सदा दिलों में भी छाये भारत कुमार
अभिनेता और निर्माता-निर्देशक मनोज कुमार देशभक्ति की फिल्मों के लिए ज्यादा जाने गये लेकिन उनकी रोमांटिक फिल्में भी कम पसंद नहीं की गयीं। पटकथा के अलावा वे अपनी फिल्मों में गीतों पर खास ध्यान देते थे। सामाजिक पृष्ठभूमि और संवेदना पर आधारित शोर, पूरब-पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, उपकार जैसी फिल्में मनोज कुमार दर्शकों के लिए लाए। हरियाली और रास्ता जैसी फिल्मों में उनका अभिनय सराहा गया। शहीद, उपकार, पूरब पश्चिम व क्रांति जैसी फिल्मों ने उन्हें भारत कुमार बनाया।
भारतीय फिल्म जगत को मनोज कुमार ने कई यादगार फिल्में दी हैं। उनका योगदान खासतौर पर अभिनेता और निर्माता-निर्देशक के रूप में रहा है। देश भक्ति आधारित कुछ नायाब फिल्में देने पर उन्हें भारत कुमार के नाम से जाना गया। लेकिन रोमांटिक फिल्मों में भी मनोज कुमार की भूमिका सिने दर्शकों को पंसद आई। वे जब भी किसी फिल्म को लेकर आए या उनके अभिनय से सजी कोई फिल्म सामने आई तो उसे भरपूर चर्चा मिली। उनकी फिल्में पटकथा के साथ-साथ गीत-संगीत पक्ष के लिए सराही गई। चाहे देशभक्ति से ओतप्रोत तराने हों या फिर रोमांटिक गीत- वे लोगों के मन में बसते हैं। सामाजिक पृष्ठभूमि और संवेदना पर आधारित शोर, पूरब-पश्चिम, रोटी कपड़ा और मकान, उपकार जैसी फिल्मों को मनोज कुमार दर्शकों के लिए लाए। हरियाली और रास्ता, हिमालय की गोद में, बेईमान, पत्थर के सनम जैसी फिल्में उनके अभिनय के लिए सराही गई। शहीद, उपकार, पूरब पश्चिम व क्रांति जैसी फिल्मों ने उन्हें भारत कुमार बनाया। साल 2015 में उन्हें दादा साहेब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया। उन्हें राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार व सात फिल्म फेयर भी मिले। साल 1992 में उन्हें पद्मश्री से भी सम्मानित किया गया।
Advertisementएबटाबाद से दिल्ली और फिर मुंबई
विभाजन से पूर्व भारत में स्थित शहर एबटाबाद में (अब पाकिस्तान में) मनोज कुमार का जन्म हुआ था। हरिकृष्ण गिरि गोस्वामी के नाम से जाने गए इस युवक का परिवार भी विभाजन की विभीषिका में भारत की ओर आया। दिल्ली के मोरिसन और हिंदू कालेज में पढ़ाई की। दिलीप कुमार, अशोक कुमार व कामिनी कौशल के अभिनय से प्रभावित होकर इन्होंने फिल्मों की राह पकड़ी। दिलीप कुमार से प्रभावित होकर ही उन्होंने अपना नाम मनोज कुमार रखा था। मुंबई में खूब संघर्ष किया। शुरू में कांच की गुड़िया व रेशमी रुमाल जैसी कुछ फिल्में मिली। लेकिन पहली सफलता माला सिन्हा के साथ बनी विजय भट्ट निर्मित-निर्देशित फिल्म ‘हरियाली और रास्ता’ से मिली। इसी फिल्म ने उन्हें सुपर स्टार बनाया। इस फिल्म के गीत हर जगह छा गए जिनमें शंकर जयकिशन का संगीत था।
देशभक्ति आधारित फिल्में
