यूं तो सोमवार को शुरू हुए संसद के मानसून सत्र का हंगामेदार होना तय था, वह हुआ भी लेकिन मुद्दा बदल गया। विपक्ष ने कोरोना संकट से निपटने की विफलता, पेट्रोल-डीजल व खाद्य पदार्थों की महंगाई व किसानों के मुद्दे पर सरकार को घेरने की तैयारी की थी। वहीं सरकार ने भी बचाव का चक्रव्यूह रचकर विपक्ष के हमलों का जवाब देना तय किया था। लेकिन संसद सत्र की पूर्व संध्या पर इस्राइली जासूसी सॉफ्टवेयर पेगासस के खुलासे से पूरी दुनिया में मचे बवाल की छाया भारतीय संसद पर भी नजर आई। इस नये अस्त्र को पाकर विपक्ष ज्यादा आक्रामक हुआ, फलत: मुख्य मुद्दे पार्श्व में चले गये। निस्संदेह इस डिजिटल युग में लोगों के डाटा की गोपनीयता व सु्रक्षा मौलिक अधिकार जैसा बन गया है। दरअसल, वैश्विक स्तर पर हुए इस खुलासे में भारत के राजनेताओं, कारोबारियों, पत्रकारों व अन्य महत्वपूर्ण लोगों की फोन के जरिये निगरानी की बात कही जा रही है। वहीं इस्राइली फर्म पेगासस स्पाइवेयर की दलील है कि कंपनी आतंकवाद और अपराध की जांच के लिये चुनिंदा सरकारों को ही साफ्टवेयर बेचती है, लेकिन वह किसी व्यक्ति विशेष की निगरानी के काम में लिप्त नहीं है। दरअसल, रविवार को एक अंतर्राष्ट्रीय मीडिया समूह ने जानकारी दी थी कि भारत में स्पाइवेयर के जरिये कुछ कारोबारियों, राजनीतिक व सामाजिक कार्यकर्ताओं, दो सेवारत मंत्रियों, चालीस से अधिक पत्रकारों, तीन विपक्षी नेताओं व एक न्यायाधीश समेत तीन सौ मोबाइल फोन नंबरों को हैकिंग के लिये निशाना बनाया जा सकता है। सरकार का तर्क है कि संसद सत्र शुरू होने के ठीक एक दिन पहले इस मामले का खुलासा अंतर्राष्ट्रीय साजिश का हिस्सा है। सरकार की दलील है कि सूची में किसी नंबर का होना इस बात का प्रमाण कतई नहीं है कि किसी व्यक्ति विशेष की जासूसी की गई है। वहीं इस्राइली कंपनी का दावा है कि वह स्पाइवेयर सरकारों को तो बेचती है मगर उसे खुद संचालित नहीं करती। साथ ही उसके पास इससे जुड़ा डाटा नहीं पहुंचता। उसने अपने ग्राहकों के नामों का भी खुलासा करने से मना किया है।
हालांकि, केंद्र सरकार तमाम सवालों के बाबत कह रही है कि निगरानी के आरोपों का कोई आधार नहीं है। लेकिन सारा घटनाक्रम सरकार की साख पर तो सवाल खड़ा करता ही है। ऐसे में जब डिजिटलीकरण का दौर है और स्मार्टफोनों का उपयोग तेजी से बढ़ा है, नागरिकों का डिजिटल गोपनीयता व सुरक्षा से जुड़े मुद्दों को लेकर चिंतित होना स्वाभाविक ही है। वहीं स्पाइवेयर की बेहद खुफिया कार्यप्रणाली और इसकी पहुंच के चलते चिंताएं बढ़ी हैं। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2019 में भी व्हाट्सएप ने अपने उपयोगकर्ताओं को स्पाइवेयर से जुड़ी चिंताओं के बाबत अवगत कराया था। इतना ही नहीं, अपने प्लेटफॉर्म के दुरुपयोग का आरोप लगाते हुए इस्राइली फर्म के खिलाफ मामला भी दर्ज कराया था। ऐसा भी नहीं है कि सरकारों द्वारा अपने विरोधी राजनीतिक दलों के नेताओं की जासूसी करने के आरोप पहली बार सामने आये हों। वित्तमंत्री रहते हुए भी प्रणब मुखर्जी के कार्यालय तथा केंद्र में कांग्रेस समर्थित चंद्रशेखर सरकार के गिरने के वक्त भी इस तरह की जासूसी के आरोप लगे थे। राजनीति से इतर विपक्ष से उम्मीद की जाती है कि वह नागरिकों की गोपनीयता सुरक्षित रखने के लिये पारदर्शिता, जवाबदेही और बेहतर सुरक्षा उपायों के लिये केंद्र पर दबाव बनाये। निस्संदेह इस घटनाक्रम से लोगों में असुरक्षा की भावना घर करेगी। वह भी तब जब डिजिटलीकरण आधुनिक जीवन की अपरिहार्यता बन चुका है। विडंबना यह भी है कि अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर कोई ऐसा कानून नहीं है जो सरकारों को नागरिकों की गोपनीयता की सुरक्षा से छेड़छाड़ रोकने के लिये बाध्य कर सके। बहरहाल, इंटरनेट युग में व्यक्ति के डाटा की गोपनीयता व सुरक्षा का यक्ष प्रश्न और शिद्दत के साथ सामने आया है कि कैसे सिर्फ मिस कॉल के जरिये किसी फोन को हैक किया जा सकता है। एक उपभोक्ता के रूप में भी साइबर सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम करते हुए यह हमारे सतर्क रहने का वक्त है।