
डॉ. संजय वर्मा
इस कायनात में अकेले होने की दुविधा का अंजाम यह है कि इंसान हर चीज़ में अपना प्रतिबिंब (इमेज़) देखना चाहता है। अंतरिक्ष में उसे धरती जैसे दूसरे ग्रह की तलाश है। उन ग्रहों पर इंसान जैसी शक्लो-सूरत वाले जीव होंगे- इसकी कल्पना करते हुए दर्जनों फिल्में बना डाली हैं। रोबोट बनाए तो उनका चेहरा-मोहरा और उनकी बुद्धि इंसान जैसी ही हो- इसकी जिद है। सिर्फ रोबोट ही नहीं, जितनी भी दूसरे मशीनी इंतजाम हैं- उन्हें मशीन से ऊपर उठाकर इंसानी फितरत के मुताबिक काम करने लायक बनाने की कोशिशें चलती रही हैं। इंसान और मशीन में जब शक्लो-सूरत के फर्क मिटा डाले तो एक चीज़ बची थी जिसके बल पर मशीन (जड़) और इंसान (चेतन) में अंतर किया जा सकता था। वह थी हमारी चेतना या बुद्धि। मशीनों को इंसानी चेतना के लेवल पर लाने का काम तो बहुत पहले शुरू हो चुका था, लेकिन इक्कीसवीं सदी के दो दशक बीतते-बीतते वह घड़ी तकरीबन आ ही गई, जब लगने लगा कि बुद्धि (इंटेलीजेंस) के मामले में मशीनें हम इंसानों से पीछे नहीं रहेंगी। आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस (एआई) उस स्तर पर आ चुकी है जहां यह फर्क करना मुश्किल हो गया है कि जो सामग्री (कंटेंट) लेख, कला या टीवी एंकर हमारी आंखों के सामने डिजिटल शक्लों में मौजूद है, वह इंसानी (कृति) है या उसकी रचयिता मशीन है। अंतर मिटाने के इस काम पर पक्की मुहर लगाई है चैटजीपीटी नामक उस इंतजाम ने जिसे दुनिया के सामने आए अभी बमुश्किल चार-साढ़े चार महीने हुए हैं। इतनी छोटी सी अवधि में चैटजीपीटी या कहें कि चैटबॉट ( एक सॉफ्टवेयर) की शक्ल में एआई ने जो तूफान दुनिया में उठा दिया है, उसने कुछ टेढ़े सवाल भी पैदा किए हैं। कुछ लोगों की राय है कि यह गूगल आदि सर्च इंजनों की छुट्टी कर सकता है और इंसानी बुद्धि को हाशिये पर डालने और रोजगार खा जाने जैसी दिक्कतें पैदा कर सकता है। कुछ इसे बड़े काम की चीज मान रहे हैं और कह रहे हैं कि एआई का असली दौर तो अब यानी 2023 से शुरू हो रहा है ।
परदे के पार चेतना
वैसे अगर हम चेतना की बात करें और हमारे सामने एक परदा हो, तो इससे क्या फर्क पड़ता है कि परदे के उस पार से हमारी जिज्ञासाओं- हमारे सवालों का सटीक जवाब कोई इंसान दे रहा है या मशीन । मामला तो चेतना का है और वह चेतना अगर मशीनों में आ गई है तो इंसान इससे घबरा क्यों रहा है । आखिर मशीन को हर मामले में इंसान की बराबरी पर लाने की ज़िद भी हमारी ही थी । पर घबराहट का आलम ये है कि एक वक़्त तक खुद चैटजीपीटी तैयार करने के काम में साझीदारी करने वाले दुनिया के मशहूर अरबपति और टेस्ला-ट्विटर के मालिक ईलॉन मस्क हाल में कह बैठे हैं कि आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस के जोखिम पर विचार करने के लिए कम से कम छह महीने तक ऐसी तकनीकों पर रोक लगा देनी चाहिए । यूं यह राय अकेले मस्क की नहीं है । असल में मस्क के साथ-साथ एप्पल के सह-संस्थापक स्टीव वोज्नियाक ने गैरसरकारी संगठन फ्यूचर फॉर लाइफ इंस्टीट्यूट की पहल पर सैन फ्रांसिस्को की स्टार्टअप कंपनी- ओपेन एआई द्वारा चैटजीपीटी का नया संस्करण जीपीटी-4 लॉन्च करने पर एक चिट्ठी जारी की है । इस चिट्ठी में चेताया गया है कि ऐसे आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस सिस्टम जिनमें 'ह्यूमन कंपटीटिव इंटेलिजेंस' है- वह समाज और मानवता के लिए खतरा बन सकते हैं। इससे इंटरनेट पर गलत सूचनाओं की बाढ़ आ सकती है और ऑटोमेशन बढ़ने से हजारों-लाखों नौकरियां छिन सकती हैं। मस्क औरर वोज्नियाक ने लिखा है कि 'हाल के महीनों में एआई की प्रयोगशालाएं इतने अधिक ताकतवर डिजिटल दिमाग को बनाने की अनियंत्रित होड़ में शामिल हो गयी हैं जिन्हें उनको बनाने वाले भी ठीक से नहीं समझ रहे। न तो वे उनका पूर्वानुमान लगा सकते हैं न ही भरोसे के साथ उस तकनीक को नियंत्रित कर सकते हैं।'
सर्च इंजनों पर हासिल बढ़त
सोचिए कि अगर आधुनिक टेक्नोलॉजी कंपनियों के मुखिया एआई से खतरों से खौफज़दा हैं, तो बाकी दुनिया का आलम क्या होगा। पर आखिर एआई और चैटजीपीटी आखिर है क्या बला। अगर हम जिज्ञासाओं के समाधान के लिए मशीनी सहायता की बात करें तो गूगल और याहू जैसे सर्च इंजनों के अलावा विकिपीडिया जैसे प्रबंध जानकारी की खोज को पहले ही आसान कर चुके थे। स्कूल-कॉलेज के छात्र और शोधकर्ता तक इनकी शरण में जाकर अपने सवालों और जिज्ञासाओं के कई समाधान हासिल कर ही रहे थे। इनसे इंटरनेट के युग में पैदा हुई पीढ़ी खुद को सौभाग्यशाली मानने लगी क्योंकि अनुवाद से लेकर तमाम जानकारी और सूचनाओं के लिए उसे ज्यादा भागदौड़ नहीं करनी पड़ती है। लेकिन समस्या यह हुई कि गूगल द्वारा दी गई जानकारियों को अव्वल तो भरोसेमंद नहीं माना जाता है। साथ ही इनसे जो नतीजे मिलते हैं, उनका दायरा सीमित होता है। मसलन यदि कोई छात्र ग्लोबल वॉर्मिंग पर निबंध लिखना चाहे तो गूगल से उसे वे वेबलिंक्स मिल सकते हैं, जहां से ली गई सामग्री को अपने शब्दों-भाषा में लिखा जाए या जानकारी के कई टुकड़ों को बटोरकर उन्हें कॉपी-पेस्ट किया जाए। जानकारियां मिलने के बावजूद इसमें मेहनत है और कोई काम चुटकी बजाते हल नहीं हो सकता। ऐसे में समस्याओं के निदान के लिए सैनफ्रांसिस्को स्थित आर्टिफिशियल इंटेलीजेंस रिसर्च कंपनी ओपनएआई ने चैटजीपीटी नाम से एक चैटबॉट विकसित कर पिछले साल 30 नवंबर 2022 को उसे प्रोटोटाइप के रूप में पेश कर दिया।
की-वर्ड्स है कुंजी
इस चैटबॉट की खूबी यह है कि ये भाषाएं समझ लेता है और तकरीबन इंसानों जैसी प्रतिक्रिया देता है। चैटजीपीटी पर कुछ शब्द (की-वर्ड्स) लिखकर यदि यह निर्देश दिया जाए कि उनके आधार पर कोई निबंध, कविता या लेख लिखा जाए, तो वह यह भी कर सकता है। एशियाई हाथी, जंगल, मानवीय दखल, शिकार, घुसपैठ जैसे की-वर्ड और शब्द संख्या बताने पर चैटजीपीटी तकरीबन वैसा ही निबंध कुछ सेकेंड में तैयार करके दे सकता है, जैसा यदि आप गूगल करके सामग्री जुटाते और फिर उसे एक-दो दिन की मेहनत से लिखते। इसी तरह संगीत के कुछ कोड बताने पर यह एक मुकम्मल संगीत या गीत तैयार कर सकता है। इस चैटबॉट को जारी करते हुए ओपनएआई ने यह घोषणा की थी कि चैटजीपीटी नामक यह मॉडल (चैटबॉट) इस तरह प्रशिक्षित किया गया है जो संवाद कर सकता है। ऐसा करते समय यह न केवल सटीक जवाब दे सकता है, बल्कि अपनी गलतियों को स्वीकार कर सकता है और अनुचित निर्देशों को मानने से इनकार कर सकता है। भारी मात्रा में इंटरनेट आदि से लिए गए डाटा से प्रशिक्षित किए गए चैटजीपीटी की खूबी