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कीव यात्रा के मायने

पूर्व-पश्चिम कूटनीतिक रस्साकशी का जवाब
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कह सकते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हालिया यूक्रेन यात्रा पूर्वी व पश्चिमी देशों के बीच कूटनीतिक संतुलन साधने की कवायद भर है। यह यात्रा भारतीय विदेश नीति में एक महत्वपूर्ण क्षण रहा। जो एक ओर रूस के साथ ऐतिहासिक संबंधों को बनाये रखना तथा दूसरी ओर पश्चिम के साथ बढ़ते जुड़ाव के बीच संवेदनशील संतुलन बनाने की कोशिश है। दरअसल, मोदी की यूक्रेन यात्रा कुछ समय पहले संपन्न मास्को यात्रा के बाद हुई । जो रूस-यूक्रेन संघर्ष की जटिल भू-राजनीतिक चुनौतियों से निपटने की भारत की संवेदनशील पहल को ही दर्शाती है। दशकों से रूस भारत का आजमाया दोस्त है। रूस से बेहतर संबंध हमारी विदेशी नीति की आधारशिला भी रही है। विशेष रूप से रक्षा उत्पादों के क्षेत्र में, तमाम रक्षा उपकरण व कलपुर्जों को लेकर भारत रूस पर निर्भर रहा है। मोदी की रूस यात्रा ने जहां दोनों देशों के रिश्तों को नये आयाम दिए,वहीं पश्चिम को यह संदेश भी दिया कि रणनीतिक स्वायत्तता पर हम बाहरी दबाव स्वीकार नहीं करेंगे। वहीं यूक्रेन के साथ सीधे जुड़ना विश्व बिरादरी को यह संदेश देने का प्रयास भी है कि भारत अंतर्राष्ट्रीय कानून और संप्रभुता को बनाये रखने का पक्षधर है। जो कि वैश्विक शांति व सुरक्षा के मौलिक तत्व भी हैं। वह बात अलग है कि मोदी की रूस यात्रा के बाद यूक्रेन व पश्चिमी देशों की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई थी। मोदी की यूक्रेन यात्रा को उसी घटनाक्रम के आलोक में देखा जा सकता है।

बहरहाल, कहा जा सकता है कि इस तरह भारत ने यूक्रेन से जुड़ाव के जरिये जहां अंतर्राष्ट्रीय कानूनों का सम्मान किया है, वहीं मास्को यात्रा से रूस के साथ परंपरागत संबंधों को कुशलतापूर्वक बनाये रखने में सफलता हासिल की है। भारत ने प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा से पश्चिम की चिंताओं को भी दूर किया है। वैश्विक कूटनीति में यह संतुलन बनाना बेहद जटिल कार्य है। दरअसल, भारत पूर्व व पश्चिमी खेमे से खुद को अलग रखकर अपनी कूटनीति के आधारभूत तत्व गुटनिरपेक्षता की नीति को भी बनाये रखना चाहता है। भारत ने प्रधानमंत्री की यूक्रेन यात्रा के जरिये यूक्रेन के पश्चिमी सहयोगियों को यह संदेश देने का भी प्रयास किया है कि भारत यूक्रेन के संघर्ष के प्रति उदासीन नहीं है। यह भी कि भारत शांति के लिये होने वाली बातचीत में शामिल होने का इच्छुक है। वहीं दूसरी ओर यूक्रेन के साथ कई समझौतों में भागीदारी भारत के लिये ऊर्जा सुरक्षा और यूरोप के साथ आर्थिक संबंधों के हेतु नये रास्ते खोल सकती है। वह भी ऐसे समय में जब पश्चिम रूसी ऊर्जा पर अपनी निर्भरता कम करना चाह रहा है। जिसमें भारत को कूटनीतिक व महत्वपूर्ण आर्थिक लाभ मिल सकते हैं। बहरहाल, मोदी की मास्को व कीव की यात्राएं भारत की कूटनीतिक महत्वाकांक्षाओं को रेखांकित करती हैं। जिसमें सावधानी से पूर्व-पश्चिम में संतुलन साधने का सार्थक प्रयास हुआ है। जो तेजी से ध्रुवीकृत होती दुनिया में अपने रणनीतिक हितों को साधने की सफल कोशिश भी है। वहीं बातचीत से शांति स्थापना के प्रयासों के लिये हमारी प्रतिबद्धता को भी दर्शाती है।

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