आखिरकार एमसीडी चुनाव में दिल्ली के लोगों ने केजरीवाल की आम आदमी पार्टी पर भरोसा जता दिया। जिस डबल इंजन के मंत्र पर राज्यों में भाजपा वोट मांगती रही थी, उसी डबल इंजन सरकार के अस्त्र से आप ने भाजपा को शिकस्त दे दी। इस चुनाव में ऐसी ‘झाड़ू’ चली कि न केवल पंद्रह साल से एमसीडी पर काबिज भाजपा साफ हुई बल्कि कांग्रेस भी दहाई के अंक तक भी नहीं पहुंच सकी। हालांकि, इस चुनाव में भाजपा ने पूरी जान लगा दी थी। पिछले दिनों तीन नगर निगमों को मिलाकर एक किया गया। जिससे कुछ सीटें भी कम हुई और चुनाव भी छह महीने देर से हो पाये। इतना ही नहीं, कई राज्यों के मुख्यमंत्री और केंद्रीय मंत्री लगातार जनता को भरोसा दिलाने की कोशिश करते रहे। उन्होंने धुआंधार रैलियां, रोड शो व नुक्कड़ सभाएं की, लेकिन छोटी सरकार बनाने लायक बहुमत नहीं मिल पाया। अपनी तरफ से भाजपा ने भरपूर प्रयास किये लेकिन पार्टी पार्षदों का आंकड़ा 104 तक ही पहुंच पाया। वहीं आप ने 134 सीटें जीतकर पूर्ण बहुमत हासिल कर लिया। आम आदमी पार्टी का यह दूसरा एमसीडी चुनाव था। पिछले चुनाव में वह कांग्रेस को पीछे छोड़कर भाजपा की प्रतिद्वंद्वी बनी। इस बार भाजपा को सत्ता सुख से वंचित कर दिया। इस चुनाव में उसका वोट प्रतिशत भी चालीस पार चला गया। लोगों ने राज्य व एमसीडी में आप की डबल इंजन सरकार पर भरोसा जताया। भाजपा जहां नरेंद्र मोदी व राष्ट्रीय मुद्दों पर चुनाव लड़ती रही, वहीं आप ने दिल्ली के स्थानीय मुद्दों को तरजीह दी। आप ने भांप लिया कि जनता सफाई, कूड़े के ढेर और सस्ते-बिजली पानी के मुद्दों को प्राथमिकता देती है। केजरीवाल ने स्थानीय मुद्दों पर चुनाव लड़ा और कामयाबी पाई। यह बात ठीक है कि पंद्रह साल से एमसीडी में राज कर रही भाजपा के खिलाफ मोहभंग का कारक भी काम कर रहा था, जिसकी कीमत पार्टी ने इस चुनाव में चुकाई।
दरअसल, एमसीडी चुनाव में केजरीवाल का साफ-सफाई का वायदा काम कर गया। वहीं जनता ने भाजपा के नकारात्मक प्रचार को भी पसंद नहीं किया। आप ने चुनाव में कूड़े को बड़ा मुद्दा बनाते हुए भाजपा की तरीके से घेराबंदी की। साथ ही लोगों को भरोसा दिलाया कि पार्टी दिल्ली की प्रतिष्ठा पर दाग बने गाजीपुर व अन्य लैंडफिल साइट्स पर बने कूड़े के पहाड़ों का निस्तारण करेगी। चतुर सुजान केजरीवाल को अहसास था कि लोगों में सफाई को लेकर रोष है, जिसे वोटों में तब्दील किया जा सकता है। जिसे भाजपा समर्थक भी महसूस कर रहे थे। मुफ्त-बिजली पानी के सदाबहार मुद्दे भी आप का एक चुनावी अस्त्र रहा है, जिसका असर भी चुनाव में दिखा। जिसके चलते मतदाताओं ने दिल्ली की छोटी सरकार के लिये आप को जमकर वोट दिया। जिसे दिल्ली के लोगों के लोकसभा, विधानसभा व एमसीडी में अलग वोट पैटर्न से हटकर नये बदलाव के रूप में देखा जाना चाहिए। जो भाजपा के लिये खतरे की घंटी भी कही जा सकती है। कह सकते हैं कि भाजपा का तीनों एमसीडी को एक करने का दांव भी विफल रहा है। वहीं गुजरात चुनाव में आप की सक्रियता रोकने के लिये इसी दौरान दिल्ली एमसीडी के चुनाव कराने का केंद्र सरकार का पैंतरा भी काम नहीं आया। वहीं चुनाव में भाजपा का चार पसमांदा मुस्लिमों को टिकट देने का दांव भी नहीं चला। जबकि आप को मुस्लिम मतदाताओं का बंपर वोट मिलने की बात कही जा रही है। इन वोटरों की प्राथमिकता हमेशा ही भाजपा प्रत्याशी के खिलाफ खड़े मजबूत पार्टी प्रत्याशी को वोट देने की रही है। आप ने भाजपा के उन इलाकों में भी सेंध लगाई जिन्हें भाजपा के मजबूत गढ़ माना जाता था। पश्चिमी दिल्ली के कई इलाकों में आप ने बढ़त बनायी, जहां भाजपा का दबदबा हुआ करता था। वहीं कुछ भाजपा नेताओं का यह कहना कि मेयर हमारा ही बनेगा आप की चिंता बढ़ा रहा है कि कहीं चंडीगढ़ जैसी घटनाक्रम की पुनरावर्त्ति न हो जाए।