Tribune
PT
About the Dainik Tribune Code Of Ethics Advertise with us Classifieds Download App
search-icon-img
Advertisement

महिला सुरक्षा का प्रश्न

कानून व दिशा-निर्देश प्रभावी ढंग से लागू हों
  • fb
  • twitter
  • whatsapp
  • whatsapp
Advertisement

कोलकाता के आरजी कर मेडिकल कॉलेज और अस्पताल में प्रशिक्षु महिला चिकित्सक की यौन हिंसा के बाद हुई हत्या ने एक बार फिर साबित किया है कि देश में कामकाजी महिलाओं के लिये कार्यस्थल पर परिस्थितियां कितनी असुरक्षित हैं। वह भी इतनी भयावह कि कार्यस्थल पर ही प्रशिक्षु महिला चिकित्सक के साथ यह सब वीभत्स घट जाता है। निश्चित रूप से कार्यस्थल पर यौन उत्पीड़न मानव अधिकारों का सरासर उल्लंघन ही है। कार्यस्थल पर महिलाओं के लिये सुरक्षा अनुकूल वातावरण बनाने के मद्देनजर विशाखा दिशा-निर्देश जारी करने के सत्ताईस साल बाद अब सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और राज्य सरकारों को डॉक्टरों की सुरक्षा को संस्थागत बनाने के लिये तुरंत कदम उठाने के निर्देश दिए हैं। वहीं दूसरी ओर देश की सर्वोच्च अदालत के निर्देश के अनुपालन हेतु गठित एक राष्ट्रीय टास्क फोर्स को चिकित्सा पेशवरों की सुरक्षा, महिला चिकित्सकों के लिये अनुकूल कामकाजी परिस्थितियां बनाने तथा उनके हितों की रक्षा के लिये प्रभावी सिफारिशें तैयार करने का काम सौंपा गया है। विश्वास किया जाना चाहिए कि ये सिफारिशें यदि जमीनी स्तर पर भी प्रभावी साबित हुईं तो किसी भी पेशे में कामकाजी महिलाओं की सुरक्षा के लिये असरकारी साबित होंगी। लेकिन यह तभी संभव है जब सभी हितधारक एक स्तर पर एकजुट होकर इस दिशा में काम करेंगे। निस्संदेह, किसी भी दुर्भाग्यपूर्ण घटना होने के वक्त तमाम तरह के उपक्रम होते हैं, लेकिन कुछ समय बाद सब कुछ ठंडे बस्ते में डाल दिया जाता है। यही वजह है कि नई कार्ययोजना बनाते समय इस बात का आकलन करने की सख्त जरूरत महसूस की जा रही है कि महिला सुरक्षा को लेकर मौजूदा कानून और दिशा-निर्देश जमीनी स्तर पर बदलाव लाने में कितने सफल रहे हैं। सही मायनों में कानून बनाने और दिशा-निर्देश जारी करने से ज्यादा महत्वपूर्ण बात यह है कि उनका अनुपालन कितने पारदर्शी व संवेदनशील दृष्टि से किया जाता है। साथ ही विगत के अनुभवों से भी सबक लेकर आगे बढ़ने की जरूरत है।

यह तथ्य किसी से छिपा नहीं कि वर्ष 2012 के निर्भया कांड के बाद देश में कोलकाता कांड में भी उसी तरह की तल्ख प्रतिक्रिया सामने आई है। जिसके बाद आवश्यकता महसूस की गई कि ऐसे क्रूर अपराधियों को सख्त से सख्त सजा देने वाले कानून लाये जाएं। कालांतर देश में यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम अस्तित्व में आया। दरअसल, महिलाओं के लिये सुरक्षित कार्यस्थल सुनिश्चित करने के प्राथमिक उद्देश्य के साथ ही विशाखा दिशा-निर्देशों के विस्तार के रूप में इसे अधिनियमित किया गया। यहां उल्लेखनीय है कि पिछले साल, देश की शीर्ष अदालत ने इस अधिनियम के क्रियान्वयन के संबंध में गंभीर खामियों की ओर इशारा किया था। साथ ही इससे जुड़ी अनिश्चितताओं की ओर भी संकेत दिया था। इसके उदाहरण के रूप में महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने तथा सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के कार्यान्वयन के लिये केंद्र सरकार द्वारा स्थापित निर्भया फंड अक्सर नकारात्मक कारणों से सुर्खियों में रहा है। जिसमें आवंटित धन का पर्याप्त रूप में उपयोग न करना या फिर इस आवंटित धन का दुरुपयोग होना शामिल है। करीब एक दशक में देश के विभिन्न राज्यों तथा केंद्रशासित प्रदेशों के लिये महिला सुरक्षा से जुड़ी योजनाओं के क्रियान्वयन के लिये आवंटित धनराशि का लगभग छिहत्तर फीसदी धन ही खर्च हो पाया है। निश्चित रूप से महिला सुरक्षा की ऐसी चुनौतियों के बीच कम धन का खर्च होना एक विडंबना ही कही जाएगी। वहीं इस दौरान देश में दर्ज किये गए बलात्कार के मामलों की संख्या में केवल नौ फीसदी की ही गिरावट दर्ज की गई है। निश्चित रूप से महिलाओं की सुरक्षा को लेकर शुरू की जाने वाली किसी भी नई पहल पर इन तमाम गंभीर तथ्यों को ध्यान में रखना बेहद जरूरी है। इसमें दो राय नहीं कि महिलाओं की सुरक्षा और कार्यबल में उनकी बड़ी भागीदारी तब तक अधूरी कही जाएगी, जब तक हम न केवल अपराधियों के खिलाफ बल्कि उन अधिकारियों के खिलाफ भी सख्त कार्रवाई नहीं करते, जो अपने कर्तव्य पालन में लापरवाही के लिये दोषी पाये जाते हैं।

Advertisement

Advertisement
×