चंडीगढ़ के निकट स्थित एक निजी विश्वविद्यालय के परिसर में गर्ल्स हॉस्टल में छात्राओं की निजता से जुड़े वीडियो शूट करके प्रसारित करना एक गंभीर मामला है। छात्राओं के आक्रोश के बाद मामले में लीपापोती करने की कोशिश में लगे विश्वविद्यालय प्रशासन ने जांच पुलिस को सौंप दी है लेकिन इस मामले की तह तक पहुंचने की जरूरत है। उम्मीद है कि उच्च महिला पुलिस अधिकारियों की देखरेख में बनी एसआईटी गहन जांच से हकीकत सामने लाने में सक्षम हो सकेगी। यह दुर्भाग्यपूर्ण घटनाक्रम इस मामले की तह तक जाने की अविलंब आवश्यकता बताता है। आखिर क्यों गर्ल्स हॉस्टल में ऐसी पुख्ता सुरक्षा नहीं की गई कि कोई आसानी से छात्राओं के निजी पलों का वीडियो बनकर प्रसारित न कर सके। दरअसल, मोबाइल व इलेक्ट्रानिक उपकरणों के बढ़ते प्रचलन के बावजूद गोपनीयता से जुड़े कानूनों के बारे में पर्याप्त जागरूकता पैदा नहीं की जा सकी है। लोग इन सुविधा के उपकरणों के दुरुपयोग रोकने के उपायों के लिये मदद लेने के प्रति भी उदासीन ही रहते हैं। वहीं सवाल यह भी है कि इंटरनेट के बढ़ते संजाल के चलते होने वाले अपराधों पर अंकुश लगाने में पुलिस की भूमिका और अपराधों पर नियंत्रण की तुरंत कार्रवाई तथा कठोर दंड को लेकर लोगों में भरोसा कायम क्यों नहीं हो पाया है। निश्चित रूप से पीड़ित पक्ष भय व शर्म के चलते घबरा जाता है और पुलिस की मदद लेने में कतराता है। दरअसल, इस तरह के अपराधों पर अंकुश लगाने के लिये संवेदनशील, प्रशिक्षित और आधुनिक साधनों से सुसज्जित अलग सुरक्षाबल की जरूरत महसूस की जाती रही है। तेजी से बढ़ते ऐसे अपराधों पर नियंत्रण के लिये तत्काल कदम उठाये जाने की जरूरत है। यह प्रकरण तमाम शिक्षण संस्थानों के लिये चेतावनी है कि भविष्य में किसी भी ऐसी घटना पर अंकुश लगाने कि लिये विशेषज्ञों की सहायता से कड़े प्रोटोकॉल लागू किये जायें। केवल कागजी खानापूर्ति से काम चलने वाला नहीं है। शिक्षण संस्थाओं के अधिकारियों को ऐसे मामलों से निबटने में सक्षम बनाना होगा।
दरअसल, शिक्षण संस्थानों के प्रबंधकों को सुनिश्चित करना होगा कि आधुनिक तकनीकों व उपकरणों के माध्यम में छात्राओं के व्यावहारिक जीवन को बदरंग न बनाया जा सके। गोपनीयता का हनन, साइबर अपराधों व तकनीकी दुरुपयोग के मामलों को सख्त कानून बनाकर नियंत्रित करने की अविलंब कोशिश की जानी होगी। साथ ही युवाओं में जागरूकता लाने के लिये व्यापक स्तर पर बचाव के उपायों का प्रचार-प्रसार करना होगा। सवाल शिक्षण संस्थानों के प्रबंधन को लेकर भी है कि मोटी फीस लेने के बावजूद हॉस्टलों में छात्राओं की निजता व गरिमा की सुरक्षा क्यों सुनिश्चित नहीं की जाती। उनके लिये यह घटना चेतावनी है कि वे छात्राओं की तमाम आशंकाओं को दूर करना सुनिश्चित करें। निस्संदेह, असुरक्षित परिसर छात्राओं के सम्मान व जीवन से खिलवाड़ का मौका देते हैं। इस घटना में महज शिक्षण संस्थान की छात्रा की भूमिका ही नहीं थी, बाहर के लोग भी इस षड्यंत्र से जुड़े थे। दो बाहरी लोगों की गिरफ्तारी से बहुत संभव है कि किसी बड़ी साजिश की पोल इस घटना के बाद खुले। सवाल उस साजिश में शामिल छात्रा के विवेक पर भी है कि वह किस लालच में अपने सहपाठियों के साथ इस घृणित कृत्य को अंजाम देने को तैयार हुई। उम्मीद है कि मामले की पुलिस, एसआईटी व फोरेंसिक जांच सच को सामने लाने में कामयाब होगी। पर्दे के पीछे छिपे लोगों को बेनकाब करना भी जरूरी है। साथ ही दोषियों को सख्त सजा सुनिश्चित होनी चाहिए ताकि असुरक्षित स्थलों का दुरुपयोग रोका जा सके। छात्राओं को ऐसी घटनाओं के प्रति जागरूक करने की भी जरूरत है। सवाल उन युवाओं का भी है जो इंटरनेट पर परोसी जा रही अश्लीलता के भयावह दलदल में धंसते जा रहे हैं। नई पीढ़ी को मानसिक रूप से स्वस्थ बनाने की दिशा में देशव्यापी मुहिम चलाने की जरूरत है। ताकि आधुनिक तकनीक के खतरों व संयमित व्यवहार में सामंजस्य स्थापित किया जा सके। वहीं छात्राओं को ऐसी घटनाओं से बचाव के लिये सामाजिक प्रशिक्षण दिये जाने की जरूरत भी है।