जब से अडाणी ग्रुप पर हिंडनबर्ग की रिपोर्ट आई है आर्थिक व राजनीतिक क्षेत्रों में तूफान थमने का नाम नहीं ले रहा है। इस मुद्दे की आंच अब देश की संसद तक जा पहुंची है। गुरुवार को इस मुद्दे पर संसद में जमकर हंगामा बरपा। विपक्षी दल लगातार अडाणी समूह के वित्तीय लेनदेन की व्यापक जांच के लिये संसदीय पैनल बनाने की मांग करते रहे। वहीं कुछ विपक्षी सुप्रीम कोर्ट की कमेटी से मामले की जांच कराने की मांग करते देखे हैं। इस मामले ने इतना तूल पकड़ा कि हंगामे के चलते आखिरकार लोकसभा व राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। दरअसल, राजग सरकार के सत्ता में आने के बाद अडाणी समूह का साम्राज्य अप्रत्याशित रूप से बढ़ा है। यह आम धारणा रही है कि राजाश्रय में ही अडाणी समूह फला-फूला है। विपक्ष के इस विरोध के मूल में आर्थिक अनुशासन कायम करने के बजाय मोदी सरकार को कठघरे में खड़ा करना प्राथमिकता नजर आता है। लगातार यह दलील दी जाती है कि अडाणी समूह की अप्रत्याशित सफलता के लिये सरकारी बैंकों से भारी ऋण उपलब्ध कराया गया है। जिससे जनता का पैसा दांव पर लगा है। कुछ समाचार एजेंसियों का दावा है कि आरबीआई ने बैंकों से अडाणी एंटरप्राइजेज लिमिटेड को दिये गये कर्ज का विवरण मांगा है। बहरहाल, हिंडनबर्ग रिसर्च के आरोपों के बाद समूह के शेयरों में भारी गिरावट का क्रम लगातार जारी है। इस संकट की घड़ी में अडाणी समूह ने निवेशकों का विश्वास हासिल करने के लिये बीस हजार करोड़ के एफपीओ को रद्द करके निवेशकों को पैसा लौटाने की बात कही है। स्वयं गौतम अडाणी ने एफपीओ रद्द करने की घोषणा एक वीडियो के जरिये की और निवेशकों का शुक्रिया अदा करते हुए कहा कि उनका भरोसा बनाये रखना उनकी प्राथमिकता है। निवेशकों को नुकसान से बचाने के लिये एफपीओ रद्द किया गया है। बहरहाल, इसके बावजूद मुद्दे पर विवाद का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा है।
गुरुवार को संसद में तेरह विपक्षी पार्टियां लगातार हिंडनबर्ग रिपोर्ट पर सदन में चर्चा की मांग करती रही। ये तेरह पार्टियां नेता प्रतिपक्ष मल्लिकार्जुन के साथ एकजुट हुईं। विपक्षी नेता आरोप लगाते रहे कि जनता की मेहनत का पैसा दांव पर लगा है। उनकी दलील थी कि राजनीतिक संरक्षण में जनता का पैसा उद्योगपतियों के हितों में लगाने से लोगों का बैंकिंग व एलआईसी जैसी संस्थाओं से भरोसा उठ जाएगा। निस्संदेह, आर्थिक अनिश्चितताओं के बीच निवेशकों का भरोसा जगाने के लिये पारदर्शी आर्थिक व्यवस्था का होना अपरिहार्य है। दरअसल, देश के लोग सामाजिक सुरक्षा के मकसद से बैंकों व अन्य सरकारी वित्तीय संस्थाओं में पैसा लगाते हैं। जिसके लिये मजबूत नियामक ढांचे की जरूरत महसूस की जा रही है। दरअसल, इस विवाद के मूल में न्यूयार्क स्थित एक निवेशक अनुसंधान फर्म हिंडनबर्ग की वह रिपोर्ट है जिसमें दावा किया गया कि अडाणी समूह जो आर्थिक समृद्धि दर्शा रहा है उसके लिए अनैतिक व अनुचित तौर-तरीकों का प्रयोग किया गया है। हालांकि, अडानी समूह ऐसे किसी भी आरोप को खारिज करता रहा है और इसे भारतीय अर्थव्यवस्था पर बाहरी हमला बताता रहा है। लेकिन इसके बावजूद समूह को साख के अलावा अरबों का नुकसान हुआ है। दरअसल, रिपोर्ट में समूह के उच्च ऋण स्तरों पर सवाल उठाए गये और उस पर टैक्स हेवन में स्थित शेल कंपनियों का उपयोग करने का आरोप लगाया है। दरअसल, विगत में आर्थिक विश्लेषक एलआईसी और कई सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों द्वारा अडाणी समूह में निवेश करने को लेकर सवाल उठाते रहे हैं। निस्संदेह, इन परिस्थितियों में उम्मीद की जानी चाहिए कि सेबी और भारतीय रिजर्व बैंक जैसी नियामक संस्थाएं ऐसे मामलों में शीघ्र व निर्णायक रूप से पहल करके लोगों का विश्वास बहाल करें। इसमें दो राय नहीं कि ऐसे प्रकरणों से निवेश की दृष्टि से भारत की प्रतिष्ठा को भी नुकसान हो सकता है। खासकर वे विदेशी निवेशक प्रभावित हो सकते हैं जो भारत को अन्य उभरती अर्थव्यवस्थाओं के मुकाबले निवेश के लिये सुरक्षित मानते रहे हैं।