मुकुल व्यास
पारलौकिक जीवन के बारे में कोई सबूत नहीं मिलने के बावजूद एलियंस की कल्पना हमेशा हमें रोमांचित करती रहती है। कुछ समय पहले एक रहस्यमय रेडियो संकेत ने खगोल वैज्ञानिकों के बीच बड़ी हलचल मचा दी। यह रेडियो संकेत ऐसे तारे की तरफ से आया है जो हमारे सूरज के बहुत नजदीक है। प्रॉक्सिमा सेंटौरी नामक यह तारा हमारी पृथ्वी से करीब 4.2 प्रकाश वर्ष दूर है। यह तारा दो ग्रहों की मेजबानी करता है। इस संकेत से वैज्ञानिकों के उत्साहित होने का मुख्य कारण यह है कि तारे का चक्कर लगाने वाले दो ग्रहों में एक ग्रह पृथ्वी जैसा चट्टानी और आवासयोग्य हो सकता है। ‘ब्रेकथ्रू लिसन’ प्रोजेक्ट से जुड़े खगोल वैज्ञानिकों ने ऑस्ट्रेलिया स्थित पार्क्स ऑब्जर्वेटरी से प्रोमिक्सा सेंटोरी का अध्ययन करते हुए यह अजीबोगरीब सिग्नल खोजा। ध्यान रहे कि ब्रेकथ्रू लिसन प्रोजेक्ट के तहत पारलौकिक दुनिया से आने वाले संकेतों को सुना जाता है। खगोल वैज्ञानिकों ने इस सिग्नल का नाम बीएलसी-1 रखा है। उन्होंने अप्रैल-मई 2019 के दौरान किए गए पर्यवेक्षणों के दौरान इस रेडियो संकेत का पता लगाया। खगोल वैज्ञानिक अब इस संकेत का विश्लेषण कर रहे हैं।
वैज्ञानिक पिछले साठ वर्षों से कृत्रिम रेडियो संकेतों की तलाश के लिए आसमान छान रहे हैं। सबसे पहले 1960 में फ्रैंक ड्रेक ने ‘प्रोजेक्ट ओज्मा’ के तहत पारलौकिक संकेतों की खोज का सिलसिला शुरू किया था। ब्रह्मांड में कुदरती रूप से रेडियो संकेत उत्पन्न होते हैं। लेकिन पारलौकिक सभ्यताओं द्वारा संप्रेषित किए जाने वाले संकेत मनुष्यों द्वारा संप्रेषित संचार संकेतों जैसे हो सकते हैं। वैज्ञानिकों को ऐसे ही संकेतों की तलाश है। मुश्किल यह है कि खगोल वैज्ञानिक जिन संकेतों को खोजने की चेष्टा कर रहे हैं वैसे संकेत वाईफाई, सेल टावर्स, जीपीएस या सेटेलाइट फोन से भी उत्पन्न होते हैं। इसकी वजह से यह पता लगाना मुश्किल हो जाता है कि ये कृत्रिम संकेत अंतरिक्ष से आ रहे हैं या मनुष्य की टेक्नोलॉजी द्वारा उत्पन्न किए जा रहे हैं।
एलियन टेक्नोलॉजी का दावा
इस बीच, अमेरिका की हावर्ड यूनिवर्सिटी के खगोल वैज्ञानिक एलन लोएब ने अपने इस विचार को दोहराया है कि पारलौकिक दुनिया से हमारे सौर मंडल में प्रवेश करने वाला अनोखा पिंड वास्तव में एक एलियन टेक्नोलॉजी का हिस्सा है, हालांकि ज्यादातर वैज्ञानिक लोएब के इस विचार को खारिज कर चुके हैं। लोएब ने अपनी नयी पुस्तक ‘एक्स्ट्राटेरेस्ट्रियल : द फर्स्ट साइन ऑफ लाइफ बियोंड अर्थ’ में लिखा है कि ‘औमुआमुआ’ पिंड एक दूरवर्ती पारलौकिक सभ्यता द्वारा विकसित की गई उन्नत टेक्नोलॉजी का नमूना है। यह रहस्यमय पिंड अक्तूबर 2017 में खोजा गया था। अनोखे आकार और शुष्क सतह वाला यह ऑब्जेक्ट पहली बार रिसर्चरों की नोटिस में आया। उस समय यह 315431 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से भ्रमण कर रहा था। बाद में यह पिंड सौर मंडल से खिसक कर वापस अंतर-नक्षत्रीय अंतरिक्ष में प्रवेश कर गया। टेलीस्कोपों से किए गए पर्यवेक्षणों में इस तरह का कोई पिंड नहीं दिखा। औमुआमुआ को पहले क्षुद्रग्रह की श्रेणी में रखा गया। लेकिन हाल ही में उसे एक धूमकेतु जैसा पिंड माना गया। औमुआमुआ हवाई भाषा का शब्द है जिसका अर्थ है पथ-प्रदर्शक। इस 274 मीटर लंबे सिगारनुमा पिंड की उत्पत्ति कहां हुई, यह आज भी एक बड़ा रहस्य है। कुछ वैज्ञानिकों का कयास है कि यह पिंड 17000 प्रकाश वर्ष दूर स्थित एक विराट मॉलिक्युलर क्लाउड (अंतर-नक्षत्रीय बादल) से आया था। कुछ रिसर्चरों ने इसके धूमकेतु या क्षुद्रग्रह होने की अटकलें लगाई हैं। कुछ अन्य वैज्ञानिकों ने इसे ‘हाइड्रोजन बर्फ’ से बनी संरचना बताया। एक ताजा रिसर्च में इसे ‘नाइट्रोजन बर्फ’ बताया गया है जिसकी उत्पत्ति प्लूटो जैसे बाहरी ग्रह से हुई। पिछले