

लेखक वरिष्ठ पत्रकार हैं।
इंदौर कई मामलों में अनोखा शहर है। यहां होली के बाद मनाया जाने वाला गेर यानी रंगपंचमी उत्सव भी बेमिसाल है। करीब 45-50 लाख आबादी के बावजूद भावनात्मक जुड़ाव भी गजब का है। इंदौर वासियों को अपने शहर, उत्सव परंपरा और खानपान से बहुत प्रेम है। अब सफाई से भी उतना ही लगाव हो गया। इंदौर लगातार 6 साल से देश के सबसे स्वच्छ शहर का तमगा जीत रहा है। इस बार ‘गेर’ में जमकर रंग-गुलाल खेला गया! पर इसके बाद डेढ़ घंटे में वह इलाका चकाचक कर दिया। अब ‘गेर’ को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल कराने की कवायद जारी है।
होली के पांचवें दिन रंगपंचमी का त्योहार इंदौर में कुछ अलग अंदाज में मनाया जाता है। इसमें परिवार, मोहल्ला या समाज ही नहीं, पूरा शहर, प्रशासन, पुलिस और नगर निगम भी शामिल होता है। इंदौर के लिए रंगपंचमी का मतलब है विशाल ‘गेर’ यानी उत्सव मनाने वालों का बड़ा हुजूम! ये आसपास के 5-6 इलाकों से भीड़ के रूप निकलकर शहर के हृदय स्थल राजबाड़ा पहुंचता है, जहां सार्वजनिक रंग-गुलाल खेला जाता है। कोरोना काल में दो साल ‘गेर’ नहीं निकली। पिछले साल रंगपंचमी मनायी गयी, पर कड़े नियम-कानून से। ऐसे में इस साल का जोश और उत्साह कई गुना ज्यादा था। इस ‘गेर’ ने सारे पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त कर दिए। अनुमान के मुताबिक 5 लाख से ज्यादा लोग ‘गेर’ में रंग बिखेरने पहुंचे। कई लोग अपने परिवार के साथ आए। तीन किलोमीटर से ज्यादा लंबी ‘गेर’ निकलने का सिलसिला सुबह से दोपहर बाद तक चलता रहा।
रंग खेलने वालों की मस्ती
इंदौर की रंगपंचमी ‘गेर’ पूरे देश में अपने अनोखे रंग और रंग खेलने वालों की मस्ती के लिए प्रसिद्ध है। पूरा शहर रंगभरी ‘गेर’ में शामिल होता है। इसमें कई ‘फाग यात्राएं’ निकाली जाती हैं। राजबाड़ा से लेकर पूरे शहर में ‘गेर’ की धूम देखी जाती है। इस उत्सव को देखने देश से ही नहीं, विदेशों से भी लोग इंदौर पहुंचते हैं। ‘गेर’ की इस लोकप्रियता को देखकर अब शहर के लोगों और प्रशासन ने इसे विश्व धरोहर के रूप में पहचान दिलाने का निर्णय लिया है। इसे लेकर ‘यूनेस्को’ के अधिकारियों से जिला प्रशासन का पत्राचार हुआ है। इस ‘गेर’ को विश्व धरोहर में शामिल कराने के लिए जिला प्रशासन ने यूनेस्को से संपर्क की कवायद की व आनलाइन आवेदन किया। 2024 की लिस्ट में शामिल करवाने के लिए इसे ‘यूनेस्को’ के पास भेजा जाएगा। हाल ही में ‘यूनेस्को’ ने ‘दुर्गा पूजा’ को भी सांस्कृतिक विरासत की मान्यता दी है।
भाईचारा बढ़ाने को कायम परंपरा
बताते हैं कि इंदौर में ‘गेर’ की परंपरा होलकर राजवंश के समय से ही चली आ रही है। इस दिन होलकर घराने के लोग आम जनता के साथ होली खेलने के लिए महलों से बाहर निकलकर शहर का भ्रमण करते थे। होली के पांचवें दिन रंगपंचमी पर बैलगाड़ियों में फूल और रंग-गुलाल लेकर जनता के बीच आते और रास्ते में उन्हें जो भी मिलता उसे रंग लगाते। इस परंपरा का मकसद समाज के सभी वर्गों को साथ लेकर त्योहार मनाना था। इस तरह की ‘गेर’ का उद्देश्य समाज में ऊंच-नीच की भावना मिटाकर मिल-जुलकर इस पर्व को मनाना और आपस में भाईचारा बढ़ाना था। राजवंश खत्म होने के बाद भी ये परंपरा कायम रखी गई। अब शहर में यहां की समितियां, समाजसेवी और धार्मिक संस्थाएं मिलकर परंपरागत ‘गेर’ निकलती हैं। कहा जाता है कि इस परंपरा की पहली शुरुआत झांसी में हुई थी। ‘गेर’ के एक आयोजक के मुताबिक 74 साल पहले ‘गेर’ यात्रा का नाम ‘घेर यात्रा’ था। इसका मतलब लोगो को ‘घेर कर’ चलना। लेकिन, वक़्त के साथ इसे ‘गेर’ कहा जाने लगा। शुरू में कुछ लोग बैलगाड़ियों पर पानी की टंकी बांधकर टोरी कॉर्नर से राजबाड़े तक यात्रा निकालते थे। इसमें चुनिंदा लोग ही शामिल होते थे। लेकिन, ‘गेर’ की प्रसिद्धि बढ़ने के साथ इसमें लोगों की संख्या बढ़ती गई।
