डॉ. मोनिका शर्मा
व्यक्तिगत लाभ-हानि तक सिमट रही सोच के इस दौर में अपना स्वार्थ साधने का व्यवहार घर और बाहर हर जगह दिखता है। कई बार इस खेल में टूल भी खुद उसी इंसान को बनाया जाता है, जिसके साथ यह खेल खेला जा रहा हो। गैसलाइटिंग का यह सोचा-समझा बर्ताव किसी सहज-सरल व्यक्तित्व वाले इंसान को उलझाकर रख देता है। इसीलिए दूसरों के ही नहीं, स्वयं अपने व्यवहार के बदलते रुख के प्रति भी सजगता जरूरी है। मन-जीवन को उलझाने वाले इस खेल और खिलाड़ी दोनों को समय रहते समझना आवश्यक है।
विचार और व्यवहार का आईना
आम शब्दों में गैसलाइटिंग किसी इंसान के स्वार्थपरक विचार का ही विस्तार है। अपने फायदे के लिए दूसरे के मन-मस्तिष्क को भ्रम में उलझाना, बहकाना ही गैसलाइटिंग का उद्देश्य होता है। अपने लक्ष्य, जरूरत या लाभ को साधने के लिए किसी परिचित-अपरिचित इंसान के साथ मनोवैज्ञानिक तौर पर यूं खेलना कि वह भ्रमित हो जाए। सामने वाला इंसान ऐसा धोखा खाये कि अपनी ही सोच, क्षमता और योग्यता पर संदेह करने लगे। ऐसे में यह दिल दुखाने वाली बात ही है। इसे भी एक तरह का मानसिक शोषण ही कहा जाएगा। इसीलिए आम व्यवहार में जड़ें जमा रहा वैचारिक दबाव बनाने का यह बर्ताव वाकई चिंतनीय है। खुद की बेहतरी के बजाय दूसरों को कमतर महसूस करवाने की सोची-समझी चालाकी कभी किसी के मन में आते विकृत भावों की बानगी बनती है तो कभी दूसरों का दिल दुखाने और भरमाने वाले हालातों को अपने लाभ के लिए इस्तेमाल करने की। दोनों ही स्थितियां मानवीय मोर्चे पर हमें पीछे ले जाने वाली हैं।
हर जगह होता है सामना
घर हो या बाहर, गैसलाइटिंग के स्वार्थपरक व्यवहार से हर जगह सामना होता है। मन-मस्तिष्क के मोर्चे पर खेला जाने वाला यह खेल घर से लेकर बाहर तक हर जगह पूरी रणनीति से खेला जाता है। किसी के साथ मनोवैज्ञानिक फ्रंट पर लंबे समय तक खेलते रहने की यह चालबाजी आत्मविश्वास और आत्मसम्मान दोनों में इतनी कमी ले आती है कि इंसान इस खेल को खेल रहे व्यक्ति पर ही निर्भर हो जाता है। आम जीवन के घरेलू रिश्तों-नातों और जान-पहचान वालों में ही नहीं बल्कि राजनीतिक और व्यावसायिक स्तर पर ऐसी स्वार्थपरक सोच देखने को मिल जाती है। आज के प्रतियोगी दौर में यह खेल ज्यादा ही देखने में आता है। नतीजतन इस शब्द को जानने-समझने और विश्लेषित करने की जरूरत ने भी विस्तार पाया है। पब्लिशर मेरियम-वेबस्टर के मुताबिक, गैसलाइटिंग शब्द की खोज भले ही बरसों पहले हो गई थी पर पिछले 4 साल में इसका इस्तेमाल तेज़ी से बढ़ा है। समझना मुश्किल नहीं कि हर जगह, हर मामले में स्वार्थ का जाल भी विस्तार ही पा रहा है।
आभासी दुनिया भी नहीं अछूती
आसान भाषा में गैसलाइटिंग किसी सहज-सरल व्यवहार वाले इंसान को मनोवैज्ञानिक मोर्चे पर दिये जाने वाले धोखे के समान है। कभी स्नेह भरे शब्द तो कभी मान-मनुहार करते हावभाव। कभी संभाल-देखभाल के नाम पर तो कभी चिंता और भय का वास्ता देकर। किसी के साथ छल किये जाने के अनगिनत रास्ते हैं। किसी के दिमाग पर हावी होने का यह खेल वास्तविक जीवन में तो आम है ही, अब वर्चुअल दुनिया में भी खूब दिखता है। आभासी संसार में कभी तारीफ भरे शब्दों के माध्यम से और कभी आलोचनात्मक टिप्पणियों से, गैसलाइटिंग का काम किया जाता है। यहां मित्र बने परिचित-अपरिचित चेहरे धड़ल्ले से ऐसा कुछ कहते-लिखते रहते हैं, जो मानसिक प्रताड़ना दे सकता है। कभी विचारों में कमी निकालते हैं तो कभी तस्वीरों पर कटाक्ष करते हैं। ऐसे में बहुत लोग वर्चुअल दुनिया में की जा रही गैसलाइटिंग से भी अवसाद में आ जाते हैं। तनाव और भय से घिर जाते हैं। कई बार इंसान खुद भी सोशल मीडिया गैसलाइटिंग की चपेट में आ जाता है। वहां रीयल और फेक का अंतर न समझना भी इस जाल में उलझा देता है। ऐसे में कई बार अनदेखे-अनजाने लोग भी गहरी भावनात्मक चोट पहुंचाने में सफल हो जाते हैं।