अगस्त में लोएब ने एक रिसर्च पेपर में इस विचार को चुनौती दी कि औमुआमुआ हाइड्रोजन बर्फ से बना हुआ है। लोएब ने नवंबर 2018 में प्रकाशित अपने पेपर में कहा था कि औमुआमुआ एक सौर पाल (सोलर सेल) हो सकता है। आज भी वह अपने इसी विचार पर कायम हैं कि यह ऑब्जेक्ट किसी बुद्धिमान सभ्यता की तरफ से आया है। लोएब ने कहा कि उनकी थियोरी से वैज्ञानिक जगत में विवाद उत्पन्न हुआ है, लेकिन बहुत से लोग इस बात पर विचार करने को कतई तैयार नहीं हैं कि ब्रह्मांड में दूसरी सभ्यताएं भी हो सकती हैं। हम सिर्फ यह सोचते हैं कि हम ही विशिष्ट और दुर्लभ हैं। यह एक दुराग्रह है जिसे त्यागा जाना चाहिए।
किंतु-परंतु की पारलौकिक सभ्यताएं
एक नए अध्ययन के अनुसार हमारी आकाशगंगा में पारलौकिक सभ्यताओं का वास है लेकिन इनमें से अधिकांश सभ्यताओं ने उन्नति के शिखर पर पहुंचने के बाद खुद का विनाश कर लिया होगा। नासा की जेट प्रोपल्शन लेबोरेटरी, कैलिफोर्निया इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी और सैंटियागो हाई स्कूल के रिसर्चरों ने 1961 की प्रसिद्ध ड्रेक इक्वेशन के संशोधित रूप का प्रयोग करके आकाशगंगा में बुद्धिमान सभ्यताओं की संभावित मौजूदगी का हिसाब लगाया है। ड्रेक इक्वेशन हमारी मिल्कीवे आकाशगंगा में सक्रिय और संचार योग्य सभ्यताओं का अनुमान लगाने के लिए लिखी गई थी। रिसर्चरों ने इसे अपडेट किया क्योंकि मूल इक्वेशन में बाहरी ग्रहों जैसी नयी जानकारियां शामिल नहीं थीं। वैज्ञानिकों ने अनुमान लगाया है कि हमारी आकाशगंगा के निर्माण के करीब आठ अरब साल बाद पारलौकिक प्राणियों का उदय हुआ होगा। रिसर्चरों ने अपने निष्कर्षो में इस विचार पर जोर दिया कि विज्ञान और टेक्नोलॉजी की प्रगति अंततः सभ्यताओं को विनाश की ओर ले जाती हैं। यदि पारलौकिक सभ्यताएं नष्ट हो चुकी हैं तो अब ब्रह्मांड में क्या है? एक संभावना यह है कि उन्नत सभ्यताओं ने स्वयं का विनाश कर लिया। दूसरी संभावना यह भी हो सकती है कि जिन सभ्यताओं की हम तलाश कर रहे हैं वे अभी अपने युवा चरण में हैं और हम उनका पर्यवेक्षण नहीं कर पा रहे हैं।
विशेषज्ञों ने ब्रह्मांड के उन स्थानों को रेखांकित किया जहां पारलौकिक जीवन पाए जाने की संभावना सर्वाधिक है। उनका कहना है कि आकाशगंगा के आवास योग्य क्षेत्रों में उन ग्रहों पर जीवन की संभावना सर्वाधिक है जहां धातुओं की बहुलता है। रिसर्चरों के अनुसार ऐसे स्थान आकाशगंगा के मध्य से 1300 प्रकाश वर्ष दूर हो सकते हैं। तुलना की दृष्टि से आकाशगंगा के केंद्र से हमारा सौर मंडल और पृथ्वी 2500 प्रकाश वर्ष दूर है। प्रकाश वर्ष एक पैमाना है जिससे हम अंतरिक्ष में दूरी को नापते हैं। एक प्रकाश वर्ष में 9 हजार अरब किलोमीटर होते हैं। रिसर्चरों ने कहा कि यदि उन्नत सभ्यताओं ने खुद का विनाश किया है तो यह मुमकिन है कि अब ब्रह्मांड में कोई बुद्धिमान सभ्यता मौजूद न हो। हालांकि इस बात का कोई प्रमाण नहीं है कि बुद्धिमान सभ्यताएं अंततः एक-दूसरे को नष्ट कर देंगी। शोधकर्ताओं ने साठ के दशक में की गई एक रिसर्च का हवाला दिया जिसमें कहा गया था कि विज्ञान और प्रौद्योगिकी में उत्तरोत्तर प्रगति अंततः संपूर्ण विनाश और जैविक विनाश की तरफ ले जाएगी। रिसर्चरों ने विनाश के परिदृश्य में युद्ध, जलवायु परिवर्तन और जैव प्रौद्योगिकी के विकास के उदाहरण दिए। ध्यान रहे कि अभी तक 4500 बाहरी ग्रह खोजे जा चुके हैं। इनमें से कुछ ग्रहों की विशेषताएं जीवन के पनपने में सहायक हैं। पिछले साल नवंबर में प्रकाशित एक अध्ययन में कहा गया था कि हमारी आकाशगंगा में कम से कम 30 करोड़ ग्रह मौजूद हैं जो जीवन को पोषित करने में समर्थ हैं। इतने सारे जीवन-सहायक ग्रहों की मौजूदगी के बारे में सुन कर हमारे मन में पारलौकिक जीवन के बारे में नए-नए सवाल खड़े होना स्वाभाविक है।