पुष्परंजन
भारत के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद 1959 में बोध गया से बोधी वृक्ष का एक पौधा लेते आये थे, उसे प्राचीन ट्रान क्वॉक पगोड़ा में हो-ची मिन्ह के साथ रोपा था। भारत से जो भी बड़ा शिष्टमंडल हनोई आता है, इस जगह पर सिर नवाने ज़रूर आता है। प्रणब मुखर्जी राष्ट्रपति रहते हुए 16 सितंबर 2014 को ट्रान क्वॉक पगोड़ा आये थे। रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह के अलावा, अप्रैल 2022 में लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला भी यहां आ चुके हैं।
हनोई के वेस्ट लेक पर अवस्थित ट्रान क्वॉक पगोड़ा जाइये, वहां उस लहलहाते विशालकाय बोधी वृक्ष के आसपास कोई बोर्ड नहीं मिलेगा, जिससे पता चले कि इसका भारत-वियतनाम के अतीत से कोई संबंध है। पेड़ के चबूतरे पर केवल एक तख्ती लगी है, जिसमें वियतनामी भाषा में लिखा है, ‘यहां अगरबत्ती न जलायें।’ 545 ईस्वी में निर्मित ट्रान क्वॉक पगोड़ा आने वाले लोग इस हिदायत का पालन करते हैं। चबूतरे के सामने संदेश लिखा है, ‘बोलते समय सही शब्दों का चयन करें’, ‘करने के लिए सही काम चुनें।’
बहुत कम लोगों को पता है कि डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने बोध गया से मंगाये बोधी वृक्ष का एक और पौधा प्रेसिडेंट हो ची मिन्ह को 1958 में भारत आने पर भेंट किया था। हो ची मिन्ह जब दिल्ली से हनोई लौटे तो उस पौधे को अपने निवास से कुछ सौ क़दम आगे प्राचीन ‘वन पिलर पगोड़ा’ के प्रांगण में रोपा था। अब वहां लोग बाकायदा अगरबत्ती जलाते हैं, फल-फूल से पूजा करते हैं। वहां लगे बोर्ड पर वियतनामी भाषा में सूचना है, ‘राष्ट्रपति हो ची मिन्ह फरवरी 1958 में भारत गये थे, तब उनके समकक्ष ने उन्हें बोधी वृक्ष भेंट किया था।’ सवाल है कि भारत-वियतनाम धार्मिक-सांस्कृतिक संबंधों के साक्षी इन जगहों के बारे में आम भारतीय पर्यटकों को क्या कोई जानकारी मिल पाती है?