मनोज कुमार की शहीद, उपकार और पूरब पश्चिम जैसी फिल्मों ने उन्हें देशभक्ति आधारित फिल्में बनाने, निर्देशन करने और उनमें किरदार निभाने वाले अभिनेता के तौर पर स्थापित किया। जब ‘शहीद’ फिल्म आई तो मेरा रंग दे बसंती चोला जैसा गीत घर-घर गूंजने लगा। इस फिल्म को देखकर ही पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री ने उन्हें जय जवान जय किसान नारे पर फिल्म बनाने के लिए प्रेरित किया था। यह फिल्म ‘उपकार’ नाम से आई। नए-नए आजाद हुए देश के लोगों को ‘जहां डाल डाल पर सोने की चिड़ियां करती हैं बसेरा’ व ‘मेरे देश की धरती’ जैसे देशभक्ति के तरानों ने मंत्रमुग्ध किया। कल्याणजी के साजों से मधुर झंकार निकली। इसी फिल्म में मन्नाडे का ‘ऐ मेरे प्यारे वतन’ सुनने को मिला। इस फिल्म की पृष्ठभूमि पाकिस्तान के साथ युद्ध से जुड़ी थी। साल 1967 में बनी इस फिल्म को छह फिल्म फेयर पुरस्कार मिले थे। फिल्म ‘पूरब पश्चिम’ पाश्चात्य सभ्यता और भारतीय परंपरा-संस्कारों के बीच की कशमकश को सिने पर्दे पर लाने का सफल प्रयास था। इस फिल्म के लिए सायरा बानो का चयन हुआ था। फिल्म दुल्हन चली , कोई जब तुम्हारा हृदय तोड़ दे , पुरवा सुहानी जैसे गीतों की वजह से चली थी वहीं ‘ओम जय जगदीश हरे...’ की आरती श्रद्धा भाव जगाती है। इसी में गुलशन बावरा ने लिखा था लोकप्रिय गीत ‘है प्रीत जहां की रीत सदा...’।
‘शोर’ में नजा आयी कला की संजीदगी
‘वो कौन थी’ एक संस्पेस फिल्म थी। जितनी शोहरत इस फिल्म में मदन मोहन के संगीत और लताजी की गायकी को मिली उतना ही मनोज कुमार और साधना ने सिने दर्शकों को प्रभावित किया। वहीं ‘शोर’ में अभिनेत्री नंदा के साथ मनोज कुमार की कला की संजीदगी नजर आती है। साल 1971 में ‘बेईमान’ के लिए उन्हें सर्वश्रेष्ठ अभिनेता का पुरस्कार मिला था जबकि ‘शोर’ में फिल्म फेयर जीता था। उनकी संन्यासी, क्लर्क जैसी फिल्में भी आई। उनकी ‘हिमालय की गोद’, ‘गुमनाम’ व ‘पत्थर के सनम’ जैसी रोमांटिक फिल्में थी। अस्सी के दशक में वह देशभक्ति पर ‘क्रांति’ फिल्म लेकर आए।
गीत-संगीत पर खास ध्यान
मनोज कुमार ने अपनी फिल्मों में गीत-संगीत पर बहुत ध्यान दिया। शंकर जयकिशन, कल्याणजी आनंदजी, लक्ष्मीकांत प्यारेलाल और मदन मोहन जैसे संगीतकारों ने उनकी फिल्मों को अपने संगीत से संवारा। इंदीवर, गुलशन, संतोष आनंद और गुलशन बावरा जैसे गीतकारों ने उनकी फिल्मों के लिए अद्भुत गीत लिखे। जो आज भी गूंजते हैं। मनोज कुमार के लिए ज्यादातर गीत मुकेश और लता मंगेशकर ने गाए हैं। शंकर जयकिशन ने बेईमान, हरियाली और रास्ता व संन्यासी जैसी चर्चित फिल्मों का संगीत दिया।
कल्याणजी आनंदजी ने उपकार, पूरब पश्चिम व हिमालय की गोद जैसी फिल्मों में यादगार संगीत दिया तो लक्ष्मीकांत प्यारे लाल के संगीत में शोर, रोटी कपड़ा और मकान व क्रांति के गीत मंत्रमुग्ध करते रहे। इसी तरह हाय हाय रे मजबूरी, चल संन्यासी मंदिर में, गुमनाम है कोई, मैं तो इक ख्वाब हूं , चांद आहें भरेगा , वो परी कहां से लाऊं, जिंदगी की न टूटे लड़ी जैसे कई तराने हैं। उनकी फिल्में जब भी आई तो सिने दर्शक सिनेमा हॉल में उमड़े।