नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग : The Dainik Tribune

कंज्यूमर राइट्स

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

नकली माल की बिक्री पर सख्त उपभोक्ता आयोग

श्रीगोपाल नारसन

नकली या जाली अथवा मिलावटी सामान बेचने पर अब दुकानदार को छह महीने से लेकर आजीवन कारावास तक की सजा हो सकती है और उपभोक्ता को एक लाख रुपये से लेकर 5 लाख रुपये तक का मुआवजा मिल सकता है। सामान्य मामले में उपभोक्ता को एक लाख रुपये तक का मुआवजा मिलता है। अगर बेचे गए उत्पाद से उपभोक्ता को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से नुकसान होता है तो विक्रेता को सात साल की जेल और उपभोक्ता को 5 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है। यही नहीं, अगर ऐसे सामान की वजह से उपभोक्ता की मौत हुई तो उसके परिजनों को 10 लाख रुपये तक मुआवजा मिल सकता है और विक्रेता को आजीवन कारावास की सजा मिल सकती है। नए कानून की परिधि में ऑनलाइन और टेलीशॉपिंग कंपनियों को पहली बार शामिल किया गया है। खाने-पीने की चीजों में मिलावट होने पर कंपनियों पर जुर्माना और जेल का प्रावधान किया गया है।

मीडिएशन सेल और जनहित याचिका

नए कानून के तहत कंज्यूमर मीडिएशन सेल का भी गठन ​किया गया है, जिसमें दोनों पक्ष आपसी सहमति से मीडिएशन सेल जा सकेंगे और आपसी सहमति से भी विवाद का निपटारा हो सकेगा। नए कानून के अंतर्गत जनहित याचिका भी अब जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग अथवा राज्य आयोग या फिर राष्ट्रीय आयोग में भी दायर की जा सकेगी। जनहित याचिका का पहले के कानून में प्रावधान नहीं था। जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग में अब 50 लाख रुपये तक के केस दाखिल किये जाते हैं। राज्य उपभोक्ता आयोग में 50 लाख रुपये से अधिक व 2 करोड़ रुपये तक के केसों की सुनवाई होती है। जबकि राष्ट्रीय उपभोक्ता आयोग में 2 करोड़ रुपये से ऊपर के केसों की सुनवाई होती है।

आसपास ही न्याय की सुविधा

नए कानून में उपभोक्ता देश के किसी भी कंज्यूमर कोर्ट में जहां वह रह रहा है, मामला दर्ज करा सकता है, भले ही उसने सामान कहीं और से ही क्यों न लिया हो। आपसे यदि कोई दुकानदार खरीदे गए सामान का अधिक मूल्य वसूलता है, आपके साथ अनुचित बर्ताव करता है या फिर दोषपूर्ण वस्तुओं और सेवाओं की बिक्री करता है, ऐसे हर मामले की सुनवाई करने का अधिकार उपभोक्ता अदालत को प्राप्त है।

भ्रामक विज्ञापनों पर कार्यवाही

नए उपभोक्ता संरक्षण कानून में भ्रमित करने वाले विज्ञापनों और उन विज्ञापनों को करने वाले सेलेब्रिटी पर भी सरकार ने नकेल कसी है। नए कानून में उपभोक्ताओं को भ्रामक विज्ञापन जारी करने पर भी कार्रवाई की जाती है। भ्रमित करने वाले विज्ञापनों के विरुद्ध धारा 2(28) के अंतर्गत कार्यवाही का प्रावधान किया गया है। भ्रमित करने वाले विज्ञापन पर धारा 21 के तहत केंद्रीय उपभोक्ता संरक्षण प्राधिकरण संबंधित कंपनी पर दस लाख तक का जुर्माना लगा सकता है। गंभीर मामलों में ये जुर्माना 50 लाख हो सकता है और पांच साल की जेल भी हो सकती है।

