांगने पर भी नहीं दिए जाते,जो उपभोक्ताओं के साथ अन्याय है।

आनाकानी की दशा में...

जब दुकानदार वस्तु या सेवा की पूरी कीमत उपभोक्ता से वसूल रहा है तो उपभोक्ता को बिल प्राप्त करने का भी क़ानूनी अधिकार है। यदि कोई दुकानदार या सेवा प्रदाता उपभोक्ता को बिल देने से मना करे तो खाद्य आपूर्ति विभाग के साथ-साथ प्रशासनिक अधिकारियों से भी शिकायत की जा सकती है। वहीं जिन वस्तुओं की खरीदारी पर निर्माता कंपनी द्वारा वारंटी या गारंटी दी हुई है, उन वस्तुओं की खरीद पर दुकानदार से वारंटी या फिर गारंटी जो भी दी गई हो,का प्रमाण लेना जरूरी है,जिसमें खरीदने की तिथि व मूल्य अंकित हो। ऐसा करने पर ही हम एक जागरूक उपभोक्ता बन सकते हैं।

-लेखक राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठअधिवक्ता हैं।

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