सीखने की प्रवृत्ति और मानवीय शैली में विकास करना है। इसे ऐसे प्रशिक्षित किया गया है कि जब कोई सवाल पूछा जाता है, तो जवाब में इंसान कैसी प्रतिक्रियाओं की उम्मीद करते हैं। एआई क्षमता से लैस एक आम रोबोट से चैटजीपीटी इस मायने में अलग है कि यह पूछे गए प्रश्नों में इंसान की मंशा को समझकर ऐसा उत्तर देता है तो वास्तविकता के करीब हो, सच हो और हानिरहित हो। यहां तक कि कुछ सवालों के उत्तर देने की बजाय प्रतिप्रश्न पैदा कर सकता है और सवाल के उन हिस्सों को हटा भी सकता है, जो समझ में नहीं आते हैं।
क्या है इंसानी बुद्धिमता का सटीक विकल्प
पर क्या इसे इंसानी बुद्धिमता का सटीक विकल्प माना जा सकता है। और क्या यह ठीक उसी तरह हमारी मेधा के विस्तार में बाधक नहीं बनेगा, जिस तरह कैल्कुलेटर ने बच्चों में पहाड़े और गुणा-भाग जानने की सहज प्रवृत्ति का रास्ता तकरीबन रोक दिया है। चैटजीपीटी से पैदा हुई यह समस्या निश्चय ही जटिल है। दुनिया भर के स्कूलों, कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में इसे सहज मानवीय बुद्धि के विकास के लिए घातक मानने की खबरें हैं। चैटजीपीटी के वजूद में आते ही न्यूयॉर्क स्थित कुछ विश्वविद्यालयों-कॉलेजों की ओर से कहा गया कि वहां छात्रों को अपना होमवर्क पूरा करने के लिए चैटजीपीटी के इस्तेमाल पर प्रतिबंध रहेगा। छात्र विश्वविद्यालय और स्कूल-कॉलेजों के सर्वर से जुड़े कंप्यूटरों पर चैटजीपीटी नहीं खोल पाएंगे। न्यूयॉर्क के शिक्षा विभाग की ओर से जारी रिपोर्ट में कहा गया है कि छात्रों के सीखने की प्रक्रिया पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने और मौलिक सामग्री की बौद्धिक सुरक्षा से जुड़ी चिंताओं के मद्देनजर न्यूयॉर्क सिटी पब्लिक स्कूलों के नेटवर्क और कंप्यूटरों के लिए चैटजीपीटी तक पहुंच प्रतिबंधित कर दी गई है। हालांकि, छात्रों के निजी कंप्यूटरों, टैबलेट और स्मार्टफोन पर चैटजीपीटी उपलब्ध रहेगा। लेकिन क्या चैटजीपीटी स्कूल-कॉलेज के गृहकार्य या किसी शोध प्रस्ताव आदि का मसौदा व परीक्षा में उत्तीर्ण करने वाली सामग्री तैयार कर सकता है और उसे अकादमिक या साहित्यिक चोरी के अंश के रूप में पकड़ा नहीं जा सकता है। इस सवाल का जवाब खोजते हुए दिसंबर 2022 में अंग्रेज़ी अखबार- वॉल स्ट्रीट जर्नल ने स्कूल में दाखिले की प्रवेश प्रक्रिया संबंधी साहित्यिक परियोजना अपने पत्रकार के जरिये चैटजीपीटी की मदद से पूरी करवाई। हालांकि चैटजीपीटी ने उस प्रोजेक्ट के लिए दिए गए विषय पर बहुत ही साधारण सामग्री तैयार की थी, लेकिन पाया गया कि एक ऐसे छात्र- जिसे शोध का कोई पूर्व अनुभव नहीं है, को दाखिला देने लायक बी+ ग्रेड उस सामग्री पर मिल सकता था। यानी चैटजीपीटी से कोई असाधारण सामग्री या उत्तर भले न मिले, लेकिन कामचलाऊ से थोड़ा बेहतर नतीजा इससे मिल सकता है। यानी चैटजीपीटी से कुछ खतरा तो है। इसे देखते हुए कुछ आईटी कंपनियां और शोधकर्ता चैटजीपीटी जैसे एआई-समर्थित चैटबॉट द्वारा उत्पन्न सामग्री (कंटेंट- टेक्स्ट) की धरपकड़ करने के लिए एक ऑनलाइन प्लेटफॉर्म बनाने की दिशा में काम कररहे हैं ।
मौलिकता की जांच
