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मां की जिम्मेदारी के बाद पूरी करें अपनी अधूरी पारी

मातृत्व के बाद
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डॉ. मोनिका शर्मा

हमारे यहां बड़ी संख्या में महिलाएं परवरिश की ज़िम्मेदारी के चलते कामकाजी दुनिया से दूरी बना लेती हैं। कुछ साल पहले हुए एक सर्वे के मुताबिक़, देश में 72 फीसदी महिलाएं मां बनने के बाद नौकरी से ब्रेक ले लेती हैं। इस अध्ययन के अनुसार, मात्र 15 फीसदी महिलाएं ही नौकरी में सेवानिवृत्ति की उम्र तक पहुंच पाती हैं। जिसका सीधा सा अर्थ है कि शादी और मातृत्व से जुड़ी घरेलू जिम्मेदारियों के चलते बहुत कम महिलाएं अपनी नौकरी को कायम रख पाती हैं। ब्रेक के बाद कुछ महिलाएं वापसी भी करती हैं पर तकरीबन 50 प्रतिशत स्त्रियां मातृत्व की जिम्मेदारियां निभाने के लिए अपने कामकाजी जीवन पर हमेशा के लिए विराम लगा देती हैं। मातृत्व के शुरुआती पड़ाव को जी रहीं लखनऊ, अहमदाबाद, बेंगलुरु, चेन्नई, दिल्ली, हैदराबाद, इंदौर, जयपुर, कोलकाता और मुंबई की 25 से 30 वर्ष की आयु वर्ग की महिलाओं को लेकर हुए एसोचैम के सोशल डेवलपमेंट फाउंडेशन के एक अन्य सर्वेक्षण में करीब 30 प्रतिशत मदर्स ने कहा कि उन्होंने बच्चे की देखभाल के लिए नौकरी छोड़ दी है। वहीं करीब 20 प्रतिशत माताओं ने कहा कि बच्चों के लिए कैरियर छोड़ने का फैसला कर लिया है। उच्च शिक्षा के बढ़ते आंकड़ों के बावजूद महिलाओं का कामकाजी मोर्चे पर यूं पीछे छूट जाना हमारे सामाजिक परिवेश का कटु सच है। वहीं एक सच यह भी है कि इस मोर्चे पर डटे रहने के लिए कोशिशें भी महिलाओं को ही करनी होंगी। ब्रेक के दौरान कुछ ऐसे पहलुओं को पर ध्यान देना जरूरी है, जो फिर एक बार कैरियर को गति देने में मददगार बनें।

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मोर्चे पर डटी रहें

घर और बाहर दोनों मोर्चों पर जिम्मेदारियां निभाने वाली महिलाएं अक्सर परिस्थितियों के मुताबिक़ अपने सपनों को समेट लेती हैं। लेकिन जिम्मेदारियों को जीते हुए भी सपनों को जिंदा रखा जा सकता है। शादी कर घर बसाने के बाद या मां बनने के बाद महिलाओं के कैरियर में एक ब्रेक आ जाता है। कभी-कभी यह ब्रेक हमेशा के लिए कैरियर की रफ्तार रोक देता है। ऐसे में जरूरी है कि उन परिस्थितियों में भी आप सेकेंड इनिंग की तैयारी भी जारी रखें। यह तैयारी आपको मानसिक और पारिवारिक दोनों ही फ्रंट्स पर करनी होगी। पारिवारिक माहौल में भी आपके फैसले को सहज स्वीकार्यता मिले, इसकी तैयारी आवश्यक है।

सहयोग लेने में न हिचकें

वैवाहिक जीवन में कदम रखने के बाद जुड़े रिश्तों-नातों का नया परिवेश हो या मां बनने के बाद की जिम्मेदारियों के निबाह का मामला। अब वह जमाना नहीं रहा जब सब कुछ महिलाओं को ही संभालना पड़ता था। ऐसे में आप अपनों का सहयोग लेने से न चूकें। इस बात को लेकर संजीदा रहें कि आपको कैरियर के फ्रंट पर फिर लौटना है। अपनों का सहयोग आपका हक़ भी है और जरूरत भी। आमतौर पर महिलाओं में एक हिचक होती है लेकिन मौजूदा दौर में यह सोच नहीं चल सकती। घर के बाहर भी अपनी मौजूदगी दर्ज करवानी है तो अपनों का साथ सबसे बड़ा सहारा बनता है।

तकनीकी जानकारी रखें

हमारे फैमिली सिस्टम में कई बार हालात ऐसे भी बन जाते हैं कि कुछ समय के लिए महिलाएं घर तक ही सिमट जाती हैं। जिम्मेदारियों की भागमभाग कैरियर की दौड़ में फिर शामिल होने के सारे रास्ते ही बंद कर देती हैं। कुछ वर्षों बाद इस मोर्चे पर फिर लौटना आसान भी नहीं होता। ऐसे में अपने फील्ड से जुड़ी जानकारियां जुटाती रहें। साथ में टेक्नीकली भी अपडेटेड रहने की कोशिश करें। समय निकालकर वर्किंग फील्ड में आ रहे बदलावों को समझें। अपने पुराने सहकर्मियों से संपर्क में रहें। कोई नया कोर्स भी ज्वाइन कर सकती हैं। आपको जिस क्षेत्र में वापसी करनी है उसके बारे में रिसर्च करती रहें। किताबें पढ़ें , इंटरनेट पर सर्च करें।

बच्चों की आत्मनिर्भरता जरूरी

आमतौर पर महिलाएं बच्चों को समय देने के लिए अपनी जॉब से दूरी बना लेती हैं। ऐसे में बच्चों की परवरिश करते हुए उन्हें आत्मनिर्भर बनाना न भूलें। बच्चों से छोटे-छोटे काम करवाएं। बड़े होते बच्चों को मानसिक रूप से भी इस बात के लिए तैयार करें कि आने वाले समय में आपकी व्यस्तता बढ़ जाएगी। बच्चों की यह आत्मनिर्भरता आपके लिए फिर से काम पर लौटने की राह आसान करेगी।

अपराध बोध से दूरी

अपनी जिम्मेदारियों को समय देने से बाद भी महिलाएं जब काम पर लौटने का सोचती हैं तो उन्हें अपराधबोध घेरने लगता है। इस दूसरी इनिंग की शुरुआत के लिए कई स्त्रियां तो मन ही मन खुद का भी समर्थन नहीं कर पातीं। बच्चों को छोड़कर फिर कामकाजी फ्रंट पर लौटने का फैसला मन में गिल्ट भरने लगता है। खासकर मां बनने के बाद खुद के सपनों को पूरा करने की दौड़ में हर स्त्री के कदम गति पकड़ते हुए ठिठकते हैं। ऐसे समय पर व्यावहारिक सोच रखना जरूरी है। टाइम मैनेजेमेंट के साथ आप न केवल अपने काम के लिए बल्कि अपनों के लिए भी समय निकाल सकती हैं।

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