रंगू पहलवान के लोटे से निकली गेर
रंगपंचमी से जुड़े कई और भी किस्से मशहूर हैं। कवि सत्यनारायण सत्तन बताते हैं कि शहर के पश्चिम क्षेत्र में ‘गेर’ 1955-56 से निकलना शुरू हुई थी। पहले शहर के मल्हारगंज क्षेत्र में कुछ लोग खड़े हनुमान के मंदिर में फगुआ गाते, एक-दूसरे को रंग और गुलाल लगाते थे। रंगू पहलवान एक बड़े से लोटे में केसरिया रंग घोलकर आने-जाने वाले लोगों पर रंग फेंकते थे। यहीं से रंगपंचमी पर ‘गेर’ खेलने का चलन शुरू हुआ। यहीं से ‘गेर’ खेलने और इसे सार्वजनिक और भव्य पैमाने पर मनाना शुरू हुआ। तभी तय हुआ कि इलाके की टोरी कार्नर वाले चौराहे पर रंग घोलकर एक-दूसरे पर डालेंगे। बाद में आज का भव्य रूप ले लिया।
वर्ल्ड हेरिटेज के दर्जे की कवायद
दो साल पहले इंदौर की इस रंगपंचमी ‘गेर’ को ‘यूनेस्को वर्ल्ड हेरिटेज’ की लिस्ट में जगह दिलाने की कोशिश हुई थी। इस साल फिर इस कोशिश को आगे बढ़ाया गया। इस कारण भी इसे लेकर खासा उत्साह देखा गया। नियम के अनुसार किसी भी परंपरागत आयोजन को यूनेस्को की वर्ल्ड हेरिटेज लिस्ट में शामिल होने के लिए तीन शर्तें पूरी करना जरूरी है। पहली, इस तरह की परंपरा कई पीढ़ियों से चली आ रही हो! दूसरा, उसका संबंध विश्वस्तरीय हो और तीसरा यह कि इस विश्व प्रसिद्ध परंपरा (गेर) की शुरुआत कैसे हुई और इसका महत्व क्या है! रंगपंचमी की ‘गेर’ की लोकप्रियता का कारण यह है कि ये परंपरा 300 सालों से चली आ रही है। 100 साल पहले इसे सार्वजनिक और सामाजिक रूप से मनाने की शुरुआत हुई। करीब 3 से 5 लाख लोग इसमें हर साल शामिल होते हैं। देश के कोने-कोने से पर्यटक यहां आते हैं।
रंग-गुलाल से सराबोर इलाका
इस बार रंगपंचमी पर सिर्फ राजबाड़ा की ‘गेर’ में ही रंग नहीं उड़ा, पूरा शहर रंगों की मस्ती में छाया रहा। सुबह से ही लोगों का आकर्षण राजबाड़ा और आसपास का इलाका रहा। शहर से हजारों लोगों की भीड़ राजबाड़ा पहुंची और जमकर मस्ती की। गोराकुंड, सराफा, बड़े गणपति से लगाकर राजबाड़ा का पूरा आसमान रंग-गुलाल से भर गया। जमीन से लगाकर आसमान तक रंग-गुलाल नजर आए। बोरिंग मशीन से 100 फुट ऊपर तक गुलाल उड़ाया गया। टैंकरों से 100 फुट तक रंगों की बौछार से ‘गेर’ में शामिल लोगों का स्वागत किया गया। ढोल, बैंड, ट्रेक्टर, ट्राली, बैनर, डीजे की कई गाड़ियां और पानी से लबालब टैंकर साथ चले।
स्वच्छता को लेकर प्रतिबद्धता
रंगपंचमी से सराबोर हुआ राजबाड़ा का चार किलोमीटर का इलाका नगर निगम के 550 कर्मचारियों ने दो घंटे में साफ कर दिया। दो बजे के बाद जब रंग खेलने वाले लौटे तो नगर निगम के सफाईकर्मी सड़क पर उतर आए। चार बजे तक पूरा इलाका साफ हो गया। नगर निगम ने संदेश दिया कि लगातार 6 बार स्वच्छता में नंबर वन रहने वाले इंदौर के राजबाड़ा इलाके को रंगपंचमी के मौके पर भी कुछ घंटों में कैसे स्वच्छ किया जा सकता है। सफाई के लिए नगर निगम और मेयर पुष्यमित्र भार्गव ने पहले ही प्लान बनाया था। एक घंटे में ही राजवाड़ा की सड़क और गार्डन की बाउंड्री साफ कर दी। इसे देखकर ऐसा लगा मानो कुछ हुआ ही न हो। इंदौर छठी बार देश में सबसे स्वच्छ शहर है। सातवीं बार इस तमगा को जीतने की कोशिश में इंदौर नगर निगम जुटी है। गेर के बाद शहर को चकाचक कर इंदौर नगर निगम ने एक बार फिर से स्वच्छता के प्रति प्रतिबद्धता को साबित कर दिया है।
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