महामारी से उदास मौसम और सीनियर क्रिकेट टीम की डगमगाती जीत की लय के बीच अंडर-19 टीम के युवा खिलाड़ियों ने पांचवीं बार विश्वकप भारत की झोली में डालकर उल्लास का संचार किया। टीम की एकजुटता ने कई खिलाड़ियों के कोरोना पॉजिटिव होने के बावजूद जीत का करिश्मा दिखाया। टीम शुरुआत से ही जीत की लय में दिखी, सभी मैच शानदार तरीके से जीते। उभरते खिलाड़ियों ने देश-दुनिया को बता दिया कि भारतीय क्रिकेट का भविष्य उज्ज्वल है। फाइनल में इंग्लैंड को कम स्कोर में समेटकर युवाओं ने जिस तरह से दबाव को संभाला, वह प्रशंसनीय है। बहरहाल, कप्तान यश ढुल- मोहम्मद कैफ, विराट कोहली, उन्मुक्त चंद और पृथ्वी शॉ के रूप में उन सफल कप्तानों की सूची में शामिल हो गये, जिन्होंने भारत की झोली में अंडर-19 विश्वकप डाला। निश्चित रूप से यश ढुल की यश पताका क्रिकेट के आकाश में फहरायेगी, क्योंकि पूर्व के चार कप्तानों में से कैफ, कोहली व पृथ्वी शॉ ने सीनियर टीम में जगह ही नहीं बनायी, अपने खेल से क्रिकेट जगत को आलोकित भी किया। टीम की बल्लेबाजी दमदार व गेंदबाजी सधी रही। गेंदबाजों की गति व स्पिन ने विरोधी टीमों को मुश्किल में डाले रखा। टीम की कामयाबी का एक पक्ष यह भी कि सलामी बल्लेबाज अंगकृष रघुवंशी टूर्नामेंट में शीर्ष रन बनाने व विकेट लेने वालों में शामिल रहा। कप्तान यश का जज्बा देखिये कि कोविड से उबरने के बाद उसने सेमीफाइनल में आस्ट्रेलिया के खिलाफ 110 रन की विजयी पारी खेली। इस टूर्नामेंट की एक बड़ी उपलब्धि राज बावा का एक हरफनमौला खिलाड़ी के रूप में मिलना है, जिसने फाइनल मैच में इंग्लैंड के खिलाफ न केवल पांच विकेट लिये बल्कि कीमती पैंतीस रन भी बनाकर मैन ऑफ द मैच घोषित घोषित हुआ। निस्संदेह राज बावा में भारत के उस सीम ऑलराउंडर का अक्स उभरा है, जिसकी तलाश भारत को वर्षों से रही है। साथ ही फाइनल में अर्द्धशतक बनाने वाले निशांत सिंधु व उपकप्तान शेख रशीद ने भी भविष्य की उम्मीदें जगायी हैं।
अंडर-19 विश्व कप में दमदार खेल दिखाने वाले इन क्रिकेटरों की उम्मीदों की यात्रा का आगाज हुआ है। निस्संदेह, भारतीय क्रिकेट बोर्ड ने इन्हें कुशल प्रशिक्षण देने व संवारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। इन्हें निरंतर निखारने की जरूरत है ताकि ये वक्त आने पर टीम इंडिया में अपनी जगह बना सकें। पक्की बात है कि इसी माह होने वाली आईपीएल की नीलामी में इन खिलाड़ियों को अतिरिक्त अधिमान मिलेगा। मध्यवर्गीय परिवारों से आने वाले खिलाड़ियों को अपने व परिवार के सपने सच करने में मदद मिल सकेगी। पिछले कुछ वर्षों में राहुल द्रविड़ आदि सीनियर खिलाड़ियों द्वारा दिया गया प्रशिक्षण भी नवोदित खिलाड़ियों को निखारने में सहायक बना, जिसका असर इस बार के अंडर-19 के फाइनल में दिखा। पहली बार अंडर-19 के फाइनल में किसी भारतीय गेंदबाज ने पांच विकेट लिये। रणनीति में बदलाव के तहत भारतीय कप्तान यश ढुल ने फाइनल मैच में सात गेंदबाजों का इस्तेमाल किया। गेंदबाजी की रणनीति ही थी कि पिछली बार भारत से खिताबी जीत छीनने वाले बांग्लादेश को क्वार्टर फाइनल में रवि कुमार ने शुुरुआत में तीन विकेट का ऐसा झटका दिया कि उससे टीम आखिर तक उबर नहीं पायी। निस्संदेह, टीम की एकजुटता व रणनीतियों में नये प्रयोग निर्णायक जीत का आगाज करते हैं। अंडर-19 में भारतीय क्रिकेटरों की नई पौध के दमखम का अंदाज इस बात से लगाया जा सकता है कि टीम आठ बार फाइनल में पहुंची। पांच बार खिताबी जीत हासिल की और तीन बार टीम उपविजेता रही। इस बार तो कोरोना संकट की बड़ी चुनौती भी थी। एक समय ऐसा आया कि कप्तान यश ढुल समेत कई प्रमुख खिलाड़ी कोरोना से पीड़ित हो गये। यहां तक कि युगांडा के खिलाफ छह रिजर्व खिलाड़ियों के साथ टीम मैदान में उतरी और विजय अभियान को फिर भी रुकने नहीं दिया। यही टीम थी, जिसके सलामी बल्लेबाज अंगकृष रघुवंशी के 120 रनों तथा राज बावा के 162 रनों की मदद से टीम ने युगांडा के खिलाफ 405 रन बनाये। निस्संदेह कोच ऋषिकेश कानितकर व एनसीए के डायरेक्टर वीवीएस लक्ष्मण की टूर्नामेंट में मौजूदगी खिलाड़ियों का संबल बनी।