
भारी बहुमत से सत्ता में आई आम आदमी पार्टी की सरकार के दौरान संगरूर लोकसभा उपचुनाव में शिरोमणि अकाली दल (अमृतसर) के नेता सिमरनजीत सिंह मान की जीत ने सबको चौंकाया है। यह इसलिये भी कि यह वर्तमान मुख्यमंत्री भगवंत मान का चुनाव क्षेत्र रहा है। सही मायनों में शिरोमणि अकाली दल के नेता सिमरनजीत सिंह मान की आश्चर्यजनक जीत भारतीय लोकतंत्र की जीवंतता और लचीलेपन को ही उजागर करती है। यह इस बात की पुष्टि करती है कि तमाम राजनीतिक विसंगतियों के बावजूद भारतीय लोकतंत्र में सभी तरह के राजनैतिक विमर्श के लिये पर्याप्त गुंजाइश है। कोई भी दृष्टिकोण चाहे वह कितना भी तल्ख हो, मतदाताओं को वैचारिक रूप से प्रभावित करता ही है। मताधिकार का दायरा इतना विस्तृत है कि आप किसी उम्मीदवार की जीत-हार को लेकर ठीक-ठीक भविष्यवाणी नहीं कर सकते। यही वजह है कि इस चुनाव में अनुदारवादी दृष्टिकोण वाले अनुभवी राजनेता ने परंपरागत राजनीतिक दलों के प्रत्याशियों को परास्त करके संसद में अपनी जगह बनायी है। इसके लिये उन्होंने स्थापित लोकतांत्रिक प्रक्रिया से गुजरते हुए ही यह कामयाबी हासिल की है। निश्चित रूप से इस विजय के उपरांत मान को पंजाब के अन्य बारह लोकसभा सांसदों तथा सात राज्यसभा सदस्यों की तरह ही राज्य के कल्याण के मुद्दों को उठाना चाहिए। उन्हें पंजाब से संबंधित महत्वपूर्ण मुद्दों पर संसदीय बहस में रचनात्मक योगदान देना चाहिए। यहां यह भी महत्वपूर्ण है कि लोकतांत्रिक प्रक्रिया में हम उसी के अनुरूप व्यवहार के जरिये राजनीतिक लक्ष्यों को हासिल कर सकते हैं, जहां व्यापक विचार-विमर्श की पर्याप्त गुंजाइश होती है। जरूरत इस बात की भी है कि समस्याओं का समाधान लोकतांत्रिक तौर-तरीकों के जरिये ही हासिल हो तभी राज्य में विकास के मानकों की स्थापना संभव है। निस्संदेह, भले ही दल विशेष की राजनीतिक विचारधारा में भिन्नता हो, लेकिन अंतिम लक्ष्य आम जनमानस का सर्वांगीण विकास ही होता है।
बहरहाल, संगरूर में जनादेश के गहरे निहितार्थ हैं। निस्संदेह, उप चुनाव में मतदान का कम प्रतिशत भी नीति-नियंताओं के लिये चेतावनी ही है। राजनीतिक सुविधाओं के लिये चुनाव जीतना और बड़ी महत्वाकांक्षाओं के लिये सीट छोड़ना कालांतर जनता में चुनाव प्रक्रिया के प्रति उदासीनता को ही जन्म देता है। बहरहाल, संगरूर के जनादेश ने आम आदमी पार्टी की सरकार को स्पष्ट संदेश दिया है कि जनता के धैर्य की और अधिक परीक्षा न लें। कह सकते हैं कि संगरूर का फैसला सत्तारूढ़ आम आदमी पार्टी के लिये बड़ा झटका है, जिसने मुश्किल से तीन माह पूर्व विधानसभा चुनाव में शानदार जीत हासिल की थी। निस्संदेह जनता में गुस्सा है, कह सकते हैं कि उस मन:स्थिति से मोहभंग की स्थिति है जिसके चलते अरविंद केजरीवाल की पार्टी को सत्ता का वरण करने का अवसर मिला था। आप के लिये यह दोहरी शिकस्त है क्योंकि राज्य के मुख्यमंत्री भगवंत मान का किला ढह गया है। दरअसल, सत्ता विरोधी भावना सिमरनजीत सिंह मान के पक्ष में काम कर गई क्योंकि मतदाताओं ने शिरोमणि अकाली दल, कांग्रेस और भारतीय जनता पार्टी जैसे परंपरागत राजनीतिक दलों को खारिज किया है। मतदाताओं ने राजनीतिक दलों को स्पष्ट संकेत भी दिया है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में यदि कामयाबी हासिल करनी है तो जनता के अहसासों से गहरे तक जुड़ना होगा। कह सकते हैं कि नई सरकार का हनीमून समय खत्म हो गया है। मुख्यमंत्री को जनता की विश्वसनीयता हासिल करने तथा चीजों को पटरी पर लाने के लिये ठोस ढंग से काम करना होगा। इसके अलावा विभिन्न राज्यों में हुए उप चुनावों में सत्तारूढ़ दल व गठबंधन ही शीर्ष पर रहा। उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के गढ़ रामपुर और आजमगढ़ लोकसभा सीटों पर भाजपा का काबिज होना चौंकाने वाला है। कुल मिलाकर नतीजे भाजपा के प्रभुत्व को ही रेखांकित करते हैं। एक निष्कर्ष यह भी है कि विपक्ष 2024 के महासमर के लिये तैयार नहीं दिखायी दे रहा है। हालांकि, भाजपा खुशफहमी में नहीं रह सकती क्योंकि मतदाता बाजी पलटना भी जानता है।
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