उत्पाद को बढ़ा-चढ़ाकर बताना

उपभोक्ता मामलों के केंद्रीय मंत्रालय ने एडवरटाइजिंग एसोसिएशन ऑफ इंडिया, इंडियन ब्रॉडकास्टिंग फाउंडेशन, ब्रॉडकास्टिंग कंटेंट कंप्लेंट्स काउंसिल, न्यूज ब्रॉडकास्टर्स एंड डिजिटल एसोसिएशन, एडवरटाइजिंग स्टैंडर्ड काउंसिल ऑफ इंडिया, पीएचडी चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, फेडरेशन ऑफ इंडियन चैंबर्स ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री, कन्फेडरेशन ऑफ इंडियन इंडस्ट्री आदि को भ्रामक विज्ञापनों की रोकथाम में सहयोग की अपील की है। कानूनन जिन उत्पादों के प्रचार-प्रसार पर प्रतिबंध है, ऐसे उत्पादों का किसी अन्य बहाने से प्रचार गैरकानूनी माना गया है। कई शराब के ब्रांड का म्यूजिक सीडी, क्लब सोडा और बोतलबंद पेय की आड़ में विज्ञापन किया जा रहा है। वहीं, गुटका और खैनी का इलायची की आड़ में प्रचार किया जाता है। इन भ्रामक विज्ञापनों के लिए ऐसे सेलिब्रिटी का इस्तेमाल कर रहे हैं जिसका युवाओं पर गलत प्रभाव पड़ता है। किसी विज्ञापन में उत्पाद को बढ़ा-चढ़ाकर बताना या उसकी आड़ में किसी अन्य वस्तु का प्रचार नहीं किया जा सकता। केंद्र सरकार ने विज्ञापनों को लेकर कड़े दिशा-निर्देश जारी किए हुए हैं।

सरोगेट विज्ञापन के मामले

हम अक्सर टेलीविजन पर ऐसे विज्ञापन देखते हैं, जो होता तो किसी खास उत्पाद के लिए लेकिन उसकी जगह पर कोई अन्य प्रोडक्ट दिखा दिया जाता है। जैसे आपने किसी शराब, तंबाकू या ऐसे ही किसी उत्पाद का विज्ञापन देखा होगा, जिसमें उत्पाद के बारे में सीधे नहीं बताते हुए उसे किसी दूसरे ऐसे ही उत्पाद या पूरी तरह अलग उत्पाद के तौर पर दिखाया जाता है। जैसे शराब बनाने वाली कंपनियां टेलीविजन पर विज्ञापन जारी करती हैं, लेकिन इनके विज्ञापन में शराब का जिक्र न होकर सोडा ड्रिंक या म्यूजिक सीडी का जिक्र होता है। क्योंकि टेलीविजन पर शराब, तंबाकू जैसे उत्पादों के विज्ञापन को सीधे तौर पर नहीं दिखाया जा सकता है। ऐसे उत्पाद के विज्ञापन के लिए दूसरे उत्पाद का सहारा लिया जाता है। ऐसे ही विज्ञापनों को सरोगेट विज्ञापन कहा जाता है। प्रतिबंधित विज्ञापनों को दिखाने के लिए सरोगेट विज्ञापन का इस्तेमाल होता है। ये ऐसे विज्ञापन होते हैं जिनके बारे में सीधे तौर पर नहीं बताया जाता है। सरोगेट विज्ञापन का एक चर्चित मामला अक्तूबर, 2021 में सामने आया था, जिसमें एक बॉलीवुड सुपरस्टार ऐसा ही एक विज्ञापन किया था। वह विज्ञापन एक पान मसाला कंपनी का था। सोशल मीडिया पर विवाद बढ़ने पर सुपर स्टार ने दावा किया था कि उन्हें इसकी जानकारी नहीं थी कि यह सरोगेट विज्ञापन है। इसके बाद उन्होंने कंपनी को प्रमोशन फीस भी लौटा दी थी। जिसे सरोगेट विज्ञापन के विरुद्ध एक बड़ी सफलता माना जा सकता है जो उपभोक्ता के हित में है।

-लेखक उत्तराखंड राज्य उपभोक्ता आयोग के वरिष्ठ अधिवक्ता हैं।

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