डॉ. मोनिका शर्मा
ओहियो स्टेट यूनिवर्सिटी की रिसर्च के मुताबिक फुर्सत में बेकार बैठने की बात का आपके दिलो-दिमाग में आना, फुर्सत में होने की ख़ुशी से दूर कर देता है। जर्नल ऑफ एक्सपेरिमेंटल सोशल साइकोलॉजी में छपे इस शोध के मुताबिक, फ्री टाइम में कोई काम नहीं हो पाने के चलते तनाव और अवसाद बढ़ता है। फुर्सत के पलों में प्रॉडक्टिविटी कम होने से खुद हमारे ही मन को मौज-मस्ती समय की बर्बादी लगने लगती है। फुर्सत भी सुकून छीनने लगे तो जरूरी है कि अवकाश और व्यस्तता के भी बीच एक संतुलन साधने का प्रयास किया जाए।
अवकाश का सही इस्तेमाल जरूरी
दरअसल, फ्री टाइम में की जा रही या बिलकुल नहीं की जा रही एक्टिविटी ही इस वक्त की सार्थकता तय करती है। भागदौड़ से बचाकर निकले गए समय में अपनी रुचि के मुताबिक कुछ करना संतुष्टि दे सकता है, मन का माहौल खुशनुमा बनाता है। जबकि ठहराव के पलों में कुछ ऐसा किया जाये जिसकी कोई सार्थकता ही नहीं, तो अवसाद और तनाव ही हिस्से आता है। अवकाश के पलों में सेहत के प्रति जागरूक इंसान सैर करने निकल जाए तो उसे ख़ुशी मिलेगी पर अगर वही इन्सान अपनी दिनचर्या बिगाड़ ले तो स्ट्रेस ही बढ़ेगा। यानी फ्री समय में हम क्या काम करते है? क्या सोचते हैं? यह तय करता है कि उससे खुशी मिलेगी या तनाव। इसीलिए रोजमर्रा की भागदौड़ से बचाकर निकाले गए फुर्सत के पलों का इस्तेमाल भी सोच-समझकर करना जरूरी है। खाली समय का इस्तेमाल कुछ यूं किया जाए कि मन में नए काम को करने की उमंग भरे न कि अवसाद का शिकार बना दे।
काम और आराम में सही बंटवारा
यह सच है कि हम सभी आज की भागमभाग में फुर्सत के पलों का इंतजार करते हैं। हमें लगता है कि अवकाश का समय मन को सुकून और जीवन को थोड़ी सहजता देने वाला रहेगा। होना भी यही चाहिए। लेकिन संतुलन और समझ के साथ इन पलों को न साधा जाये तो फुर्सत का समय हमें परेशान भी कर सकता है। खाली समय मन की थकान उतार भी सकता है और मन के मौसम को और ऊबाऊ भी बना सकता है। टाइम मैनेजमेंट का एक जरूरी हिस्सा काम और आराम के बीच संतुलन बनाये रखने का भी है| जिंदगी की रेस में आपको खुद ही तय करना होगा कि कितनी आपाधापी हो और कितना सुकून। यह संतुलन बनाए रखने के लिए इस बात को समझना जरूरी है कि पाने-जुटाने और कुछ कर जाने की कोई सीमा नहीं। न ही आराम और आलस का कोई अंत हो सकता है। हद से ज्यादा व्यस्तता और अवकाश दोनों ही समस्या बढ़ाते हैं।
जीवनशैली से जुड़ी सजगता भी
आज की हाईटेक जिन्दगी में घर के काम भी आसान हुए हैं और बाहर की भागदौड़ भी। ऐसे में समय को सही ढंग से इस्तेमाल करने की सजगता जरूरी है। एक सही पैटर्न का शैड्यूल आवश्यक है, जो फ्री टाइम और व्यस्तता का संतुलन बनाए। वरना तकनीक और आधुनिक जीवनशैली ने जो सुविधाएं जिन्दगी को आसान बनाने के लिए दी हैं, वे ही मन को थकाने वाली साबित हो सकती हैं। स्मार्ट गैजेट्स ने कम्युनिकेशन से लेकर सेवायें और सामान ऑनलाइन ऑर्डर करने तक बहुत बड़ी सुविधा दी है। पर इन्हीं गैजेट्स पर दिन भर स्क्रोलिंग करते रहना, ऑनलाइन शॉपिंग के जरिए जरूरी-गैर जरूरी चीज़ें मंगवाते रहना या बेवजह किसी से लम्बी बातचीत करना। फ्री टाइम का ऐसा इस्तेमाल आपको टेंशन दे सकता है। इसीलिए अवकाश का वक्त भी सोच-समझकर खर्च किया जाये। खाली समय को अगर अर्थहीन कामों में लगाया जाये तो यह भी नाखुशी ही देता है।