
अरुण नैथानी
दोनों नेत्रों की दृष्टिबाधिता के बावजूद धनी राम चमोली आज एक राष्ट्रीयकृत बैंक में सीनियर मैनेजर हैं। पढ़ने-लिखने का जुनून इस हद तक कि वे दो विषयों में स्नातकोत्तर हैं। कुछ डिप्लोमा हैं। महत्वपूर्ण बात यह कि उच्च शिक्षा में शिक्षक पात्रता के लिये जरूरी यूजीसी नेट परीक्षा वे दो विषयों में उत्तीर्ण कर चुके हैं। अब मकसद है कि हिंदी साहित्य में शोध कर आने वाली पीढ़ियों के लिये कुछ खास कर जाएं।
जीवन की शुरुआत से पढ़ाई, नौकरी तक
धनी राम चमोली की जीवन यात्रा एक जुलाई 1972 से शुरू होती है। उन्होंने ग्राम पलाम जिला टिहरी गढ़वाल उत्तराखंड में पंडिताई करने वाले गोपाल दत्त के घर जन्म लिया। शुरुआत में आंख में कुछ रोशनी थी। धनी राम ने शुरुआती पढ़ाई गांव में की। कालांतर दोनों आंखों की दृष्टि जाती रही। फिर सामान्य स्कूल में पढ़ना संभव नहीं था। अत: नेशनल इंस्टीट्यूट फॉर विजुअली हैंडीकेप, देहरादून में दाखिला लिया। कालांतर वर्ष 1990 में मैट्रिक किया। इस बीच राष्ट्रीय दृष्टिबाधिता संस्थान देहरादून से शार्टहैंड का डिप्लोमा किया और नौकरी के लिये प्रयास शुरू किये। अगले ही साल वर्ष 1991 में पंजाब नेशनल बैंक में स्टेनोग्राफर की नौकरी मिली। पहली पोस्टिंग चंडीगढ़ के सेक्टर-17 स्थित पीएनबी के रीजनल ऑफिस में मिली।
प्रतिकूलता में सरस्वती की साधना
नये जीवन की शुरुआत आसान न थी। चंडीगढ़ में दोस्त-मित्र ढूंढे। कुछ दिन रिश्तेदारों के यहां रहे। लेकिन धनी राम का मकसद किसी के साथ रहना न था। मकसद था तो सिर्फ आगे पढ़ाई करना। फिर 1992 में पत्राचार से सीबीएसई, तिमारपुर दिल्ली से पत्राचार के जरिये इंटरमीडिएट किया। इसके बाद पंजाब विश्वविद्यालय चंडीगढ़ से 1992 में बीए प्रथम वर्ष इवनिंग कालेज के जरिये किया। पढ़ाई में बाधा न आए इसलिये हॉस्टल में रहकर पढ़ाई की। लेकिन यह आसान नहीं था क्योंकि दिव्यांगों के अनुरूप रहने आदि की व्यवस्थाएं अलग से नहीं थी। हॉस्टल का ढांचा-बाथरूम आदि नार्मल लोगों के अनुरूप था। एडजस्ट किया। अनुकूल परिस्थितियां न होना एक सामाजिक समस्या तो है। घर का खाना बाहर कहां मिलता है, मैं खाना हॉस्टल में खाता। मेरा मकसद सिर्फ पढ़ाई ही था। पढ़ाई में आगे बढ़ने को वे जीवन का पटरी पर आना मानते रहे। वे कहते हैं कि चिराग की रोशनी का मुकाबला चिराग से ही होता है। उसका दूसरा विकल्प नहीं है।
ऑफिस ड्यूटी और पढ़ाई का संतुलन
वे बताते हैं, मैं दिन में दस से पांच आफिस में ड्यूटी करता था। फिर पांच बजकर चालीस मिनट से नौ बजे तक क्लास अटैंड करता था। दफ्तर में भी काम करना पड़ता था। शरीर इतना थक जाता था कि सोते वक्त ऐसा लगता था कि जैसे किसी ने कुटाई की हो। इस तरह वर्ष 1995 में बी.ए. किया। वर्ष 1997 में एमए राजनीतिक विज्ञान से किया। उस वक्त यूजीसी के लिये 55 प्रतिशत अंक जरूरी थे। नंबर कम आने पर दोस्तों ने सलाह दी कि सुधार के लिये परीक्षा देने से बेहतर है कि दूसरी एम.ए़ कर ली जाये। फिर मैंने हिंदी में एम.ए. करने का विचार बनाया। विडंबना यह थी कि इवनिंग क्लास में एम.ए. हिंदी विषय नहीं था। अत: एम.ए. हिंदी प्राइवेट किया और 55 प्रतिशत नंबर आये। फिर राजनीतिक विज्ञान विषय में अंक सुधारने के लिये गोल्डन चांस पंजाब विश्वविद्यालय ने वर्ष 2011 में दिया। सौभाग्य से तब 70 नंबर बढ़े। कालांतर सरकार का नया नियम आया कि एससी, एसटी तथा विजुअली डिसएबल कम प्रतिशत में यूजीसी नेट परीक्षा दे सकते हैं।
अधिकारी बनकर भी जारी रखी शिक्षा
कालांतर धनी राम ने बैंक में अधिकारी बनने के लिये पेपर भी दिये। फिर सीएआईआई-बी की परीक्षा पास। वे वर्ष 2012 में स्टेनोग्राफर से अधिकारी बने। फिर वर्ष 2015 में मैनेजर बने। वर्ष 2019 में पहली यूजीसी नेट परीक्षा उत्तीर्ण की। फिर पीएनबी में सीनियर मैनेजर बने। साल 2023 में हिंदी में नेट क्वालीफाई किया। नेट परीक्षा के लिये पाठ्य सामग्री कैसे जुटाते थे? वे कहते हैं कुछ मेटर रिकार्डिंग से, कुछ इंटरनेट से, ऑडियो और ब्रेल लिपि में उपलब्ध किताबों के जरिये। काफी पैसा, समय और ऊर्जा खर्च करनी पड़ती है। हमारी समस्या बड़ी है क्योंकि हम न नॉमर्ल पढ़ सकते थे और न लिख सकते थे। राइटर के लिये अनुमति लेनी पड़ती तो तमाम गाइड लाइंस पूरी करने की जरूरत होती।
और अब जिंदगी पटरी पर...