एक वेबसाइट (Originality.AI) में दावा किया गया है कि उसकी सहायता से चैटजीपीटी से उत्पन्न सामग्री में साहित्यिक चोरी का अंश छांटकर अलग किया जा सकता है। इसी तरह एक अन्य रिपोर्ट में कहा गया है कि चैटजीपीटी ही नहीं, बल्कि ओपनएआई और Dall-E आदि मंच भी एआई से पैदा सामग्री की पहचान अलग करने के लिए एक टूल की मदद से एक खुफिया वॉटरमार्क लगाने की योजना पर काम कर रहे हैं, ताकि एआई की सामग्री की तुरंत जांच और धरपकड़ हो सके। उल्लेखनीय है कि Dall-E जैसे एआई प्लेटफॉर्म साधारण फोटो को करिश्माई तस्वीरों में बदल सकते हैं, उन्हें पेंटिंग्स में भी ढाल सकते हैं। इसे लेकर दुनिया भर के कलाकारों-चित्रकारों ने भी चिंता जताई है क्योंकि इससे मौलिकता नष्ट हो रही है और कलाकारों से काम छिन रहा है। लेकिन चैटजीपीटी का दूसरा पहलू है। आम लोगों समेत तमाम कंपनियां एआई-समर्थित चैटबॉट की बेमिसाल क्षमता को महसूस कर रही हैं। एआई के प्रशंसक और समर्थक चैटजीपीटी को गूगल के भावी विकल्प के रूप में देखने लगे हैं। उनका आकलन है कि चैटजीपीटी बिल्कुल इंसान की तरह कविता, कहानी, निबंध, लेख आदि लिख सकता है और किसी प्रश्न का उसी विशेषज्ञता के साथ जवाब दे सकता है, जैसे डॉक्टर, इंजीनियर, गणितज्ञ या किसी भी क्षेत्र के विशेषज्ञ देते हैं। शायद यही खूबियां हैं कि गूगल ने भी बार्ड नाम से चैटजीपीटी जैसा प्लेटफॉर्म दुनिया के सामने रख दिया है।
कुछ सीमाएं और नुकसान भी
तकनीक का जो पहलू दुनिया को हमेशा परेशान करता रहा है, वह यही है कि अगर उससे कुछ फायदे हैं तो नुकसान कम नहीं है। डायनामाइट जैसे विस्फोटक का आविष्कार हुआ था पहाड़ में सुरंगें बनाने जैसे उपयोगी काम के लिए, लेकिन इस आविष्कार ने संहार का रास्ता भी खोला। कंप्यूटर-इंटरनेट से लेकर ऐसी तमाम ईजादें हैं जो हमारी मदद के लिए अस्तित्व में आईं, लेकिन उनके नुकसान हमेशा चर्चा में रहे हैं। यही सब कुछ चैटजीपीटी के संदर्भ में सामने आ रहा है। जैसे इसकी एक समस्या यह है कि इंसानों की तरह प्रतिक्रिया देने के क्रम में ऐसे जवाब दे सकता है जो मनुष्यों को सही लगते हैं, लेकिन हकीकत में वे गलत होते हैं। खुद ओपनएआई ने बताया है कि कुछ मामलों में चैटजीपीटी गलत या निरर्थक उत्तर दे सकता है क्योंकि सही उत्तर या सत्य कई संदर्भों में उनसे अलग हो सकता है, जिनके बारे में इसे पहले से अलग तरीके से प्रशिक्षित किया गया हो। असल में कोई उत्तर इस बात पर निर्भर करता है कि इससे सवाल पूछने वाला व्यक्ति किसी समस्या के बारे में क्या जानता है और वह सवाल पूछने के लिए कौन-से कीवर्ड चुनता है, बजाय इसके कि चैटजीटीपी क्या जानता है। बेशक, चैटजीपीटी नामक यह एआई चैटबॉट कुछ गलत, नकारात्मक और निरर्थक समाधान देगा लेकिन इसे तैयार करने में लगे इंजीनियर और शोधकर्ता यह उम्मीद करते हैं कि आखिर में कुछ तो सकारात्मक होगा। हालांकि सबसे सकारात्मक तो यह होगा कि यदि चैटजीपीटी की यह तकनीक दुनिया से हजारों रोजगारों के खात्मे की बजाय नई नौकरियों के सृजन का रास्ता खोल दे। असल और नकल की बुद्धि का फर्क मिटाने वाली तकनीक मेधा के विकास और रोजगारों की संख्या बढ़ाने में मददगार साबित होगी, तो फिर इसके विरोध की आवाजें अपने आप शांत हो जाएंगी।
लेखक बेनेट यूनिवर्सिटी में एसोसिएट प्रोफेसर हैं।
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