आज धीरे-धीरे धनी राम की जिंदगी पटरी पर आने लगी। पुरुषार्थ से उन्होंने नौकरी हासिल की, खूब ज्ञान हासिल किया। कालांतर गढ़वाल से सामान्य युवती सुशीला से विवाह किया। आज एक बेटा-बेटी हैं। बेटी ने अर्थशास्त्र से एमए कर लिया है। बेटा शुभम्ा् बारहवीं में गया है। चंडीगढ़ जैसे महंगे शहर में उन्होंने अपना मकान बना लिया है।
शोध के जरिये समाज हित
यह पूछने पर कि वे बैंक में सीनियर मैनेजर हैं फिर पीएचडी करने की क्या जरूरत है? उनका कहना था कि मुझे निरंतर पढ़ने-लिखने का शौक है। चाहता हूं कि कुछ नई चीज निकले। मैं शोध के जरिये समाज को कुछ दे सकूं। जैसे हमारे बाप-दादा चले गये, हम भी चले जाएंगे। बाप-दादा यदि आम का पेड़ लगाते हैं तो हम आम खा सकते हैं। मैं बगीचा न लगा सकूं तो आने वाली पीढ़ी के लिये पेड़ तो लगा सकता हूं। उत्तराखंड के साहित्यकारों पर शोध करना चाहता हूं। वहां का जो बिखरा साहित्य है वो एक जगह हो जाये। उनके काम से नई पीढ़ी रूबरू हो सके। वैसे शिक्षा के धनी धनी राम एक और विषय में एम.ए़ करना चाहते हैं। आपने अपनी कमजोरी को ताकत बनाया है, कितना संतुष्ट हैं? इस स्थिति को अपना प्रारब्ध मानता हूं। लेकिन सही मायनों में अपनी कमी को ताकत नहीं बना पाया। जितना चाह रहा था, वो मेरी उपलब्धियों के अनुरूप नहीं है। जितने मौके मिले उनका लाभ नहीं उठा सका। निस्संदेह मेरी कुछ सीमाएं हैं। कुछ महत्वाकांक्षाएं पूरी नहीं हुई।
पढ़ाई यानी खुराक
यह महत्वपूर्ण है कि धनी राम अध्ययनशील रहे जबकि आम लोग अच्छी नौकरी पाने के बाद आरामतलब हो जाते हैं। लेकिन उन्होंने तमाम चुनौतियों के बावजूद ये मुकाम हासिल किया। वे कहते हैं कि पढ़ाई मेरी खुराक है। कार में अपने चालक महेशचंद्र के साथ चलता हूं तो हर समय मेरे बैग में पांच-छह ब्रेल लिपि की किताबें मिलेंगी। कुछ न कुछ पढ़ता रहता हूं। खासकर मुझे वैदिक साहित्य पढ़ना अच्छा लगता है।
धनी राम का कहना है कि सरकार को प्रयास करना चाहिए कि दिव्यांगों के लिये विशेष बीमा पॉलिसी लाये। बीमा कंपनियां उन्हें बीमे का पर्याप्त लाभ नहीं देती। यदि अच्छी पॉलिसी आए तो दिव्यांगों के भविष्य को लेकर अभिभावकों की चिंताएं खत्म हो सकेंगी। वे कहते हैं कि आज भी यदि सरकार मेरी कहीं सेवा लेना चाहती है तो मैं नि:स्वार्थ खुशी से तैयार रहूंगा। प्रधानमंत्री मोदी जी समाज के लिये अच्छा काम कर रहे हैं। समाज और देश के लिये बिना किसी लाभ की आशा के काम करने का अवसर मिलेगा तो मेरा सौभाग्य होगा।
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